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Home सीधी दर्पण सत्ता परिवर्तन के साथ उठी मंत्री की मांग,शिव के गण में सीधी से किसका होगा नाम...

सत्ता परिवर्तन के साथ उठी मंत्री की मांग,शिव के गण में सीधी से किसका होगा नाम...

सीधी (सचीन्द्र मिश्र )- एक अंतराल के बाद पुनः प्रदेश में कमल खिल गया और इसके साथ ही लोगों को कंठस्थ एक नाम शिवराज फिर सीएम बन गया साथ ही उनके सीएम बनते ही उनके नाम एक कीर्तिमान भी बन गया कि एक व्यक्ति जो चौथी बार प्रदेश के मुखिया का दायित्व सम्हालेगा,जिले में इस बात को लेकर काफी हर्ष है, समर्थकों में उत्साह है और हो भी क्यों न बनवास के बाद राजपाठ जो मिला है और जिलेवासियों ने अपने चुनाव में भी भाजपा को ही चुना था, लेकिन परिस्थितियों ने प्रदेश कि कमान किसी और को सौंप दी। खैर अब तो प्रदेश में भाजपा का बनवास खत्म हो गया लेकिन अब ये देखना होगा कि जिले का अज्ञातवास खत्म होता है या नही, क्यूंकि लगातार भाजपा को जिले में बढ़त देने के बाद भी जिला मंत्री के इंतजार में रहा है,बीते विधानसभा चुनाव में बेशक कांग्रेस ने जिले की इस मांग को समझते हुए कमलेश्वर पटेल की ताजपोशी कि थी लेकिन सरकार के जाने के साथ ही मंत्री जी का डिमोशन हो गया।

बता दें कि पिछले कई वर्षों से सीधी भाजपा के अनूकूल ही रहा है,सांसद, भाजपा, विधायक सब भाजपा ...... और तो और अभेद किले को भी भाजपा के लिए सीधी वासियों ने भेद दिया लेकिन जब बात करें सीधी से प्रदेश में पहुंचने वाले जन प्रतिनिधियों कि तो भाजपा कि पारी में अब तक जिले को अछूता रखा गया है जबकि देखा जाए तो जिले से एक बार नहीं कई कई बार लगातार अपनी राजनीतिक व रणनीति का लोहा मनवाने वाले जनप्रतिनिधि भी और वनांचल से आदिवासियों के बीच अपनी खास जगह बनानेवाले सरल सहज व योग्य जनप्रतिनिधि भी है, वहीं लगातार संघर्ष के बाद अलग इतिहास रचने वाले असंभव को संभव करने वाले जनप्रतिनिधि भी है जिनके द्वारा कांग्रेस के धुरंधरों को धूल चटाई गई है।

बता दें कि जिले ने प्रदेश व देश को दिग्गज नेता दिए हैं जिले से शुरूआत कर मुख्यमंत्री व केन्द्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले नेता भी है व प्रदेश में अपनी अलग छाप बनाने वाले मंत्री भी हुए हैं,और तो और कांग्रेस काल में तो जिले से एक साथ दो दो मंत्री हुए हैं लेकिन जब जब बात भाजपा शासन काल कि आती है तो जिले को अन्य जिले के नेताओं कि ओर देखना पड़ता है, हर बार भाजपा का शासन आते ही सीधी से मंत्री चुने जाने कि मांग जोर पकड़ती है लेकिन महज मांग ही रह जाती है,जनता से चुने हुए दूल्हे बिना वरमाला के ही भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाते हैं और ढांढस का झुनझुना थमा दिया जाता है,और ए केवल एक बार कि बात नहीं है लगातार यही होता रहा है, ढांढस कि डोर थामें इन जनप्रतिनिधियों व जनमानस में एक बार फिर आस जगी है कि इस बार तो भाजपा जिले से सौतेलापन नहीं करेंगी और जिले कि त्रिमूर्ति मे से किसी को तो मंदिर में जगह देगी अब किसे देती है यह तो उसके संगठन कि नीति तय करेगी पर ‌अगर वरिष्ठता क्रम देखें तो सीधी का हक पहले पायदान पर है , और कंही अबकी बार बीजेपी चूक करती है तो नेता और बोटर दोनो के साथ कुठाराघात से कम नही होगा । वहरहाल आदिवासी हित कि ओर जाए तो धौहनी व कीर्तिमान रचने वालों में चुरहट को नहीं भुलाया जा सकता पर तीन में से कम से कम वरिष्ठता क्रम को ख्याल में रखेंते हुये एक को तो जगह मिलने पर ही सीधी का योगदान सार्थक साबित होगा।

अंत में देखना होगा कि शिव के गण मंदिर तक सीधी से पंहुच पाते हैं या नही जनमानस को बेफिक्र इंतजार है ताजपोशी का ....,समझा जाता है कि अबकी बार पिछले पंद्रह सालों की पुनरावृत्ति नही होगी अन्यथा हाल वही होंगें जो हुये हैं ।

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