सीधी ( ईन्यूज़ एमपी ) - महिलाएं परिवार और समाज की धुरी हैं। समाज में सकारात्मक परिवर्तन महिलाओं के सहयोग से ही संभव है। महिलाओं को यदि उचित अवसर प्रदान किए जाये तो वह पुरूषों से कही बेहतर परिणाम देने की क्षमता रखती है। स्व सहायता समूहों के माध्यम से महिलाए न सिर्फ स्वयं आत्मनिर्भर हुई है वरन उन्होने परिवार और समाज की प्रगति में अमूल्य योगदान दिया है। नगद रहित व्यवहार एवं डिजिटल इण्डिया का सपना भी महिलाओं की भागीदारी के बिना संभव नही है। म.प्र. डे-राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अन्तर्गत गठित स्व सहायता समूह में से प्रत्येक ग्राम से 01 या 02 सक्रिय महिलाओं का चयन कर उनको डिजिटल इण्डिया से जुडने के लिए लगातार चरणबद्ध प्रशिक्षित किया जा रहा है। जिससे ये महिलायें प्रशिक्षण प्राप्त कर ग्राम में स्व सहायता समूह सदस्यों एवं अन्य ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल इण्डिया से जोडने में सक्रिय भूमिका निभा सके । इसके लिए आजीविका मिशन सीधी अन्तर्गत 4136 स्व सहायता समूह की सदस्यों को वित्तीय साक्षरता एवं वित्तीय समावेशन का प्रशिक्षण प्रदाय किया जा चुका है। नगद रहित व्यहार एवं डिजिटल इण्डिया के सपने को साकार करने के लिए बैंक सखी, बीसीए के माध्यम से ग्राम स्तर में ही बैंकिंग सुविधा का बेहतर लाभ लेने में सहयोग किया जा रहा है। मिशन के माध्यम से स्व सहायता समूहों की 21 महिलाओं को चयन कर बीसीए/बैंक सखी के रुप में प्रशिक्षण प्रदाय एवं आवश्यक सहयोग प्रदाय किया गया है। 21 महिलाओं में से 06 महिलाओं के द्वारा कियोस्क एवं पीओएस मशीन के द्वारा ग्रामीण महिलाओं को ग्राम स्तर पर बैंकिंग की सेवायें प्रदाय की जा रही है। मंजू बनी मध्यांचल ग्रामीण बैंक की कियोस्क संचालक- सीधी अन्तर्गत ग्राम पटपरा में गठित जय माता स्व सहायता समूह की वर्ष 2012 में मंजू वर्मा सदस्य बनी। सदस्य बनने से पूर्व मंजू वर्मा बेरोजगार थी और अभावपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही थी। गाॅव में महिलाओं द्वारा गठित हो रहे स्व सहायता समूहों की जानकारी होने पर मंजू वर्मा ने स्व सहायता समूह से जुड़ने और अपने परिवार का विकास करने का निर्णय लिया। उन्होने समूह से सर्वप्रथम सीड लोन के रुप में रु. 1000 ऋण प्राप्त कर आशा की परीक्षा की फार्म भरा, जिसमें उत्तीर्ण होकर आशा बन गई। इसके बाद मंजू ने आजीविका लोन के रुप में रु. 10000 का लोन लेकर फोटो काॅपी मशीन खरीदी एवं छोटी सी दुकान खोली। इसके बाद भी मंजू रूकी नहीं और उन्होने अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने की सोची और बैंक सखी का प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण उपरान्त बैंक लिंकेज के माध्यम से रु. 50000 प्राप्त कर उससे कैमरा एवं लैप्टाॅप खरीदा और बैक सखी का कार्य करते-करते बी.सी.ए. के रुप में मंजू को मध्यांचल ग्रामीण बैंक के द्वारा कियोस्क दिया गया। आज मंजू की वार्षिक आय रु. 150000 से 200000 हो गई है तथा वे एक अच्छा सामाजिक जीवन व्यतीत कर रही है। मंजू वर्मा आज लोगों के लिए एक मिशाल है उन्होने प्रमाणित किया है कि महिलाओं को यदि उचित अवसर प्रदान किए जाये तो वह पुरूषों से कही बेहतर परिणाम देने की क्षमता रखती है।