सीधी (ईन्यूज एमपी)- मध्यप्रदेश का सीधी जिला राजनैतिक और ऐतिहाशिक दृष्टि से अपने आप मे ही विराशतों का मालिक है। इसी जिले की तंग गलियों से निकलकर राजनीति के छितिज तक पहुंचने का महारथ इस जिला को मिला है। सीधी को अगर ऐतिहाशिक और पौराणिक दृष्ट से देखा जाय तो जिले के घोघरा नामक स्थान में जन्म लेकर बुद्धि के महानायक बने बीरबल अकबर के नौ रत्नों में महत्वपूर्ण स्थान हांसिल किये थे यहाँ तक कि अकबर राजवंश बिना बीरबल के नहीं चल पाया इसी जिले में कवि बाणभट्ट का भी जन्म हुआ इस कारण सीधी राजनीति और इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इतिहास को छोड़ अब आइये बात करते हैं जिले की वर्तमान राजनीति में राजनीतिक दलों और यहां के राजनेताओं के संबंध में साथ ही जनता का मूड, मध्यप्रदेश की राजनीति में मुख्य रूप से दो दलों का हमेशा से राज रहा वो हैं कांग्रेस और भाजपा वर्तमान में भाजपा की सत्ता है। सीधी में सांसद,विधायक,और सीधी नगर के नगरपालिका प्रमुख सभी बीजेपी के हैं। सीधी के वर्तमान परिदृश्य में सत्ता और विपक्ष दोनों में टिकट बंटवारे की दुविधापूर्ण स्थिति है सबसे भयावह स्थिति मुख्यविपक्षी दल कांग्रेस का है जिले में कांग्रेस कई खेमे में बंटी है कोई गांव-गांव जाकर अपना प्रचार प्रसार कर रहा है तो कोई नेता की परिक्रमा में ब्यस्त है कोई खुद को वरदान मानकार बैठे है विपक्ष की इस रस्साकस्सी के बीच सत्ता निरंकुश होता जा रहा है और जनता तंग है। लेकिन विपक्ष सड़कों से गायब है। दूसरी ओर भाजपा की स्थिति भी कम नहीं है। भाजपा के एक सर्वे ने सत्ता पक्ष के विधायकों की नींद उड़ा दी जिसमें 61 विधायकों के हारने की सूची में सीधी को भी नामजद किया है।भाजपा में अंदरूनी कलह पर्याप्त है खेमेवाजी यहां भी कम नहीं है। वर्तमान विधायक के टिकट कटने की खबर से कुछ आनंदित हैं । लेकिन ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता नहीं दिख रहा सत्तापक्ष में सांसद,विधायक,न.पा का अलग-अलग खेमा है और विरोध का अपना तरीका भी। अभी हाल में मोर्चा पदाधिकारियों के प्रधानमंत्री से मिलाने का सीधा मतलब है जनता में खोई हुई साख को वापस लाना लेकिन क्या ऐसा सम्भव हो पायेगा ये वक्त तंय करेगा वर्तमान में सत्ता के सांसद विधायक सभी अलग-अलग खेमे हैं फिर भी विपक्ष से कुछ हद तक ठीक है। वहीं अन्य मोर्चे की बात करें तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ,आम आदमी पार्टी रोंको ठोंको क्रांतिकारी मोर्चा का जिले में कोई खास वर्चस्व नहीं है साथ ही जनता भी कोई अहमियत नहीं देती फिर भी बीच-बीच मे सरकार का विरोध करते देखे जाते हैं बात जैसी भी है लेकिन अगर इनके प्रयासों को देखा जाय तो पहल सार्थक होती है। चूंकि प्रदेश में कभी सत्ता नहीं रही इस कारण जनहित में आवाज उठाना काबिलेतारीफ लगता है। चुरहट वर्तमान नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का गढ़ माना जाता है वहीं परिसीमन के बाद सिहावल की बात करें तो दो चुनावो में एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस का कब्जा है। धौहनी आदिवासी बाहुल्य आरक्षित सीट है जहां भाजपा का विधायक 3 बार से लगातार हैं अबकी बार कांग्रेस पूर्व प्रत्यासी में फेरबदल कर सकती है। सीधी में भी कांग्रेस की बात करें तो पूर्व प्रत्याशी को दुबारा मैदान में उतारने की उम्मीद कम है लेकिन जनाधार की बात में मजबूत हैं। कांग्रेस की ओर से चुरहट,शिहावल में कोई फेरबदल नहीं वहीं भाजपा में प्रत्यासी चयन की असमंजसपूर्ण स्थिति धौहनी को छोड़ तीनों सीटों पर बनी है। हालात जो भी हो आमचुनाव नजदीक है और अपनी-अपनी गुणा गणित जारी है।