आदरणीय पाठक बंधु सादर अभिवादन स्वीकार हो। हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे। मेरी पूरी कोशिश होगी कि उन लोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें। आपका सचीन्द्र मिश्र सीधी ................................................... 📱 चेहरे चर्चित चार📱 प्रोफसर - डॉक्टर - साहित्यकार - कलाकार.... ................................................... ✍️ आर.पी.सिंह 📱 प्रोफसर ................................................... सीधी जिले के चर्चित चेहरों में आज हम जिस सख्स की बात कर रहे हैं वह जिले के एक लौते शासकीय उच्च शिक्षा के मंदिर की मजबूत दीवार है और दीवार क्या वर्तमान में इन्हें छत कहना ज्यादा ठीक होगा । जी हाँ पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी से आये इन महानुभाव का परिचय अगर सही अर्थो में करे तो एस जी एस मतलब आर पी सिंह और आर पी सिंह मतलब एसजीएस ... जी हाँ जिले के एक लौते शासकीय महाविद्यालय संजय गाँधी स्मृति स्वशासी महाविद्यालय जिसे सब एसजीएस कालेज के नाम से जानते है उसके कर्ता धर्ता प्रोफेसर आर पी सिंह .... आर पी सिंह एसजीएस कालेज में आये तो सहायक प्राध्यापक के तौर पर थे लेकिन जिम्मेदारियों को सम्हालते सम्हालते कालेज का अहम हिस्सा बन गए और भले ही ये सामने आकर अपना महत्व न दिखाए और अपनी करनी का बखान न करे लेकिन सर्वविदित है कि कालेज में आपकी ही चलती है । वर्तमान में सीधी जिले के ही होकर रह गए प्रोफेसर आर पी सिंह मूलतः उत्तर प्रदेश के अयोध्या के मैहर, कबीरपुर के निवासी है इनका जन्म 11 नवम्बर 1964 में हुआ था इनके पिता राम अचल सिंह कृषक और माता गृहणी थी। एक छोटे से गांव के किसान परिवार के घर में ग्रामीण परिवेश में जन्मे आर पी सिंह की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा इनके गृह ग्राम में ही हुई , इन्होने डाक्टर राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय अयोध्या से एम. ए. की शिक्षा ग्रहण की, एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से एल. एल. बी. काम्प्लीट की साथ ही यंही से डी. फिल. भी कम्प्लीट की इसके बाद 1993 में इनका चयन MPPSC मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के मार्फत सहायक प्राध्यापक भूगोल के पद पर हो गया जहां ये एसजीएस कालेज में पदस्थ हुए और 2007 से अब बतौर प्राध्यापक पदस्थ हैं । पारिवारिक पृष्ठ भूमि की बात करें तो पिता किसान, मा गृहणी थी, इनकी पत्नी अध्यापिका है, इनके परिवार में दो बेटियां एक बेटा है,आपकी बड़ी बेटी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय खड़वा में MBBS की छात्रा है, छोटी बेटी GNLC, INDORE मे BALLB(HONS) की छात्रा है जबकि पुत्र केन्द्रीय विद्यालय में अध्यनरत है आप 2006 से संजय गाँधी महाविद्यालय सीधी में उप परीक्षा नियंत्रक है और परीक्षा की सुचिता, गोपनीयता एव स्वशासिता के विकास हेतु प्रत्यनशील हैं । आपकी एक पुस्तक : सोन घाटी का बैभव भी प्रकाशित हो चुकी है , आप के मार्गदर्शन में 8 छात्रों को डॉक्टर की उपाधि प्राप्त हो चुकी है और 6 छात्र डॉक्टरेट की उपाधि हेतु कार्य कर रहे हैं और आपके अधिकांश शोध में जनजातिय विकास, कुपोषण, औद्योगिक पर्यावरण प्रदुषण के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं । आपने 2015 में राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन, देश के विभिन्न प्रांतों के शोध कर्ताओं की सहभागी थें , 2017 में विश्वविद्यालय अनुदत आयोग के सहयोग से जैविक - कृषि पर शोध परियोजना - का संचालन कर पूर्ण किया । विभिन्न शोध पत्रिकाओं में आपके 25 आलेख प्रकाशित हो चुके है , लगभग 20 सेमीनर / संगोष्ठी मे आप सहभागी एवं वक्ता के रूप में प्रस्तुत हो चुके है । और जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि माविद्यालय में आपकी उपयोगिता कितनी महत्वपूर्ण है तो महाविद्यालय के विकास एवं अन्य कार्यों में निष्ठापूर्वक अनेक दायित्वों का निर्वाहन आपके द्वारा किया जा चुका है आप जन भागीदारी समिति, अनुशासन समिति के प्रभारी है , आल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन (AISHE) के नोडल अधिकारी है और सीधी विधि महाविदयालय के प्रभारी प्राध्यापक भी है । आपके मार्गदर्शन से PSC के अनेक पदों जैसे: महिला बाल विकास अधिकरी, सहायक प्राध्यापक, पदों पर छात्रों का चयन हो चुका है इसके अतिरिक्त वरिष्ठ प्रध्यायक, अध्यायक के पदो पर अनेक छात्रो का चयन भी हो चूका है । संक्षेप में कहे तो अयोध्या से आकर आरपी सिंह ने जिले की शिक्षा व्यावस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान ही नही बल्कि बेपटरी एसजीएस में अपनी एक अलग छाप छोड़ी है । ................................................... ✍️ डॉक्टर इन्द्रजीत गुप्ता📱 C.M.H.O ... .................... . ........................ आज हम चर्चित चेहरे में एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में बात करने जा रहे है जिसने बिना किसी जोड़ गणित और कूटनीति के अपने दायित्वों का निर्वहन किया और बेहद सरल और सहज व्यवहार के कारण सर्वप्रिय रहे और आज अपने विभाग में रहते हुए जिले के विभाग प्रमुख होकर पूरे जिले के लोगो की स्वास्थ्य सेवा हेतु अग्रसर है , जी हां हम बात कर रहे है वर्तमान मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाक्टर इन्द्रजीत कुमार गुप्ता की.... डाक्टर इद्रजीत कुमार गुप्ता का जन्म सीधी जिले में 8 अगस्त 1959 को हुआ था, इनकी शिक्षा प्राथमिक से हायर सेकण्डरी तक सीधी जिले में ही सम्पन्नं हुई | बीएससी प्रथम वर्ष में अध्ययन के दौरान ही इनका pmt में सलेक्सन हो गया जिसके बाद ये MBBS कि पढाई के लिए मेडिकल कालेज रीवा चले गए । पढाई पूर्ण होने के बाद इनकी शासकीय सेवा कि शुरुआत सितम्बर 1984 से छत्तीसगढ़ के जगदलपुर से हुई जहां टोकापाल नामक जगह में ये पदस्थ रहे , इसके बाद 1991 में मेडिकल कालेज रीवा से इन्होने नेत्र विभाग मे स्पेस्लिस्ट पोष्ट ग्रेजुएशन की पढाई पूरी की और 1992 से 1994 तक जिला चिकित्सालय में अपनी सेवाए देते रहे , 1994 में इनका स्थानातरण चुरहट के लिए हो गया और 2005 तक चुरहट में ही सेवाए देते रहे । डाक्टर इन्द्रजीत कुमार एक बेहद ही सरल सहज नाम है इनके स्वाभाव में ही विरोध नहीं है जब जहां जैसा दायित्व इन्हें मिला ये उसे निष्ठा और संजीदगी से निभाते रहे पद और स्थान विशेष के लिए इन्होने कभी संघर्ष नहीं किया और शायद यही वजह है कि जिले में अक्सर जिन दो विशेष पदों के लिए संघर्ष कि खबरे आती रहती है उन दोनों ही पदों पर आपने निर्विवाद कार्य किया और आज अपने विभाग के जिले भर में मुखिया की भूमिका अदा कर रहे हैं । डाक्टर इन्द्रजीत कुमार गुप्ता को सितम्बर 20013 से प्रथम श्रेणी का अधिकारी घोंषित किया गया जो नेत्र विशेषज्ञ हैं । और इन्होने अभी हाल ही में शासन के निर्देशानुसार जिला चिकित्सालय में सिविल सर्जन का दायित्व निभाया था और वर्तमान में जिले में मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में कार्यरत है। इन्होने अपने सेवा काल के दौरान हजारो कि संख्या में मोतियाबिंद के आपरेशन कर लोगो के जीवन को रोशनी दी है । ................................................... ✍️ रामनरेश तिवारी निष्ठुर📱 शिक्षक / साहित्यकार ................................................... विंध्य की धरा ने अपनी गोद में महान साहिय -साधकों को जना है । अपनी सोंधी माटी की महक से उन्हें चन्दन लेप लगाकर सजाया - सॅंवारा है ; पाल -पोस कर बड़ा किया है ,उन्हीं में से एक सुख्यातऔर बहुचर्चित साहित्यकार , शिक्षक , कवि एवं गीतकार - रामनरेश तिवारी 'निष्ठुर' हैं । यह वही रामनरेश तिवारी 'निष्ठुर' हैं , जिन्होंने अपनी पुस्तक 'चेतना' में रिमहीं बोली में 'विंध्यगीत' नामक अमर गीत रच दिया , जिनके बोल हैं - "विंध्य क्षेत्र के माटी माॅंही , रतनन के भरमारि रे । सबसे सुन्दर, सबसे निकही , धरती हबै हमारि रे , धरती हबै हमारि रे .....।" गौरतलब यह है कि इस गीत को आपके सुपुत्र कलाकार राजकुमार तिवारी ने उतनी ही लयात्मकता से गाया है । और इससे भी बड़ी बात कि प्रकाश त्रिपाठी (इंजीनियर और अच्छे फोटोग्राफर) ने उतनी ही संजीदगी से इस गीत को फिल्माया है। इनका कवि -नाम भले 'निष्ठुर' है , लेकिन कोमल कवि हृदय है इनका। इस गीत के योगदान में अपने आपको तीसरा , गायक को दूसरा और इसे फिल्माने वाले प्रकाश त्रिपाठी को प्रथम मानते हैं। 16 जनवरी 1951 को जन्में निष्ठुर जी की जन्म भूमि एक सुप्रसिद्ध गांव तिवनी ही रही है , जो एक प्रख्यात राजनैतिक हस्ती की भी जन्मस्थली है। और लगभग आपकी धवल भौंहें भी उनसे काफी मिलती जुलती हैं किंतु विचारधारा में भिन्नता रही है । आपके पितामह रीवाॅं रियासत - नरेश व्येंकटरमण के राजदरबार में थे , पवाई भी पाये हुए थे , अतः आपकी पहली से आठवीं तक की प्रारंभिक शिक्षा वहीं एक स्कूल में हुई ।आपके बड़े पिताजी शहडोल में तहसीलदार थे अतः आपने 9 वीं वहां से पास की । 10 वीं -11 वीं मनिगवाॅं से। आगे की B.Sc स्नातक प्रथम एवं द्वितीय वर्ष शहडोल से एवं अंतिम वर्ष सीधी संजय गांधी कालेज से। सीधी में M.Sc का परास्नातक कोर्स न होने के कारण दो वर्ष एल.एल. बी. की पढ़ाई की । तत्पश्चात् हिन्दी और अंग्रेजी से M.A. किया और यहीं से आपका रुझान कागज और कलम की ओर गया। सन् चौहत्तर में शिक्षक की भर्ती परीक्षा हुई और आपने परीक्षा देकर शिक्षक का दायित्व संभाल लिया । आपने हिनौती , सुपेला और सीधी में 10 वर्ष तक पढ़ाया । दस वर्ष अपने गृहग्राम तिवनी में और अंतिम 19 बरस रीवा की निपनिया स्कूल में। सुदीर्घ शिक्षकीय जीवन के साथ साथ आपकी रचनाधर्मिता भी प्रोज्जवल होती रही।कलम मॅंजती रही। आपकी कविताएं समाज को दर्पण दिखाती हैं , यथार्थ बयां करती हैं - हालातों को देख देश के , मर जाने को मन करता है / दुष्यंत ! तुम्हारी ग़ज़ल, शब्दशः,अब गाने को मन करता है// आप उर्दू जुबान के भी जानकार हैं - "इस्मत लुटती चौराहों में/ आपने जो अपनी लालित्यमय बोली में सर्जना की है , वह मादक गंध वाली महुए की टप-टप करती हुई ध्वनि है, जो चलते बटोही को मोह लेती है । पहले के दिनों में बच्चे दो रिश्तेदारियों में महीनों टिके रहते थे , एक ममिअउरे और दूसरे फुफुअउरे । निष्ठुर जी भी ननिहाल में बहुत दिन बिताये थे । बीस पच्चीस बरस बाद जब पुनः ननिहाल के उस बगीचे में गए , जहां खेलते बचपन के दिन बीते थे, तो बचपन की सुखद स्मृतियां तीव्र और ताजी हो उठी , पूरा चित्र उभर आया , कवि हृदय आखिर नहीं माना , और उस स्मृति को कविता का रूप दे दिया- सुधि के दोहनी म दहकति हय, गाय दुधारी मामा के/देउथाने कस लागय उआ ऊंच अटारी मामा के/ सजि बजि घोड़ी म चढ़िके , जब हम ममिअउरे पहुंची / महकै कैथा , बेल के बिरबा , झूलै डारि के लंउची // आपने श्रम की , संघर्ष की कविताएं भी लिखी हैं , गिट्टी फोड़ती , पसीने से लथपथ , गांव की औरतें आपकी कविताओं में साफ साफ दिखती हैं - हर एक हथौड़े की चोटों से , निकल रही स्वरधारा /पत्थर के टुकड़ों पर पलता पापी पेट हमारा// इसके इतर आपने कहानी एवं व्यंग्य लेखन भी किया। 'चेतना', 'निष्ठुर मुक्तक','फूलमती चालीसा', 'आरती संग्रह ', 'निष्ठुर गीता', 'अजेय अर्जुन', 'विंध्याचल से अमरनाथ तक', आदि आपकी प्रकाशित कृतियां हैं। अभी हाल ही में कुछ महीनों पहले आपके द्वारा सम्पादित; बघेली के मूर्धन्य कवि शंभू काकू की कविताओं का संकलित संग्रह -"बोले चला निरा लबरी" पुस्तक का विंध्य शिखर सम्मान समारोह रीवा में विमोचन हुआ था । आपकी रचनाओं का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहा है।आपकी कविताएं रीवा आकाशवाणी रेडियो से प्रसारित की जाती हैं ।आपके जम्बूरीगीत का कैसेट निर्माण एवं पन्द्रह देश के स्काउट गाइडों को जम्बूरीगीत का वितरण हुआ है। दुष्यन्त कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय भोपाल में राष्ट्रीय अलंकरण समारोह में आपको 'आंचलिक भाषा सम्मान' से सम्मानित किया गया है। आप मध्यप्रदेश के तेज तर्रार पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी जी के विपरीत रहे और उतने ही वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष ग्रीस गौतम जी के प्रिय साहित्यकार हैं । अगर यूं कंहे कि गैर नरेश ( .......) नींद नही आती अतिशयोक्ति नही होगा ।समय कितना बलवान होता है कि एक समय था जब तिवनी में तूंती बोलती थी तब भी नरेश के छत्तिस के आंकड़े रहे हैं , और आज यह भी सुखद संयोग ही कहें वर्षों वाद मनमाफिक अध्यक्ष सामने है जो राम और लक्ष्मण की भूमिका अदा कर रहे हैं । ठीक अपनी बघेली बोली का लालित्य भोपाल और दिल्ली में प्रतिष्ठित करने के लिए आप निरंतर प्रयास रत हैं । आपके प्रयासों से APS यूनिवर्सिटी में बघेली प्रकोष्ठ स्थापित हो गया है । रीवा में बघेली पीठ की स्थापना के लिए आप एक सजग कलमकार के धर्मानुसार प्रयासरत हैं। और नये युवा साहित्य साधको को स्थापित करने में आपका सकारात्मक सहयोग रहा है। निष्ठुर जी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि हंसने से उम्र भी बढ़ती है । इसलिए हम भी आपके दीर्घ जीवन की कामना करते हैं। ................................................... ✍️ राजकुमार तिवारी📱 कलाकार ................................................... अगर हम विंध्य में संगीत कला की बात करें तो एक नाम सहसा हमारी जुबाॅं में होता है - पं० राजकुमार तिवारी। वर्तमान में बहुचर्चित बघेली गीत 'विंध्य क्षेत्र के माटी माॅंही रतनन के भरमार रे ..., में जो मनहर स्वर फूटे हैं , वह आपकी गंभीर गायिकी के ही हैं । आपका जन्म विंध्य के सुख्यात साहित्यकार रामनरेश तिवारी 'निष्ठुर' जी के घर में हुआ। 26 अप्रैल 1972 में जन्मे राजकुमार तिवारी ने कक्षा पांचवीं से ही ढोलक बजाना शुरू कर दिया था। अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए आपने गायन एवं तबला वादन को ही अपना विषय चुना। संगीत से एम .ए. राजकुमार तिवारी प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से , म्यूजिक में संगीत प्रभाकर हैं। आपने 1997 में अ. प्र. सिं. वि. रीवा से एल एल बी की पढ़ाई भी पूर्ण की । इस तरह से एड. राजकुमार तिवारी आगे बढ़ते हुए अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा से वर्तमान में संगीत में ही में पी. एचडी कर रहे हैं। रीवा शहर के गुढ़ चौराहा के पास स्थित 'राज संगीत संस्था जो पिछले डेढ़ दशक से संगीत के मानचित्र में इस अंचल का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करने का अनुष्ठान लेकर कदम-दर-कदम आगे बढ़ रही है , वह पं. राजकुमार तिवारी के द्वारा अपने पढ़ाई के दौरान सीमित साधनों से 1994-95 में शुरू की गई आदि संस्था है , जो अब तक सैकड़ों की संख्या में संगीत के कलाकार गढ़ चुकी है। उस दौर में विंध्य क्षेत्र में शारदा संगीत महाविद्यालय के अलावा संगीत से संबंधित और कोई संस्था नहीं थी। किन्तु आपने अपने मजबूत इरादों से 'राज संगीत संस्था' की संस्थापना कर संगीतकारों की नई पौध तैयार करना प्रारंभ कर दिया। आपने रीवा आकाशवाणी के कलाकार मीठालाल वर्मा को संगीत में अपना गुरु माना है , जो वर्तमान में राजस्थान में उदयपुर आकाशवाौणी में कार्यरत हैं। वर्तमान में आपके संगीत उस्ताद (गुरु) इम्तिया…? इम्तियाज हुसैन हैं । गौर करने वाली बात यह है कि आपको मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित मंच 'भारत भवन' में अपने गुरु उ० इम्तियाज हुसैन मास्साब के साथ हारमोनियम संगत अवसर प्राप्त हुआ। बता दें कि उस्ताद हुसैन रीवा राजघराने से संबंध रखते हैं। और यह संयोग ही होगा कि पं. राजकुमार तिवारी को शोध का विषय भी 'रीवा राज्य के दरबारी संगीतज्ञों का संगीत में योगदान' ही मिला है। आप अपने विंध्य अंचल में घरानेदार गायकी को आगे बढ़ाने के काम में तल्लीन हैं। मध्य प्रदेश युवा कल्याण विभाग द्वारा आयोजित 'प्रादेशिक लोकगीत प्रतियोगिता' में आप प्रथम पुरस्कार विजेता रहें हैं।आप आकाशवाणी रीवा में 'सुगम संगीत' और 'लोकगीत' में बी श्रेणी के कलाकार हैं।आपने संगीत शिक्षक के रूप में , जानी-मानी रीवा की सैनिक स्कूल में भी अपनी सेवाएं दीं हैं । योगेश त्रिपाठी के द्वारा निर्देशित कई नाटकों में आपने संगीत निर्देशक का भी काम किया है। चाहे दमोह नाट्यशाला द्वारा आयोजित 'छाहुर' हो या 'संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित कालिदास महोत्सव, उज्जैन का नाटक 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' हो।आप कई संगीत प्रतियोगिताओं में निर्णायक की भूमिका भी निभा चुके हैं। 25 जुलाई को राज संगीत संस्था का स्थापना दिवस हर वर्ष मनाया जाता है। श्री तिवारी अपनी इस संस्था को रीवा के हर तहसील मुख्यालय के साथ साथ अन्य जिलों में भी भविष्य में विस्तार देने की योजना बना रहे हैं। द्वारिका नगर रीवा में निवासरत तिवारी जी की योजना एक स्टूडियो भी खोलने की है। निश्चित ही आप अपने मुकाम तक पहुंचेंगे। साहित्य और कला का जब आपस में जुड़ाव होता है तो वहां संगीत के तराने खुद-ब-खुद गुजरने लगते हैं संगीत की साधना करते हुए विंध्य अंचल में कई साहित्यकार आए और गए लेकिन विंध्य अंचल में संगीत एवं कला को स्थापित करने के दूरगामी प्रयासों का अभी भी अभाव ही नजर आता है, संगीत के क्षेत्र में घरानों को दारकिनार कर गायकी के मामले में यह क्षेत्र अभी भी लगभग अछूता है, किंतु इसके प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। रीवा स्थित राज संगीत संस्था पिछले डेढ़ दशक से संगीत के मानचित्र में इस अंचल का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करने का अनुष्ठान लेकर कदम दर कदम आगे बढ़ रही है। अंत में आपको निरन्तर गतिमान रहने की शुभेच्छा।