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किसने फूंका सीधी में ...साहब का कान ...?

सीधी(सचीन्द्र मिश्र)-कहते है कि किसी के साथ चलना और किसी के साथ होना ये दोनो अलग अलग बाते है,बेसक औरो की नजरो मे साथ चलने वाला सहयोगी हो सकता है,पर वास्तविकता मे वह अंदरूनी विरोधी भी हो सकता है,ऐसा ही कुछ विगत दिनो जिले की सीधी विधानसभा मे देखने को मिला की जो लोगो की नजरो मे तो व्यक्ति विशेष के लिये समर्पित है पर जब वरिष्ठों ने स्थिति का जायजा लेना चाहां तो उनके अंदर से झटपट अंदरुनी विरोधी ने अपना काम करना शुरू कर दिया।

बतादे कि विगत दिनो सीधी दौरे पर आये एक पार्टी के मुखिया ने जब अपने प्रत्याशी की स्थिति का जायजा लेने के उद्देश्य से अपने एक जिम्मेदार पदाधिकारी से प्रतिक्रिया चाही तो पदाधिकारी ने कुछ ऐसी प्रतिक्रिया दी जो उन्हे सर्वथा वास्तविकता के पटल पर अनुचित व अकल्पनीय लगी जिसके बाद उन्हे अपने दूसरे पदाधिकारी से फीडबैक लेना पडा।

कहते है कि किसी की उम्मीद टूटने का दर्द कभी न कभी उभर ही आता है,ताजपोशी की इच्छा के साथ घुमक्कड़ बन घूमने के बाद और कई बार किस्मत के हाथो शिकस्त के बाद जब कही दाल न गली तो अपनी ईच्छाओं की पोटली बाध जब इस बडी नाव पर सवार होकर सफलता हासिल करने का सपना सजोया गया तब पता चला की इन्हे ही नाविक बना दिया गया,अब कैसे बर्दाश्त हो कि एक किनारे से दूसरे तक दौड़ तो हमारी हो पर पार कोई और,तो चलो इन सवारो को ही भटकाया जाय,ऐसा ही कुछ वाक्या उभर कर सामने आ रहा है सीधी मे जिनके पार होने के आसार नही उन्हे बताया पर,और जो अब तक थे पार उन्हे उतारना चाहते है बीच मझधार, अब ये तो नेतृत्व व जिम्मेदारी दोनो से दगा है।

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