भोपाल (ईन्यूज एमपी)- एमपी राज्य सूचना आयोग ने बुरहानपुर के तत्कालीन CMHO डॉ. विक्रम सिंह के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। वहीं हेल्थ कमिश्नर आकाश त्रिपाठी को नोटिस जारी किया है। दोनों अफसरों पर 2 साल से आयोग के आदेशों की अनदेखी भारी पड़ी है। आयोग ने हेल्थ कमिश्नर त्रिपाठी को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए समन भी जारी किया है। गिरफ्तारी वारंट राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने जारी किया है। 5 हजार रुपए का जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी करते हुए इंदौर DIG को वारंट तामील के आदेश दिए हैं। CMHO ने RTI के एक अपील प्रकरण में पहले सुनवाई के समय आदेश की लगातार अनदेखी की थी। बाद में आयोग ने जब दोषी अधिकारी पर 25 हजार के जुर्माने की कार्रवाई की तो जुर्माना वसूलने वाले अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। आयोग ने सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत प्रकरण में जांच दर्ज कर समन और जमानती अरेस्ट वारंट जारी करने के आदेश दिए हैं। 30 दिन में मिलनी थी जानकारी लगा दिए 3 साल दिनेश सदाशिव सोनवाने ने बुरहानपुर CMHO डॉक्टर सिंह के पास अक्टूबर 2017 में RTI आवेदन लगाया था। आवेदन में बुरहानपुर जिले के स्वास्थ्य विभाग में वाहन चालकों की नियुक्ति और पदस्थापना संबंधित जानकारी मांगी थी, लेकिन डॉ. सिंह ने कोई भी जवाब 30 दिन में नहीं दिया। इसके बाद आवेदक ने प्रथम अपील दायर की तो प्रथम अपीलीय अधिकारी ने जानकारी देने के आदेश जारी कर दिए। राज्य सूचना आयुक्त की पहली बड़ी कार्रवाई आयोग ने डॉ. विक्रम सिंह को अपना जवाब पेश करने के लिए लगातार समन जारी किए। 18 अक्टूबर 2019 से 10 फरवरी 2020 तक 5 समन जारी किए गए। बावजूद डॉ. सिंह आयोग के समक्ष हाजिर नहीं हुए। आयोग ने समन में डॉ. सिंह की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के कमिश्नर को भी निर्देश दिए थे, लेकिन स्वास्थ्य विभाग लापरवाह रहा। आयोग ने 16 दिसंबर 2020 को CMHO डॉ. सिंह पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया और साथ ही कमिश्नर स्वास्थ विभाग को 1 महीने में पेनल्टी की राशि जमा न होने पर डॉ. सिंह के वेतन से काटकर आयोग में जमा करने के लिए कहा। स्वास्थ्य विभाग के कमिश्नर हेल्थ कमिश्नर को 27 अगस्त 2021 तक चार बार चिट्ठी लिखकर सैलरी में से काटकर आयोग में जमा करने को कहा, लेकिन न तो राशि जमा हुई और न ही वे आयोग के समक्ष हाजिर हुए। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में कहा कि अधिकारी की ओर से जानबूझकर कर आयोग के आदेश की अवहेलना की गई। सिंह ने यह भी कहा कि आयोग के आदेश के बावजूद कार्रवाई न करने से उनकी नियत साफ झलकती है और यह मध्यप्रदेश RTI फीस अपील नियम 8 (6) (3), 2005 का उल्लंघन है। आयुक्त की तल्ख टिप्पणी राज्य सूचना आयुक्त सिंह ने डॉ. सिंह को कमिश्नर हेल्थ पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों अधिकारियों का व्यवहार संसद द्वारा स्थापित पारदर्शी और जवाबदेह सुशासन सुनिश्चित करने वाले RTI कानून का मखौल उड़ाने वाला है। सिंह ने कहा कि RTI Act, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) का भाग होने से हर भारतीय का मूल अधिकार है, पर इन अधिकारियों को आम जनता के मूल अधिकार और कायदे कानून की भी परवाह नहीं है। आयुक्त सिंह ने इन दोनों अधिकारियों की कार्रवाई को आयोग के अपीलीय प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने वाला बताया है। राज्य सूचना आयुक्त ने अपने आदेश में कहा कि आयोग इस तरह के RTI एक्ट के लगातार खुलेआम उल्लंघन को मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकता है। अगर इस तरह के उल्लंघन को मान्य कर दिया जाए तो RTI कानून मजाक बनकर रह जाएगा। क्या है नियम राज्य सूचना आयुक्त सिंह के मुताबिक RTI एक्ट की धारा 7 (1) के तहत अगर 30 दिन के अंदर जानकारी नहीं मिलती है तो धारा 20 के तहत 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम 25 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता है। दोषी अधिकारी को 1 महीने का समय जुर्माने की राशि आयोग में जमा करने के लिए दिया जाता है। इसके बाद मध्यप्रदेश फीस अपील नियम 2005 में नियम 8 (6) (3) के तहत आयोग दोषी अधिकारी के कंट्रोलिंग अधिकारी को जुर्माने की राशि को वसूलने और साथ में दोषी अधिकारी के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई के निर्देश देता है। नियम के अनुसार आयोग का आदेश मानना संबंधित कंट्रोलिंग अधिकारी के लिए जरूरी होता है। सिंह ने बताया कि नियम के मुताबिक आयोग जुर्माने की राशि को वसूलने के लिए सिविल कोर्ट की शक्तियों का उपयोग करता है। आयोग द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी राज्य सूचना आयुक्त सिंह ने गिरफ्तारी वारंट जारी करते हुए DIG इंदौर डिवीजन को निर्देश दिए हैं कि आयोग के वारंट की तामील करा कर दोषी अधिकारी डॉ. सिंह को गिरफ्तार कर आयोग के समक्ष 11 अक्टूबर 2021 को दोपहर 12 बजे हाजिर करें। आयोग ने इस वारंट में कहा है कि अगर डॉ. विक्रम सिंह 5 हजार की जमानत देकर अपने आप को आयोग के समक्ष 11 अक्टूबर की पेशी में हाजिर होने के लिए तैयार है तो उनसे जमानत की राशि 5 हजार रुपये लेकर उन्हें आयोग के समक्ष हाजिर होने के लिए रिहा कर दिया जाए।