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"पुरातत्व, पर्यटन और संस्कृति", नागपोखर, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और सीधी......

(लेखक श्री श्रेयस गोखले जिला पुरातत्व, पर्यटन एवं संस्कृति परिषद् सीधी के प्रभारी अधिकारी हैं)

सीधी जिले का कुसमी क्षेत्र हर स्वरूप में असाधारण है। वन, वन्यजीव, पर्यावरण, जनजातीय संस्कृति, अध्यात्म, पुरातत्व आदि से लेकर शौर्य और वीरता में भी कुसमी सदा से अग्रणी रहा है।

मवई नदी से बनी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ सीमा से लगा पश्चिमी कुसमी का नागपोखर ग्राम अपने में वीरता का इतिहास समाए हुए है। इस ग्राम का नाम नागपोखर पड़ने का कारण है इसके मध्य में स्थित एक पोखर (तालाब) जिसके तट पर पेड़ से टिकी हुई नागदेवता की एक मूर्ति स्थित है। यह मूर्ति अत्यंत प्राचीन है व स्थानीयजनों के लिए आस्था का प्रतीक है। जनजातीय परंपरा की यह विशेषता है कि इसमें आस्था के सभी स्थानों की प्राकृतिक स्वच्छता व सौंदर्य बनाए रखना बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यही मान्यता इस नाग मूर्ति व पोखर की स्वच्छता व सुंदरता से भी झलकती है।

इस ग्राम के वासियों‌ की जनस्मृति में आज भी एक वीरता की कथा गुंजायमान है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों ने विभिन्न स्थानों पर स्थानीय नेतृत्व के अधीन अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध प्रारंभ किये जिनमें बैरकपुर, बंगाल, बिहार, मेरठ, झांसी, कानपुर, दिल्ली, नीमच, ग्वालियर, शिवपुरी आदि प्रमुख थे। इसी दौरान तत्कालीन रीवा रियासत के मनकहरी क्षेत्र के ठाकुर रणमत सिंह जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खड़ा किया। सीधी के वरिष्ठ इतिहास प्राध्यापक व इतिहासकार डॉ. संतोष सिंह चौहान के शोध अनुसार ठाकुर रणमत सिंह जी ने केवटी की गढ़ी में अंग्रेज अधिकारी आसबार्न से लड़ाई लड़ी जिसमें अनेक अंग्रेज सैनिक मारे गये। अंग्रेजों के मारे जाने की सूचना प्राप्त होने पर अंग्रेजों ने एक और बड़ी टुकड़ी को ठाकुर रणमत सिंह को पकड़ने के लिए उनके पीछे लगा दिया। अंग्रेजों को भ्रमित करते हुए उन्होंने अपनी सेना के साथ दक्षिण की ओर का वन मार्ग चुना। इस रास्ते पर आगे चलते हुए जंगल के बीच अपने सैनिकों के साथ रुकने के लिए नागपोखर ग्राम को चुना। स्थानीय जनों के अनुसार गांव के बाहरी क्षेत्र में उनकी छावनी बनी एवं ग्रामवासियों ने उन्हें आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई। ग्राम के एक प्रमुख व्यक्ति तत्कालीन गिरदावर जिनके‌ घर में‌ प्रायः दूर से आने वाले व्यापारी रुका करते थे, उनके घर में स्वयं ठाकुर रणमत सिंह जी ने एक रात्रि विश्राम किया। आज भी इस ऐतिहासिक घर का स्वरूप काफी कुछ वैसा ही है व इसके स्तंभ, चौखट, छत आदि भी उसी समय की भव्यता को स्वयं में संजोए हुए हैं।

ठाकुर रणमत सिंह जी को अपने घर पर स्थान देने वाले सज्जन के पौत्र श्री अवधराज सिंह जी स्वयं भी गिरदावर थे व अपने दादाजी से सुने हुए वर्णन से डॉ चौहान को स्वयं अवगत कराया व प्रमाण प्रस्तुत किए थे। आज अवधराज सिंह जी की तीसरी पीढ़ी उसी घर में निवास कर रही है व अपने ग्राम के गौरव को आज भी याद करती है।

यहां यह घटना विचारणीय है कि अंग्रेजो़ं के इतने बड़े शत्रु को अपने ग्राम और घर में स्थान देने का परिणाम जानते हुए भी ग्रामवासियों ने उन्हें आश्रय दिया। यह बात निश्चित ही पूरे ग्राम के साहस, वचनबद्धता व स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति में सहभागिता की द्योतक है।

सीधी जिला विशेषकर कुसमी क्षेत्र व नागपोखर का यह सौभाग्य ही है कि इसे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अप्रत्यक्ष रूप से ही सही पर सहभागी बनने व इतने महान क्रांतिकारी को आश्रय देने का अवसर मिला। यह स्थान स्वतंत्रता आंदोलन से अभिप्राणित होने वाले हर व्यक्ति के लिए तीर्थ के तुल्य है।

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