सीधी(ईन्यूज एमपी)- चुनाव करीब आते ही दबी छुपी आवाजे मुखर होने लगती है कल तक जो नेता जी से घबराते थे या अपनी अरज सुनाने को घंटो इंतजार करते थी आज कल उनके मुख में भी जुबान आ गयी है क्युकी उन्हें भी पता है की अब तो ऊंट पहाड़ के नीचे आयेगा ही,और कल तलक जो कतरा के निकल जाते थे अब घर घर फेरा करेगे तो फिर अब डरना क्या ....? जिले में चुनाव के करीब आते ही एक ओर जहां कयासों का बाजार गर्म है वही नेताओ के दौरे भी बढ़ने लगे है, कुछ मौके का फायदा उठाने में लगे है तो कुछ अपनी जगह बचाने में,वही कथित तौर से प्रजातंत्र का एक अहम् हिस्सा कहलाने वाले स्तम्भ भी नित नए चेहरों से पर्दा उठाने में मशगूल है, और हो भी क्यों न यही तो समय है अपनी अहमियत बताने का नही तो बाकी दिनों में तो इन्हे भी दबी जुबान से ही कुछ कहने का अवसर मिलता है, क्युकी अगर ज्यादा मुखर हुए तो......कुछ कहा नही जा सकता की आगे मुखर होने के स्थान पे रहेगे या नही. पर अब मामला उल्टा है,नेताजी को अब पुनः दान चाहिए और बीते दिनों उन्हों ने जनता के लिए क्या किया क्या नही इसका प्रमाण तो इस स्तम्भ को ही देना है| किस जगह से कौन सा उम्मीदवार उपयुक्त होगा,कौन से प्रत्यासी को अबकी बार मैदान में उतरना है,बेशक यह निर्णय उस दल के संगठन द्वारा लिया जायेगा लेकिन नगर में जो लोग है उन्हें तो कुछ न कुछ चाहिए बाते करने के लिए, तो लोकतंत्र के एस स्तम्भ का भी तो दईत्व है की उन्हें कुछ न कुछ दे, पर उनके एस कयासों का नेताजी पर क्या प्रभाव पड़ता है इसका अंदाजा तो नेताजी ही लगा सकते,और जब तक उमीदवारो का फैसला न हो जाये तब तक कयासों का बाजार गर्म ही रहेगा वही जनता परेशान है की अब मैदान में कौन होगा बाहर हाल एक बात तो है की चुनाव आते ही जनता भी मुखर होकर अपने अधिकारों के लिए नेताजी से जवाब तलब करने को आतुर है वही कई संगठनों के माध्यम से विरोध भी कर रहे है|अब देखना है की नगर में आगामी काया समीकरण बनते और बिगड़ते है|