इंदौर[ ई न्यूज़ एमपी ] मध्यप्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं मुंगावली विधायक महेंद्रसिंह कालूखेड़ा बुधवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। कालूखेड़ा को उनके गृहगांव कालूखेड़ा में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। बेटी गरिमा और कनक सिंह ने पिता को मुखाग्नि दी। अंतिम यात्रा सीएम शिराजसिंह चौहान, पूर्व सीएम दिग्विजयसिंह, मप्र विस उपाध्यक्ष डॉ राजेंद्र कुमार सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।बुधवार सुबह साढ़े 10 बजे उनके निवास से हजारों लोगों के बीच जब उनकी अंतिम यात्रा निकली तो हर आंख नम हो गई। अर्थी को कंधा देते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की आंखें भी भीग गईं। यात्रा गांव से होते हुए एक किलोमीटर दूर सेमलिया रोड स्थित उनके फॉर्म परिसर पहुंची, जहां उन्हें गार्ड ऑफ आॅनर दिया गया। इसके बाद बेटी गरिमा सिंह ने सभी रस्में पूरी की और छोटी बहन कनक के साथ पिता को मुखाग्नि दी। उनकी अंत्येष्टि में ऐसा हुजूम था कि लोगों ने पेड़ पर चढ़कर अपने चहेते नेता को विदा किया। ऐसा रहा मंत्री जी का सफर- महेंद्रसिंह चंद्रावत कालूखेड़ा की काबिलियत राजमाता ने पहचान ली और वे कालूखेड़ा को ग्वालियर ले गईं। वहां वे माधवराव सिंधिया के संपर्क में आए। पायलेट की ट्रेनिंग कर एयरफोर्स में चयनित हो चुके कालूखेड़ा को माधवराव ने कहा- महेंद्र आप राजनीति में आओ। आप जैसे युवा नहीं आएंगे तो कौन आएगा? उसके बाद 1972 में महेंद्रसिंह ने अशोकनगर सीट पर जनसंघ के टिकट पर विधायक का पहला चुनाव जीता। 26 साल की उम्र में ही विधायक बने और यहीं से एयरफोर्स की उड़ान छोड़ चुके महेंद्रसिंह ने राजनीति में भी ऊंची उड़ान भरी। 1984 में जब माधवराव सिंधिया अटलबिहारी वाजपेयी को हराकर राष्ट्रीय पटल पर चर्चा में आए तो सिंधिया की गुना सांसद सीट खाली हो गई। सिंधिया ने यह सीट कालूखेड़ा को दे दी। महेंद्रसिंह पहली बार सांसद बने। इसके बाद राजमाता तो जनसंघ व भाजपा में रहीं, लेकिन माधवराव के साथ कालूखेड़ा भी कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने कालूखेड़ा को राजमाता के सामने ही मैदान में उतार दिया। उन्होंने अपना उपनाम चंद्रावत के बजाय कालूखेड़ा रख लिया।