बाल मन ! होली का संग !!! तब मैं लगभग 5 साल का था ।हमारा परिवार अपने मूल पैतृक ऐतिहासिक गांव मुकुन्दपुर जिला सतना में रहता था ।रीवा राज्य में मुकुन्दपुर की होली बहुत प्रसिद्ध थी ।रंग- गुलाल का दिन आया ।मेरा बाल सुलभ मन उत्सुकता और बेचैनी से इस दिन की प्रतीक्षा करते- करते जगन्नाथ जी के मंदिर के सामने, बरगद के पेड के पास जहाँ कल रात होलिका दहन हुआ था; मैं अपने एक बाल सखा के साथ पहुँच गया । रंग- पिचकारी- गुलाल से सराबोर,जन समुदाय मस्ती कर था । मैं सांस रोके इस प्रतीक्षा में एक किनारे खड़ा था कि कब मुझे सम्मिलित किया जाए । तभी एक होरियारी बालक हम लोगों पर रंग डालने पिचकारी लिए आगे बढ़ा ।पर तभी एक नौजवान होरियारी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि ये मुसलमान लड़के हैं इन पर रंग मत डालो ।मुझे जोर का झटका लगा । आवाक कुछ क्षण मैं चुप रहा ; फिर दृढ़ता से उनसे बोल पड़ा- --मैं तो खेलुंगा ।मेरी दृढ़ता देख कर, मना करने वाले सज्जन ने प्यार से मुझे पुचकारते,मेरे गाल पर नाम मात्र का गुलाल लगाते हुए बोले बेटे तुम अभी बहुत छोटे हो, ठंड है, पिचकारी से रंग खेलोगे तो ठंड से बीमार पड़ जाओगे ।गुलाल लग गया है; तुम्हारी होली हो गयी घर जाओ । ऐसा था हमारा भारतीय समाज!!! और आज- --- - -- वोट की राजनीति हमारे देश को कंहा ले जा रही है । सर्वशक्तिमान बुद्धि और भावना के ज्वार पैदा करे !!!!