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सीधी बना प्रदेश का सबसे गर्म जिला, पारा 44 से अधिक, अभिभावकों ने की स्कूल बंद करने की मांग

भोपाल/सीधी (ईन्यूज़ एमपी): मध्य प्रदेश में गर्मी अपने चरम पर है और सीधी जिला इस समय सबसे ज्यादा झुलस रहा है। मौसम विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को सीधी में अधिकतम तापमान 44.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो प्रदेश में सबसे ज्यादा था। इस खतरनाक हीटवेव के चलते लोगों में बेचैनी बढ़ गई है, खासकर बच्चों को लेकर अभिभावक गंभीर चिंता में हैं।

सरकार ने पहले ही 1 मई से 15 जून 2025 तक गर्मी की छुट्टियों की घोषणा कर दी है, लेकिन स्कूल अभी खुले हैं और अभिभावकों के मन में यह डर गहराता जा रहा है कि क्या बच्चों को 1 मई तक स्कूल भेजना सुरक्षित रहेगा?

सीधी के साथ-साथ सतना (43.6°C), टीकमगढ़ (43.4°C), और गुना (43.2°C) जैसे जिलों में भी पारा 43 डिग्री के पार पहुंच गया है। मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले कुछ दिनों में भी लू का प्रभाव जारी रहेगा।

मौसम केंद्र भोपाल के अनुसार, रीवा, शहडोल, सीधी और आसपास के जिलों में औसत न्यूनतम तापमान भी सामान्य से 2°C तक कम बना हुआ है, जिससे दिन-रात दोनों ही समय गर्मी का असर बना हुआ है।

बच्चों की सेहत पर खतरा
तेज गर्मी और लू के इस माहौल में अभिभावकों का कहना है कि इतने अधिक तापमान में बच्चों को स्कूल भेजना बीमारियों को न्योता देने जैसा है। डिहाइड्रेशन, लू लगना, सिरदर्द और चक्कर जैसे लक्षणों का डर बना हुआ है।

सीधी निवासी एक अभिभावक ने कहा, "सरकार ने 1 मई से छुट्टी घोषित की है लेकिन अभी की स्थिति को देखते हुए हमें डर लग रहा है कि कहीं इससे पहले ही बच्चे बीमार न हो जाएं।"

छुट्टी बढ़ाने की उठ रही मांग
अभिभावकों ने मांग की है कि यदि तापमान 44 डिग्री पार कर गया है तो मौजूदा हालात को देखते हुए स्कूलों की छुट्टियां तत्काल प्रभाव से शुरू की जाएं। निजी स्कूलों में भी गर्मी के कारण उपस्थिति घटती जा रही है।

सुझाव और सावधानी
मौसम विभाग और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बच्चों, बुजुर्गों और सामान्य लोगों को दोपहर 12 से शाम 4 बजे के बीच बाहर निकलने से बचने की सलाह दी है। साथ ही पानी का अधिक सेवन, हल्के और सूती कपड़े पहनना और सीधी धूप से बचाव की हिदायत दी गई है।

मौसम की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार को स्कूली बच्चों के हित में जल्द कोई ठोस निर्णय लेना होगा। सीधी और आसपास के जिलों में हालात चिंता जनक हैं और यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है।

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