सीधी (ईन्यूज एमपी)बर्ष 2013-14-15 में जनपद पंचायत रामपुरनैकिन में लगभग 20 लाख की हेराफेरी करने की जानकारी मिलने एबम मजदूरी का भुगतान पोर्टल में प्रदशित होने पर जब जानकारी मांगी गई तो पूरा जनपद सत्र रह गया और चाही गयी नकल में आना कानी करते रहे और आज तक नही दी गयी उल्टा धमकी दी जा रही थी ।181 में शिकायते की गई जिसकी जांच जनपद से ही कर दी गयी फिर जन सुनबाई में भी आबेदन दिया गया कोई कार्यवाही नही की गई इस बात को लेकर जब जनपद पंचायत के तत्कालीन मुख्यकार्यपालन अधिकारी प्रभात मिश्र को दी गयी तो उन्होंने नकल दिए जाने का आश्वासन देते हुए पुनः नकल का आबेदन देने को कहा एक महीने की डेट दी गयी पर नकल नही दी गयी बल्कि एक झूठा प्रतिवेदन बनवाकर आनन फानन में जिला पंचायत भेज दिया गया जनपद से भेजे गए प्रतिवेदन के बिषय में एक नोटिश दी गयी और जबाब मांगा गया और पूछ गया कि क्या आप सुनबाई के इच्छुक है जबाब में सुनबाई का बिकल्प चुनकर जबाब दिया गया । परंतु न तो पुनः कोई नोटिश न जबाब उसी फर्जीवाड़े का गुनाह ऐसे सचिब को दिया जो सालों से उसी सचिब को बनाया गया जो उसके नकल का आबेदन लगाया था। सपाक्स के पदाधिकारी यज्ञनरायण तिवारी कहते हैं कि मान भी लिया जय की सचिब द्वारा गलत किया गया होगा पर नकल के बार बार के आबेदनो के बावजूद नकल न दिया जाना स्पस्ट तौर पर क्या इशारा करता है।जबकि मनरेगा के नियम 2013 से ही इस पाकर बनाये गए है 1श्रमिक द्वारा ग्राम पंचायत में कार्यो की मांग हेतु आबेदन दिए जायेंगे जिसको रोजगार सहायक या सचिब जनपद पंचायत को अग्रेषित करेगे। 2 जनपद पंचायत मांगपत्र के आधार पर मास्टर रोल जारी करेगी। 3 ग्राम पंचायत की निर्माण एजेंसी स्थल पर मजदूरों की उपस्थिति दर्ज कर सप्ताह के अंत मे उपयंत्री मनरेगा को देगी जिसपर उपयंत्री कार्य के आधार पर मजदूरी का निर्धारण कर सहायक यंत्री से सत्यापित करवाकर aao के पास जमा कर देंगे। 4 aao द्वारा उक्त प्रक्रिया पूर्णकर मजदूरी मजदूरों के खाते में तथा सामग्री का भुगतान बेंडरो के खाते में fto के माध्यम से भुगतान करेगे। 5 अगर उक्त प्रक्रिया के पालन में लापरवाही की गई हो तो उसका मुख्य आरोपी aao जनपद पंचायत होंगे। अब यहां पर यह सबाल उठ रहा है कि जब ये प्रकिया हुई तो सरपंच सचिब उपयंत्री सहायक यंत्री के हस्ताक्षर युक्त कागजात तो जनपद में होंगे ही और अगर नही है तो aao कैसे भुगतान किए।पर यह पर सीधे निमित्त की गई aao द्वारा सीधे संपर्क बनाकर हेरा फेरी की गई और जब पता चला तो दोष किसी दूसरे पर मढ़ दिया गया। फिर एक सचिब को दोषी कैसे बनाये क्या प्रक्रिया की गई इनकी कुछ आधार रहे होंगे उन कागजातों की नकल देने में 3 साल से ज्यादा समय क्यो लग गया क्या मजबूरी रही होगी यह एक अजूबा नही तो क्या है ।ऐसा कौन सा प्रमाण मिल गया जिसके आधार पर एक सचिब को ही टारगेट बनाया गया और केवल एक सचिब को ही दोषी बना दिया गया बाकी सब ईमानदार यह बात क्या अजूबा नही लगती। अब सभी अधिकारियों को यज्ञनरायण ने आगाह किया है कि सत्यता की जांच की जाय अगर दोषी हो तो बिधिवत रिकभरी की जाय और अन्य बिधिक कार्यवाही की जाय। अन्यथा नकल दिलाई जाय जो सूचना के अधिकार के तहत सरकार द्वारा नियम हो अन्यथा ईंट से ईंट बजाने का काम करेगें ।