भोपाल (ईन्यूज एमपी)- मध्य प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण का मामला ऐसा उलझा कि हजारों कर्मचारी पदोन्नति के इंतजार में सेवानिवृत्त हो गए और हजारों को इसका इंतजार है। उच्च श्रेणी के अधिकारियों की स्थिति अलग है और इससे अन्य अधिकारी-कर्मचारी नाखुश हैं। दरअसल, साढ़े पांच साल से आइएएस, आइपीएस और आइएफएस को समय पर पदोन्नति मिल रही है और अन्य कर्मचारी मुंह ताक रहे हैं। कर्मचारियों का आरोप है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की पदोन्नति अप्रभावित रहने के कारण ही सशर्त पदोन्नति का रास्ता नहीं निकल पा रहा है। रोक की वजह से अब तक करीब 80 हजार कर्मचारी बगैर पदोन्नति सेवानिवृत्त हो गए हैं। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मध्य प्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति (स्टेटस को) रखने का आदेश दिया है। पदोन्नति में आरक्षण के विवाद का हल निकालने मध्य प्रदेश सरकार ने मंत्रियों की उपसमिति बनाई है, जिसकी कुछ बैठकें हो गई हैं लेकिन परिणाम अब तक नहीं आया है। चुनावी फायदा लेने के लिए दो साल बढ़ा दी थी सेवानिवृत्ति आय वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सरकार ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी। सरकार को उम्मीद थी कि इससे चुनाव में नुकसान भी नहीं होगा और तब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाएगा। लेकिन फैसला आने के बाद भी पदोन्नति का रास्ता नहीं निकल रहा है। उच्च पद का प्रभार दिया, पर लाभ नहीं गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने सबसे पहले पुलिस विभाग में उच्च पद का प्रभार देने की शुरुआत की। इससे बहुत से कर्मचारियों को राहत तो मिली लेकिन उन्हें आर्थिक लाभ नहीं मिल पा रहे हैं। वर्ष 2018 में भारत सरकार ने कर्मचारियों को सशर्त पदोन्नति देने का आदेश जारी किया था। इस पर राज्य सरकार नियम नहीं बना पाई।