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Home सीधी दर्पण विंध्य में भाजपा विधायक क्या बगावत कर सकते हैं ॰ ॰ ॰ ? : लॉक डाउन में पीएम आयेगें ?

विंध्य में भाजपा विधायक क्या बगावत कर सकते हैं ॰ ॰ ॰ ? : लॉक डाउन में पीएम आयेगें ?

करोना संक्रमण से परे एक खबर विंध्य में तेजी से फैलाई जा रही है कि बदवार की कैमोर घाटी में लगे सौर उर्जा संयंत्रों के उद्घाटन हेतु प्रधानमंत्री कार्यालय से जानकारी मंगाई गई है। इसमें कितनी सच्चाई है ? प्रधानमंत्री कार्यालय से चाही जा रही जानकारी को वायरल करने के पीछे निहित स्वार्थ या साजिश क्या है ? कुछ-कुछ समझ में आ रहा है। मध्य प्रदेश में नवीन मंत्रिमंडल में विंध्य से कौन मंत्री बनेगा ? यह उसका ही ताना-बाना है, क्योंकि अबकी न तो मुख्यमंत्री उतने पावरफुल बचे हैं, जितना वह पूर्ववर्ती 10 सालों में रहे हैं और न ही विंध्य के लाड़ले मंत्री पर यहां के विधायक ऐतबार कर रहे हैं। बागी हो रहे सुरों को दबाने कहीं पीएमओ का सहारा तो नहीं लिया जा रहा है ?

काबिलेगौर है कि मौजूदा लाक डाऊन की सामाजिक दूरी बनाये रखने की गाईड लाईन के तहत जब देश में शादी-ब्याह, अंतिम संस्कार जैसे सामाजिक कृत्यों की मनाही है एैसे में प्रधानमंत्री रीवा आकर उद्घाटन समारोह में आने की कैसे योजना बना सकते हैं ? प्रधानमंत्री आयेंगे तो लाखों लाख की संख्या में लोगों को जोड़ा जायेगा, तब संभाग में पैर पसार रहे कोविड-19 वायरस के संक्रमण के फैलाव को कौन रोक पायेगा ? जबकि स्वयं प्रधानमंत्री वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये ही अपनी बात व काम कर रहे हें।

मध्य प्रदेश सत्तरूढ़ हुई भाजपा के पास कुल 107 विधायकों का संख्याबल है। उनमें से अकेले विंध्य से 36 विधायक हैं। विगत 15 सालों में भाजपा की ओर से रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ला, विंध्य के सर्वशक्तिमान नेता रहे हैं। लेकिन जोड़तोड़ से बनी सरकार में श्री शुक्ला जी के साथ रीवा जिले से सिर्फ 3 विधायक ही खड़े नजर आते हैं। अन्य 5 विधायकों ने अपनी मंशा उच्च नेतृत्व के समक्ष व्यक्त कर चुके हैं।

मौजूदा समय में भाजपा की मूल शाखा से शेष रहे जन प्रतिनिधियों में अकेले नागौद विधायक नागेन्द्र सिंह हैं, जो जनसंघी हैं। नागौद विधायक के बाद दूसरा नाम सीधी विधायक केदार नाथ शुक्ल का है। वह स्व. कुशाभाऊ ठाकरे के सानिध्य में 1984 में ही इस संस्था से जुड़ गये थे। अन्य वरिष्ठ विधायक संयोगवश भाजपा की शोभा बढ़ा रहे हैं। रीवा जिले के ही अन्य वरिष्ठ विधायक तो तत्कालीन अमहिया सरकार के भयवश भाजपा की शरण में आये।

विंध्य के शहडोल संभाग में भी बिसाहूलाल सिंह के भाजपा प्रवेश के साथ ही भाजपा विधायकों का गणित गड़बड़ा गया है। पंच मंत्रिमंडल में मानपुर विधायक सुश्री मीना सिंह को कैबिनेट में शामिल किये जाने के बाद संभाग के आदिवासी नेतृत्व को मौका देने के साथ ही, मंत्रीपद की प्रत्याशा में कांग्रेस छोडकर भाजपा का दामन थामने वाले बिसाहूलाल सिंह भी भाजपा के उम्र दराज फार्मूले में फंसते नजर आ रहे हैं। सुगबुगाहट है कि उनकी बजाय पुत्र को टिकट दिया जा रहा है। यह प्रयोग वह उमरिया जिले में आदिवासी नेता ज्ञान सिंह के साथ किया जा चुका है।

मीडिया में इस समय मंत्रीमंडल को लेकर एक सुनियोजित ताना-बाना बुना जा रहा है। सोशल इंजीनियरिंग के तहत् रीवा के राजेन्द्र शुक्ला व सीधी के केदार नाथ शुक्ल में से कौन ब्राह्मण नेता मंत्री बनाया जायेगा ? मीडिया की सुर्खियों में रहता है, सबके अपने-अपने कयास हैं। सीधी विधायक केदार नाथ शुक्ल का नाम पिछले 15 सालों से हर मंत्रिमंडल गठन से लेकर पुर्नगठन तक सुर्खियों में रहता हे। किन्तु हमेशा अंतिम समय में वह सूची से नादारद रहते हें।

केदार नाथ में चाटुकारिता का अभाव व दबंग छवि उन्हें मंत्री की कुर्सी में बैठने नहीं दे रही है। इसके ठीक विपरीत राजेन्द्र शुक्ल इन्हीं सब राजनैतिक योग्यताओं के चलते बाजी मार ले जाते हैं। तीसरा नाम का.गिरीश गौतम का उभरा है। श्री गौतम, पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल को मंत्री मंडल से बाहर रखे जाने की मुहिम का नेतृत्व कर रहे हैं। श्री गौतम ने विंध्य के सफेद शेर कहे जाने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता स्व. श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी को शिकस्त दी थी।

विंध्य में मुख्यमंत्री की पहली पसंद राजेन्द्र शुक्ल ही हो सकते हैं। लेकिन 36 में से 32 विधायकों के बागी स्वर की सुनवाई कहीं तो होगी ? वैसे भी अबकी बार शिवराज सिंह को मंत्रिमंडल के गठन में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ सकता है। सिंगरौली जिले से पिछड़े वर्ग से चौथीबार विधायक बने राम लल्लू वैश्य, आदिवासी कुंअर सिंह टेकाम, स्व. जगन्नाथ सिंह के अनुज व दूसरीबार के विधायक अमर सिंह के अलावा चुरहट में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को शिकस्त देने वाले शरदेन्दु तिवारी भी दावेदारों में शामिल हैं।

सतना जिले से मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी की संदिग्ध निष्ठा आड़े आ सकता है, लेकिन नागौद विधायक नागेन्द्र सिंह सत्ता और संगठन दोनों में ही सर्वमान्य हैं। शहडोल जिले से अनूपपुर जिले के निवासी व शहडोल की जयसिंह नगर विधान सभा से वरिष्ठ विधायक जय सिंह मरावी का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा है।

सुविज्ञ सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में कमलनाथ सरकार के पराभव के बाद भाजपा शीर्षस्थ नेतृतव की पहली पसंद केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर थे। ताकि प्रदेश में कुनबे-कुनबे में पनपी गुटबाजी को सर्वमान्य नेता दिया जाय। कांग्रेस सरकार गिरने, सिंधिया के भाजपा प्रवेश में अहम भूमिका निभाने के बावजूद वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये सिंधिया घराने के विधायकों का दबाव वह बरदाश्त नहीं कर सकते थे।

ग्वालियर राजघराने के कांग्रेसी खेमे के मुखर विरोध के चलते वह इस ओहदे तक पहुंचने में कामयाब होने वाले श्री तोमर ने यहां अपना मित्र धर्म निभाया और श्री शिवराज सिंह को ही चैथीबार मुख्यमंत्री पद दिलाने में अहम भूमिका अदा की। एक तरह से अनुकंपा से बनी सरकार में अब मुखिया का वह कद नहीं रहस जो पिछले 10 सालों में था। उन्हें अब अपने दल के विरोधी नेताओं के अलावा कांग्रेस के 22 बागी विधायकों को साधना पड़ेगा। अनुकम्पा सरकार में मंत्री मंडल का गठन और सभी को साधना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। बगावत के स्वर अकेले विंध्य में ही नहीं, बुंदेलखंड और मालवा भी इससे अछूता नहीं है।

विजय सिंह

सीधी

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