सीधी(सचीन्द्र मिश्र)- जिले में इन दिनों एक परदेशी की धूम है परदेशी भी ऐसा की पूरा जिला उसके सुर में सुर मिला रहा है, और नाच गा रहा है, आम को इमली और इमली को आम बता रहा है, बहती नदी को सुखा कर उससे मोती बटोर रहा है, हां ये बात और है की पहले सागर से मोती निकलते थे लेकिन क्या कहे परदेशी को और उसकी काबिलियत को वह नदियों से ही मोती बटोर रहा है । वैसे तो हर जगह परदेशी आते और जाते रहते है लेकिन सब को अपना मुरीद बना ले ऐसा परदेशी पहली बार देखने को मिला, लोगो को समाज सेवा का पाठ पढ़ाकर, नए नये सपने दिखाकर और जन सेवा को अपना एकमात्र उद्देश्य बताकर आगंतुक ने ऐसा जाल बिछाया की सब पड़ गए बस उसकी निश्चल काया के भेष में और परदेशी खुद लग गए माया के फेर में, और माया का मोह भी कुछ थोडा बहुत नही बल्कि जो है सब अपना है, जो होगा सब हम से ही होगा जो हम कहे वो सही जो हम बनाये वो नियम, और परदेशी का डर तो उससे भी ज्यादा बलवान मजाल क्या की कोई परदेशी के हुक्म को न कहे या देर करे हुक्म हुआ है तो पूरा होगा सही हो या गलत क्यूंकी सारे नियम उन्ही पर आकर शिथिल जो हो जाते है,और तो चाहे परदेशी का हुक्म बजाते हुए खुद का अस्तित्व खतरे में ही हो पर मजाल क्या की उफ्फ तक निकल जाये और साहब लोग तो ये भी कहते है कि ये परदेशी कलम की ताकत के अलावा बेंत प्रेमी भी है और हनुमान की गदा की तरह अपना बेंत (डंडा) ये भी लेकर चलते है, गुस्सा तो इतना जब जिसे चाहे झाड दे और मन किया तो लताड़ दे । लेकिन मजाल क्या की कोई इनकी न फ़रमानी कर दे और परदेशी का ये तानाशाही रवैया उसके दिखावो या यूं कहे बिछाए हुए भ्रम जाल में गम होकरह जाता है , और परदेशी का बाहरी आडम्बर मात्र ही लोगो को दिख पाता है खैर ये तो अपना अपना हुनर है बाउर बनने का या बनाने का लेकिन ये कहना गलत नही होगा की सीधी को बाउर बनाने में तुला है एक परदेशी ...?