नई दिल्ली (ईन्यूज़ एमपी): बीते 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में एक भीषण आतंकी हमला हुआ, जिसमें कम से कम 28 पर्यटकों की जान चली गई और दर्जनों घायल हो गए। यह हमला पिछले वर्षों में नागरिकों पर हुआ सबसे घातक हमला माना जा रहा है। दोपहर लगभग 1 बजे, चार सशस्त्र आतंकवादी बैसरन के घने जंगलों से निकलकर पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने लगे। पर्यटक उस समय ट्रैकिंग और पिकनिक के लिए निकले हुए थे। हमले की गति और निर्ममता इतनी अधिक थी कि बचने का कोई रास्ता नहीं था। गोलियों की गूंज, चीख-पुकार और अफरातफरी के बीच सारा इलाका युद्धभूमि में तब्दील हो गया। इस हमले में कर्नाटक, ओडिशा, गुजरात और दो विदेशी नागरिकों सहित 28 लोग मारे गए। घटना के बाद हमलावर फरार हो गए और सुरक्षाबलों ने तुरंत इलाके को घेर लिया, तलाशी अभियान शुरू किया गया। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी समूह 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है। उन्होंने हमले को 2019 में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त करने के बाद हो रहे जनसांख्यिकीय बदलावों का प्रतिशोध बताया। आतंकियों ने अपने वीडियो संदेश में इसे "कश्मीर की पवित्रता की रक्षा" का प्रयास बताया है, जिसे सुरक्षा एजेंसियों ने सीधे तौर पर पाकिस्तान की शह बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि "इस कायराना हरकत के पीछे जो भी हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। आतंक के खिलाफ हमारी लड़ाई और सख्त होगी।" गृह मंत्री अमित शाह ने तुरंत श्रीनगर पहुंचकर सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और एनआईए को जांच सौंप दी गई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हमले को "कायरता की चरम सीमा" बताया, जबकि विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि "शांति का झूठा दावा देश को बहुत भारी पड़ रहा है।" इस दिल दहला देने वाली घटना ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी झकझोर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति और यूरोपीय नेताओं ने भारत के साथ एकजुटता प्रकट की है और आतंकवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाने की मांग की है। फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान सहित कई देशों ने घटना को 'नृशंस और अमानवीय' करार दिया। यह हमला एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य नहीं हैं, और आतंकवाद का नेटवर्क अभी भी सक्रिय है। पर्यटकों और नागरिकों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल बना हुआ है। सवाल यह भी उठता है कि खुफिया एजेंसियां इतनी बड़ी साजिश को भांपने में नाकाम क्यों रहीं?