अभिलाष तिवारी पथरौला - जिले में स्थित संजय टाइगर रिजर्व में एक बार फिर एक मेहमान बाघ की आमद हुई है जिसे मुकुंदपुर टाइगर सफारी की टीम द्वारा सतना से पकड़ कर लाया गया है और इसके साथ ही संजय टाइगर रिजर्व के कुनबे में एक और बाघ की वृद्धि हो गई है। और अब देखना यह है कि यह मेहमान संजय टाइगर रिजर्व में कितने दिन का मेहमान रहता है क्योंकि विगत आंकड़ों पर गौर करें तो आए मेहमान जल्द ही विदा हो जाते हैं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक बीते दिनों मुकुंदपुर रेंज में इस बाघ के पग चिन्ह मिले थे और विचरण करते इस बाघ की दहाड़ से मुकुंदपुर क्षेत्र के ग्रामीणों में कई दिनों तक लगातार दहशत का माहौल था जिसे लेकर वन विभाग सतना की लगातार निगरानी के बाद 3 घंटे से अधिक रेस्क्यू उपरांत इसे पकड़ा जा सका था। इसके बाद ऐसे रिजर्व क्षेत्र की तलाश की गई जहां बाघ के लिए पर्याप्त शिकार के लिए जंगली जीव जंतु मिल सके। ऐसे में संजय टाइगर रिजर्व के वस्तुआ रेंज को चुना गया है। कहने को तो सीधी जिले में संजय टाइगर रिजर्व स्थित है, लेकिन जिले के लोगों को उनकी कितनी जानकारी उपलब्ध है यह तो सर्वविदित है संजय टाइगर रिजर्व एक अत्यंत गोपनीय विभाग बनकर रह गया है जिसके अंदर क्या गतिविधियां होती हैं इससे केवल वहां के अधिकारी ही वाकिफ रहते हैं इस विभाग को इस कदर से खुफिया बनाया गया है कि शायद देश की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियां भी इसके सामने फीकी लगने लगे। कहने को तो संजय टाइगर रिजर्व में बाघों का लंबा चौड़ा कुनबा है, आंकड़ों पर जाएं तो वर्तमान में 25 बाघ है और विभाग द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर, लंबे चौड़े क्षेत्र की रखवाली हेतु बड़े से लेकर छोटे तक अधिकारी कर्मचारियों की फौज खड़ी कर रखी गई है। टाइगर की आबादी बढ़ाने का काम किया जा रहा है, लेकिन चाक-चौबंद व्यवस्थाओं के बीच भी आए दिन बाघ व अन्य जानवरों के मौत की खबरें सामने आ रही हैं कई बार तो विभाग द्वारा मौत की खबरों को सार्वजनिक ही नहीं होने दिया जाता और फिर इतने खर्च और व्यवस्था के बाद भी संजय टाइगर रिजर्व बाघों की कब्रगाह बनता जा रहा है। वनांचल क्षेत्र में स्थित टाइगर रिजर्व अब सच में रिजर्व बन गया है,जब इसकी जानकारी हि सार्वजनिक नहीं होगी तो उसका प्रचार प्रसार कैसे होगा।यदि जंगल में किसी जानवर कि मौत भी हो जाती है तो विभाग को कई हफ्तों तक उसकी जानकारी ही नहीं रहती पिछले दिनों में कई बाघों की मौत संजय टाइगर रिजर्व में हो चुकी है और विभाग को उनकी लाशें या जानकारी 15 से 20 दिनों बाद प्राप्त हुई है कहने को तो टाइगर की बराबर ट्रैकिंग की जा रही है उसके लिए दल बनाए गए हैं फिर चूक कहां हो रही है, देखने में यह भी आया है कि यदि किसी जानवर की मौत हो गई है और उसकी तलाश की जा रही है तो इस बात को इतना गोपनीय रखा जाता है कि मानो विभाग द्वारा ही जानवर की मौत में संलिप्तता है और छोटे कर्मचारियों के तो फोन नंबर तक बंद करा दिए जाते हैं या जप्त कर लिए जाते हैं उसके बाद कार्यवाही होती है तब कहीं जाकर कुछ खास चुनिंदा लोगों तक इसकी सूचना पहुंचती है आखिर टाइगर को लेकर संजय टाइगर रिजर्व इतनी लापरवाही क्यों बरत रहा है जबकि गोपनीयता तो अव्वल दर्जे की है ही।