रीवा/सीधी/शहडोल (ईन्यूज़ एमपी): रीवा के विन्ध्या रिट्रीट होटल सभागार में वनाधिकार अधिनियम को लेकर रीवा और शहडोल संभाग की संयुक्त कार्यशाला का आयोजन हुआ। यह कार्यशाला ना केवल अधिनियम की प्रक्रिया को स्पष्ट करने वाली थी, बल्कि यह जनजातियों के अधिकारों को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक निर्णायक संवाद भी साबित हुई। जनजातियाँ वनों की पोषक, संरक्षक और असली मालिक हैं" – कमिश्नर बीएस जामोद कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में रीवा संभाग के कमिश्नर बीएस जामोद ने कहा कि जनजातीय समुदायों ने सदियों से वनों का संरक्षण और पोषण किया है। उनका वनों से रिश्ता केवल जीवनयापन का नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति, परंपरा, धार्मिक आस्था और सामाजिक ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है जब सामुदायिक वनाधिकार दावों को भी उसी तत्परता से मान्यता दी जाए, जैसे व्यक्तिगत दावों को दी गई। समुदाय के संरक्षण से ही वन बचे रहेंगे" – सीसीएफ रीवा राजेश राय: मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) राजेश राय ने कहा कि सामुदायिक दावे सिर्फ जमीन पर कब्जे का मामला नहीं हैं, बल्कि यह उन समुदायों को उनका हक देने का मामला है जिन्होंने वनों के संरक्षण में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वन संरक्षण के प्रति जिम्मेदार समुदायों को ही प्राथमिकता दी जाए। सामुदायिक दावों के समाधान का साफ खाका – कमिश्नर शहडोल सुरभि गुप्ता: शहडोल की कमिश्नर सुरभि गुप्ता ने कहा कि अब कार्यशाला के बाद सामुदायिक दावों के निराकरण में भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए। उन्होंने निर्देश दिए कि हर स्तर पर पारदर्शिता रखी जाए और किसी भी पात्र जनजातीय समूह का हक न छिने। मास्टर ट्रेनर वाई गिरि राव और शरद लेले ने विस्तार से समझाया कि किस प्रकार गांव के दस्तावेज, जनश्रुति (बुजुर्गों के कथन), परंपरागत उपयोग और सामाजिक दस्तावेजों के आधार पर सामुदायिक दावे दर्ज किए जा सकते हैं। लेले ने यह भी स्पष्ट किया कि एक गांव के दावे पर निर्णय लेते समय आस-पास के गांवों की सहमति भी जरूरी है, ताकि टकराव की स्थिति न बने। कार्यशाला में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि सामुदायिक वनाधिकार दावों में वन विभाग, राजस्व विभाग, आदिवासी विकास और ग्राम पंचायतों के बीच समन्वय जरूरी है। यह भी तय किया गया कि पेसा कानून और पर्यावरणीय संरक्षण को आधार बनाकर स्थानीय परंपराओं को विधिसम्मत मान्यता दी जाएगी। कार्यशाला में रीवा, सीधी, सतना, शहडोल, अनूपपुर, मऊगंज और मैहर के कलेक्टरों, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों, वन मंडलाधिकारियों, सहायक आदिवासी आयुक्तों, और ट्राईबल विभाग के जिला समन्वयकों ने भाग लिया। समापन सत्र में उपायुक्त ट्राईबल ऊषा अजय सिंह ने सभी प्रतिभागियों और विशेषज्ञों का आभार व्यक्त किया।