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Home सीधी दर्पण बहरी अस्पताल में 'सेवा' के बदले 'सेंटर फॉर कलेक्शन' – डॉक्टर मस्त, भुगतान ठप्प। आखिर क्या है माजरा??

बहरी अस्पताल में 'सेवा' के बदले 'सेंटर फॉर कलेक्शन' – डॉक्टर मस्त, भुगतान ठप्प। आखिर क्या है माजरा??

सीधी (ईन्यूज़ एमपी): सीधी जिले के सिहावल विधानसभा अंतर्गत स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बहरी आजकल खबरों में नहीं, घोटालों में ज़्यादा सुर्खियाँ बटोर रहा है। सरकार गरीबों की सेवा के लिए लाख दावे और अस्पताल खोलने की राग अलापे, लेकिन बहरी का यह स्वास्थ्य केंद्र मानो “स्वास्थ्य सेवा” नहीं बल्कि “कमाई सेवा” का केंद्र बन चुका है।

बढ़ती बीमारियों और मौसम की मार के चलते अस्पताल में मरीजों की भीड़ तो बढ़ गई है, पर व्यवस्थाएं उसी “राम भरोसे” हालात में हैं। अस्पताल परिसर में पानी जैसी मूलभूत सुविधा भी नदारद है – न मरीजों को पीने को पानी, न भर्ती महिलाओं को इंसानियत जैसा कोई एहसास।

डॉ. अमित वर्मा, जिनके जिम्मे अस्पताल है, उन्होंने अपने कर्तव्यों को ‘कमाई केंद्र’ की ओर मोड़ लिया है। मरीजों को कुछ दवाइयाँ अस्पताल से देकर बाकी दवाइयों की लिस्ट दुकान से लाने की दी जाती है—जिससे जनता के जेब पर सीधा कट। सवाल यह है कि ये बाहर की दवाइयाँ क्यों? क्या इन पर कोई विशेष 'कमिशन व्यवस्था' है?

और हद तो तब हो जाती है, जब प्रसव जैसी संवेदनशील सेवा में लगी महिलाओं को खाना परोसने वाले कर्मचारियों को पिछले एक साल से वेतन नहीं मिल रहा है जिससे कर्मचारी आर्थिक तंगियों से जूझ रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग में सरकार ने भरपूर बजट आवंटित किए हैं लेकिन कर्मचारियों के वेतन के ही जब लाले पड़े हैं तो यह नहीं समझ में आता कि कर्मचारी अपना भरण पोषण कैसे करें? क्या इन कर्मचारियों को वेतन के लिए चढ़ोत्तरी की आवश्यकता होगी या विभाग पर अमल करेगा। फिलहाल कर्मचारियों के वेतन को लेकर अब ये तय नहीं हो पा रहा कि ये लापरवाही है या 'कमीशन' के पेट में फंसी 'फाइल'।

अस्पताल परिसर में गंदगी का अंबार है, लेकिन डॉक्टर साहब की नजर सिर्फ बाहर से आने वाली दवाइयों की सूची पर है। “स्वच्छता” नामक योजना यहाँ केवल बोर्ड पर टंगी है, हकीकत में नहीं।

अब देखना ये है कि स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारी कब नींद से जागेंगे और कब भ्रष्टाचार के इस गड्ढे में फंसी बहरी पीएचसी को बाहर निकालेंगे। या फिर सब चलता रहेगा – मरीज तड़पते रहेंगे, और कुछ जेबें गर्म होती रहेंगी।

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