*सचीन्द्र मिश्र* सीधी ( ईन्यूज एमपी) जिले में इन दिनों नकली और असली दवाइयों की बिक्री का खेल जोरों से चल रहा है , कम्पनी / एम आर के दवाव वश जंहा डॉक्टर मरीजों को पर्ची लिखने को मजबूर हैं तो वंहीं दवा विक्रेता अधिक कमीशन के चक्कर में जनरिक दबाई बेंचने में आमादा हैं , मेडिकल के क्षेत्र में त्रिकुट व्यावस्था के चलते यंहा सिर्फ और सिर्फ मरीज कोप का भाजन हो रहे हैं । हांसिल जानकारी के अनुसार मेडिकलों में बिकने वाली दवाइयां दो श्रेणियों में विभाजित हैं । 1 - इथिकल 2- जनरिक इथिकल यानी ब्रांडेड होती है जो महगे दर पर बिक्री की जाती हे मेडिकल स्टोर संचालकों को इस तरह की दबाइयों की बिक्री में 5 प्रतिशत से लेकर 15 प्रतिशत तक लाभांश होता है जैसे सिपला , ग्लैक्सो , रैनबैक्सी , फाइजर , इल्डर , मैडक्लास , सनफार्मा , ऐरिस्टो कम्पनी । बात करें जनरिक दवाइयों की जंहा 30 से 40 प्रतिशत तक बिक्री में मेडिकल संचालकों को लाभांष हांसिल होता है । जैसे दवाइयों के कम्पनियों की बात की जाये तो एल्कम , सिपला , इल्डर , खण्डेलवाल , क्लाइड आदि कम्पनियों की दवाइयां शामिल है । यंहा सबसे बड़ी बात यह है कि इथिकल और जनरिक की पहचान कर पाना आम ग्रांहक के लिये आसान नही है कारण कि डॉक्टर द्वारा लिखी गई पर्ची पर मेडिकल संचालक अधिकांश जनरिक दबाई देते हैं । एमबीबीएस एमडी जैसे डॉक्टरों के प्रेसकाइब करते हैं उनकी पर्ची पर गिनी चुनी इथिकल दबाइयां दी जाती हैं । जबकि अन्य डॉक्टरों या झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा प्रेसकाइब पर जनरिक दबाइयां दी जाती है । उचित होगा कि स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार मरीज हित में इस खेल पर लगाम लगांयें ।