सीधी(ईन्यूज एमपी)- मॉ दोनों ऑख से अंध्ाी थी, मॉ की सेवा के लिए घ्ार को कोई सदस्य तैयार नही था। ऐसे में पढ़ लिखकर बेटा खुद के सपनों को तोड़कर बैरागी बन गया और मॉ की सेवा में जुट गया। मॉ जब तक जिन्दा रही तब तक दिन रात एक कर सेवा में जुटा रहा, मॉ के देहांत के बाद बैरागी बन गए। अब केवल हनुमान जी की भक्ती के साथ क्षेत्रीय लोक कलाओं की अभिव्यक्ति कर जीवन यापन कर रहे है। जी हां हम जिले के अमरपुर निवासी राजपति दुवे की बात कर है। कक्षा 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मॉ को दोनों ऑखों से दिखाई देने बंद हो गया। ऐसे में राजपति दुवे आगे की पढ़ाई छोड़कर मॉ की सेवा में जुट गए ,समय बीतता चला गया राजपति श्रवण कुमार की नकल उतार कर मॉ की सेवा में जुटे रहे। इस दौरान उन्हें अपने बारे में सोचने का मौका नही मिला। बर्ष 2006 में मॉ का परमधाम का चल बसी तब वह खुद को भी अकेले समझने लगे। ऐसे में वह भगवान हनुमान को गले लगा लिया और भक्ती भाव में जुट गए अब तो एक-एक पल हनुमान के चरणों में बीतता है। मांगते हैं भिक्षा 55 बर्षीय राजपति दुवे बतातें हैं कि मॉ के परमधाम जाने के बाद जीवन चलाने का कोई रास्ता नही बचा और ऐसे में वह 20 बर्ष की उम्र में घर-घर जाकर भिक्षा मांगने शुरू कर दिए। खास बात यह हैं कि राजपति एक माह में केवल एक ही घर में भिक्षा मांगते है। इतना ही नही यदि किसी ने भला बुरा कह दिया तो दोबारा उस दरवाजे में भिक्षा मांगने नही जाते है। उनका मानना हैं कि अपमान से भ्ािक्षा लेकर उपभोग करना ठीक नही होता है। शादी के बाद बट जाता भ्ााव राजपति की ऑखे उस समय नम हो गई जब वह मॉ की सेवा भाव के बारे बता रहे थे। वह कहते हैं कि यदि वह शादी कर लेते तो मॉ की सेवा में वह भाव नही रह पाता। पत्नी आने के बाद मन का भाव दो भागों में बट जाता यह फिर पत्नी का बन कर रह जाता। ऐसे में खुद को माफ नही कर पाता इसलिए शादी नही किया। जो बेटा माता पिता की सेवा नही करेगें वह जीवन भर भटकता रहेंगा।