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Home सीधी दर्पण EXCLUSIVE : गोपदबनास का सीधी में विलय ,दादी सिंह से लेकर केदारनाथ शुक्ल का कैसा रहा सफर....जानें सिर्फ ईन्यूज़ एमपी पर

EXCLUSIVE : गोपदबनास का सीधी में विलय ,दादी सिंह से लेकर केदारनाथ शुक्ल का कैसा रहा सफर....जानें सिर्फ ईन्यूज़ एमपी पर

सीधी(सचीन्द्र मिश्र)- इस चुनावी माहौल में दिलचस्प जानकारियों के साथ एक बार फिर आज हम आपके बीच सीधी जिले के ऐतिहासिक चुनावों के बारे में बात करेंग ।जैसा कि| कल हमने आपको विधानसभा मझौली के इतिहास से अवगत कराया था जंहा से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने अपने राजनैतिक जीवन का श्री गणेश किया था ।

आज हम आपको ले चल रहे हैं विलुप्त हो चुके विधानसभा क्षेत्र गोपद बनास यह विधानसभा क्षेत्र 1962 से 2003 तक अस्तित्व में रहा, परिसीमन के बाद यह विधानसभा क्षेत्र विलुप्त हो गया और सीधी में विलय हो गया ।इस विधानसभ क्षेत्र से आज भी तीन दिग्गजों ने अपना राजनीतिक श्री गणेश किया है । जिसमें वर्तमान में सीधी से भाजपा विधायक पंडित केदारनाथ शुक्ल, कांग्रेस के पूर्व विधायक कमलेश्वर द्विवेदी, कृष्ण कुमार सिंह (भंवर साहब) सहित कई दिग्गज शामिल हैं|

अब बात करते हैं चुनावो की तो इस विधानसभा क्षेत्र के पहले चुनावों में दादी सिंह पहले विधायक चुने गए| उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के रणदमन सिंह को परास्त किया था| दादी सिंह ने इस चुनाव में कुल 4813 बोट प्राप्त किये थे, जबकी कांग्रेस के रणदमन सिंह को महज 1790 वोट ही मिल सके थे|

इसके बाद 1967 के चुनवों में कांग्रेस के लायमन सिंह 7155 वोट पाकर विजयी हए थे उन्होंने दादी सिंह को इस चुनाव में परास्त किया था| दादी सिंह को इस चुनाव में 5991 वोट मिले थे|

1972 के चुनावों में 5818 मत पाकर जगवा विधायक चुने गए थे, जगवा ने छोटेलाल सिंह को परास्त किया था| जबकि इस चुनावों में छोटेलाल सिंह को 5621 वोट मिले थे|

इसके बाद 1977 में चुनाव हुए जिसमें रामखेलावन विजयी घोषित हुए, उन्होंने इस चुनाव में कांग्रेस के अपने निकटतम प्रतिद्वंदी चंद्रप्रताप तिवारी को मात दी थी| रामखेलावन को 10396 तो चंद्रप्रताप तिवारी को 6324 वोट मिले थे|

1977 के बाद 1980 में विधानसभा चुनाव हुए इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार कमलेश्वर प्रसाद द्विवेदी ने अपनी प्रथम जीत दर्ज की| उन्होंने अपने निकटतम गिरिजा कुमार सिंह को परास्त किया था|इस चुनाव में कमलेश्वर प्रसाद द्विवेदी को 15219, जबकि गिरिजा कुमार सिंह को महज 3593 वोट ही मिल सके थे।
इसके बाद लगातार 3 बार कमलेश्वर द्विवेदी कांग्रेस पार्टी से गोपद बनास के विधायक रहे| इस दौरान उन्होंने 1985 में भाजपा के केदारनाथ शुक्ल को परास्त किया था| एवं 1990 के चुनावो में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कृष्ण कुमार सिंह एवं केदारनाथ शुक्ल को परास्त किया था| कमलेश्वर द्विवेदी गोपद बनास विधानसभा सीट से लगातार तीन चुनावों में जीत दर्ज करते हुए 13 साल विधायक रहे|

इस विधानसभा सीट पर एक बार फिर उलटफेर 1993 के चुनावों में देखने को मिला जब निर्दलीय सीट से कृष्ण कुमार सिंह ने जीत दर्ज की| उन्होंने इस चुनाव में
भाजपा के केदारनाथ शुक्ल को हराकर विधायक का पद अपने नाम किया था, इस चुनाव में कृष्ण कुमार सिंह को 23495 वोट मिले थे जबकी भाजपा के केदारनाथ शुक्ल को 22410 वोट ही मिल सके थे|

इसके बाद 1998 के चुनाव में भजपा से केदारनाथ शुक्ल विधायक चुने गए, उन्हें जनता ने 31561 बोट दिए थे जबकि उनके करीबी कृष्ण कुमार सिंह को 25056 वोट मिले थे| आपको बता दें लगातार 3 चुनावों में हार का सामना करने के बाद भी केदारनाथ शुक्ल चुनाव मैदान में डटे रहे और आखिर में उन्हें 1998 में जनता ने गोपद बनास क्षेत्र का विधायक चुना| यह वर्तमान सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ल की पहली जीत थी|

2003 के चुनावों में एक बार फिर कृष्ण कुमार सिंह ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और वे दूसरी पारी में सफल रहे । उन्होने इस चुनाव में वर्तमान राज्यसभा सांसद अजय प्रताप को परास्त कर यह जीत हासिल की थी| अजय प्रताप उस समय भाजपा के टिकट पर गोपद वनास सीट से मैदान में थे उन्हें 20873 वोट जबकि विजयी हुए कृष्ण कुमार सिंह को 49499 बोट मिले थे।

2003 के चुनावों के बाद 2008 में नये परिसीमन के दौरान गोपद बनास बिलुप्त हो कर सीधी विधानसभा में विलय हो गया। और तबसे सीधी विधानसभा केदारनाथ शुक्ल के लिये वरदान बना हुआ है । भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर केदारनाथ शुक्ल ने जीत दर्ज की, जो अभी तक जारी है| केदारनाथ शक्ल को 2008 के चुनावों में 44197 वोट मिले थे| इसके बाद 2013 से निरंतर सीधी के विधायक हैं ।

अब यंहा अंत में थोडा़ सा वर्तमान राजनैतिक गलियारों का शैर करना भी लाजिमी है , चूंकि मिशन 18 सर पर है कौन कंहा से किन किन दलों से दलगत राजनीति में लीन है जानना जरूरी है ।

भाजपा के वर्तमान विधायक केदारनाथ शुक्ल अक्सर विरोधियों से घिरे रहते हैं यह कोई नई बात नही है , शुरू से आज तक उनका राजनैतिक जीवन संघर्षों से भरा रहा है , इतिहास साक्षी है कि उनके बनाये हुये लोग ही उनका पैर खीचने में लीन हैं हलाकि वे सफल होते नही ...? ऐन केन प्रकारेण वे खुद धराशाई होते हैं और केदारनाथ का कदम ... चरामेति चरामेति प्रचालाफ निरंतरम... एक बार फिर उन्हे अपनों से संघर्ष कर आगे की सीढी पार कर सीधी की तीसरी पारी में डंट के खेलना होगा ।

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