सीधी (ईन्यूज एमपी)- मीडिया सेल प्रभारी (लोक अभियोजन) सीधी द्वारा बताया गया कि आरोपी डॉ. आर.पी. सिंह (रामायण प्रताप सिंह) ने दिनांक 01.10.14 को जिला चिकित्सालय सीधी में पैथालॉजिस्ट के पद पर कार्य करते हुए फरियादी महेन्द्र जायसवाल से मनमुताबिक अच्छी एम.एल.सी. बनाने के एवज में 5,000/- रूपए रिश्वत की मांग की। फरियादी के निवेदन पर 1,000/- रूपए कम कर, 500/- रूपए बात-चीत के समय प्राप्त कर लिया, जिसकी लिखित शिकायत फरियादी द्वारा पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त संगठन रीवा को की गई, जिसकी पुष्टि उपरांत अपराध क्र. 450/14 पंजीबद्ध किया गया। अभियुक्त ने जिला चिकित्सालय सीधी में पैथोलॉजिस्ट के पद पर कार्यरत रहते हुए अपनी पदीय स्थिति का दुरूपयोग करते हुए स्वयं को लाभांवित करते हुए फरियादी से दिनांक 04.10.14 को मनमुताबिक अच्छी एम.एल.सी. रिपोर्ट बनाने के एवज में वैध पारिश्रमिक से भिन्न अवैध परितोषण के रूप में 3,500/- रूपए प्राप्त किया था। पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त संगठन रीवा के निर्देशन में दिनांक 04.10.14 को लोकायुक्त रीवा टीम के द्वारा लोकायुक्त निरीक्षक विद्यावारिधि तिवारी, लोकयुक्त निरीक्षक अरविंद तिवारी, आर. शैलेन्द्र मिश्रा, एवं अन्य के द्वारा 3,500/- रू. की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया। प्रकरण में दिनांक 23/01/15 को माननीय विशेष न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) सीधी के समक्ष विवेचना पश्चात् अभियुक्त के विरूद्ध अभियोग पत्र पेश किया गया, जहां विचारण के दौरान अभियोजन की ओर से 18 साक्षी पेश किए गए। साक्षीगण को माननीय न्यायालय के समक्ष आहूत कराये जाने मे आर. शैलेन्द्र मिश्रा, लोकायुक्त थाना रीवा का विशेष योगदान रहा। विशेष सत्र प्रकरण क्र. 01/15 में भारती शर्मा, जिला अभियोजन अधिकारी के कुशल निर्देशन में प्रशांत कुमार पाण्डेय, वरिष्ठ सहायक जिला अभियोजन अधिकारी, की सशक्त पैरवी किया जाकर अभियुक्त के विरूद्ध संदेह से परे धारा 7 एवं 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अपराध प्रमाणित कराये गये, परिणामस्वरूप आरोपी डॉ. आर.पी. सिंह ( रामायण प्रताप सिंह) को माननीय विशेष न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध किया गया। उक्त प्रकरण में दिनांक 20/12/19 को माननीय प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश / विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) सीधी द्वारा दोषसिद्धि का निर्णय पारित करते हुए आरोपी डॉ. आर.पी. सिंह ( रामायण प्रताप सिंह) को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 में 03 वर्ष का सश्रम कारावास तथा 2000 रू. अर्थदंड एवं धारा 13(2) में 04 वर्ष का सश्रम कारावास तथा 2000 रू. के अर्थदंड से दंडित किया।