सीधी ( ईन्यूज एमपी ) पूर्व मंत्री इंद्रजीत कुमार , कमलेश्वर द्विवेदी पूर्व सांसद गोविंद मिश्र विधायक केदारनाथ शुक्ल , कुंअर सिंह टेकाम सहित कई जिले की राजनैतिक हस्तियां ऐसी हैं जो सरकारी स्कूलों में पढकर आज इस मुकाम में पंहुचे हैं इन्हीं सरकारी स्कूल से पढ़कर निकले कई विद्यार्थी प्रदेश के शीर्ष अधिकारी एवं नेता मंत्री हैं। हमारे यहां सांसद बिधायक मंत्री लेकर कलेक्टर एसपी.. तक कितने आला अधिकारी हैं जो सरकारी स्कूल में ही पढ़े। लेकिन अब इन्हीं पुराने छात्रों को सरकारी स्कूलों पर भरोसा नहीं रहा। खुद सरकारी स्कूल में पढ़कर आगे बढ़े और अधिकारी बने पर उनके बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं तो इससे साफ जाहिर होता है कि जिले के सरकारी स्कूलों के हालात ठीक नहीं है। इसके पीछे तर्क है कि सरकारी स्कूलों में न तो शिक्षकों में समर्पण-सेवा की भावना है और न ही बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर है ताकि बच्चों को निजी स्कूल जितनी सुविधाएं मिल सकें।जबकि प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में अध्यनरत छात्र छात्रों को निःशुल्क गणबेश सायकल बितरण मुक्त में किताब सहित दोपहर में मध्यंह भोजन सहित शिक्षित शिक्षकों द्वारा अध्यन की व्यवस्था की गई है लेकिन प्रदेश सरकार की यह व्यवस्था सीधी जिले में फ्लाप साबित हो रही है।वही जिले के अधिकारियों की माने तो प्रतिस्पर्घा के दौर में बने रहने के लिए बच्चों को बेहतर शिक्षा प्राइवेट स्कूल से ही संभव है। चाहे अधिकारी हो या कर्मचारी पहले वे पैरेंट्स हैं और एक पालक होने के नाते अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के बारे में निर्णय लेने का उनको पूरा हक है। जिले के अधिकांश अधिकारियों से चर्चा की जिसमें 80प्रतिशत सरकारी शिक्षा व्यवस्था से अंसुष्ट नजर आए पर 5 प्रतिशत ऎसे भी थे जिन्हें अब भी उम्मीद है कि शिक्षा व्यवस्था में अच्छे दिन आएंगे। बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे, फर्स्ट एड बाक्स भी बदहाल .....? जिले के निजी स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे ही है। चंद स्कूल ही ऐसे हैं जो सुरक्षा मानकों को लेकर गंभीर हैं। बात वाहनों की हो या आग से बचाव की सभी को ताक पर रखकर धड़ल्ले से स्कूल संचालक मोटी कमाई करने में लगे हुए हैं। कुछ स्कूल सीबीएसई होने का दंभ तो भरते हैं, लेकिन वे सीबीएसई की गाइड लाइन को पूरा नहीं करते हैं। ऐसे स्कूलों के पंजीकरण की वैधता कैसे बरकरार रहती है। इन स्कूलों की आखिर कोई जवाबदेही कोई क्यों सुनिश्चित नहीं करता है? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब नहीं मिलता। अनेक विद्यालय ऐसे हैं जहां फर्स्ट एड बाक्स तक उपलब्ध नहीं हैं। जब कोई बड़ा हादसा होता है तभी प्रशासन चेतता है और कुछ दिन के बाद फिर सबकुछ सामान्य हो जाता है। बसों में ठूस दिए जाते हैं बच्चे .....? अधिकांश निजी स्कूल अपने यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को घर से स्कूल व स्कूल से घर लाने ले जाने की सुविधा मुहैया कराते हैं। इस सुविधा के नाम पर ये स्कूल हर माह बच्चों के अभिभावकों से मोटी रकम वसूलते हैं। दुख की बात यह है कि पैसा लेने के बावजूद वे अधिक कमाई व कम खर्च की नीति को ध्यान में रखते हुए बच्चों को वाहनों में भेड़-बकरियों की तरह ठूस-ठूस कर भरते हैं। 20 बच्चों की क्षमता फिर भी 40 से 50 को भरा हुआ देखा जा सकता है। सिस्टम का हिस्सा पर ऊपर से हो बदलाव.....? जिले के अधिकारियों का कहना है कि उनके स्कूल के दिनों में सरकारी स्कूलों की विश्वनीयता कुछ अलग थी,लेकिन शिक्षकों ने ही स्वयं इस विश्वनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। अब तो गरीब भी निजी स्कूल का पहला ऑप्शन मांगने लगे हैं। निजी स्कूलों की मनमानी .....? बड़े अधिकारियों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। इन स्कूलों की मनमानी रोकने का जिम्मा भी इन्हीं अधिकारियों में से होता है। लेकिन ऎसे में स्कूलों की फीस, किताबें, यूनीफॉर्म और स्कूल बस को लेकर मनमानी पर अंकुश लगाना तो दूर प्रभावी कार्रवाई तक नहीं हो पाती है।