सीधी(ईन्यूज एमपी)-राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली द्वारा दिये गये निर्देशों के पालन मे तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश नरेन्द्र प्रताप सिंह के मार्गदर्शन मे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा जिला न्यायालय सीधी मे संविधान दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सर्व प्रथम राहुल सिंह यादव न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के द्वारा संविधान की प्रस्तावना का वाचन किया गया जिसे समस्त न्यायाधीशगण, अधिवक्तागण, न्यायालयीन कर्मचारीगण एवं पैरालीगल वालेटियर्स द्वारा दोहराया गया। अपर जिला न्ययाधीश एवं सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सीधी मनीष कुमार श्रीवास्तव कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुये अपने उद्ववोधन मे कहा कि 51 क. मूल कर्तव्य -भारत के पत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-(क)संविधान का पालन करे और उसके आदर्शो संस्थाओ, राष्ट्रगान का आदर करें।(ख)- स्वतंत्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय अंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय मे संजोए रखे और उनका पालन करें। (ग)-भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुक रखे। (घ)-देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे। (ड)-भारत के सभी लोगो मे समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परें हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध है।(च)-हमारी समाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिक्षण करे। (छ)-वैज्ञानिक दृष्टिकोण,मानवाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें। (ज)-सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रखे।(झ)-व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियो के सभी क्षेत्रो मे उत्कर्ष की बढने का सतत् प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढते हुये प्रयत्न और उपलब्धि की नई उचाईयों को छू ले।(अ)- यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने,यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिये शिक्षा के अवसर प्रदान करे। द्वितीय अपर जिला न्यायाधीश आर.पी.कतरौलिया के मूल कर्तव्यो के स्त्रोत के बताया कि विश्व मे के किन्ही भी लोकतत्रात्क संविधानो मे केवल जापान को छोउकर मूल कर्तव्यो का स्पष्ट उल्लेख नही किया गया है। ब्रिटेन, कनाडा और अस्ट्रेलिया मे नागरिको के अधिकार और कर्तव्य समान्य और न्यायिक निर्णयो द्वारा विनियमित होते है। अमेरिका के संविधान मे केवल मूल अधिकारो का भी उल्लेख है। इसके बावजूद उपर्युक्त देशो के नागरिको कर्तव्यपरायण है और समाज एवं देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व का पूर्णरूपेण निर्वाह करते है। इसके विपरीत, साम्यवादी देशो के संविधानो मे अधिकारों की अपेक्षा नागरिक के मूल कर्त्तव्यो पर विशेष वल दिया जाता है और उसका स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है 1993 मे बने स्वतंत्र देशो के राष्ट्रकुल के संविधान लागू होने पूर्व सोवियत संघ का स्थान इन देशो मे प्रमुख था। इसी तरह तृतीय अपर जिला न्यायाधीश योगराज उपाध्याय ने अपने उद्ववोधन मे कहा कि संविधान मे कर्तव्यो की आवश्यकता -काग्रेेस सरकार द्वारा नियुक्ति संविधान संशोधन समिति का मत था कि जहां संविधान मे नागरिको के मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है,वहॉं मूल कर्तव्यो का भी समावेश होना चाहिये। अधिकार और कर्तव्य एक -दूसरे के अन्योन्याश्रित होते है। प्रस्तुत संशोधन संविधान इसी कमी दूर करने के लिये पारित किया गया है समिति के सदस्यों का यह विचार था कि भारत मे लोग केवल अधिकारों पर जोर देते है, कर्त्तव्यो पर नही। किन्तु संविधान-समिति के सदस्यों का यह मत विल्कुल गलत है प्रारंभ से ही भारत मे कर्तव्यो के पालन पर विशेष बल दिया जाता रहा है। भारत के सभी धर्मग्रन्थो मे कर्तव्य-पालन का ही उपदेश प्रमुख है। गीता और रामायण जैसे महान् ग्रन्थ हमे अपने अधिकारों की परवाह किये बिना अपने कर्त्तव्यो के पालन करने का ही उपदेश देते है कर्तव्यो का पालन करना व्यक्ति के हित मे है और इससे समाज का भी हित होता है। संविधान दिवस पर अध्यक्ष जिला अधिवक्ता संघ सीधी वृजेन्द सिंह अध्यक्ष, विशेष न्यायाधीश ममता जैन, प्रधान न्यायाधीश सुनील कुमार जैन, प्रथम अपर जिला न्यायाधीश डी.एल. सोनिया, चतुर्थ अपर जिला न्यायाधीश राजेश सिंह पंचम अपर जिला न्यायाधीश उमेश कुमार शर्मा मुख्य न्यायिक मजिस्टेट संजय वर्मा, न्यायिक मजिस्ट्रेटगण श्रीमती मिनी गुप्ता, मुकेश गुप्ता, अजय प्रताप सिंह यादव, सविता वर्मा, अधिवक्तागण पैरालीगल वालेटियर्स, न्यायालय अधीक्षक, न्यायालय उपाधिक्षक, न्यायालय के कर्मचारी गण, विधिक सेवा प्राधिकरण कार्यालय के कर्मचारीगण आदि उपस्थित रहे।