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Home सीधी दर्पण डीएन चतुर्वेदी के लिये आसान नही सिहावल की राह.....

डीएन चतुर्वेदी के लिये आसान नही सिहावल की राह.....

सीधी (सचीन्द्र मिश्र)- आगामी चुनाव का बुखार हर किसी के सर चढ़ कर बोल रहा है चाहे वह बड़ेनेता हो या सेवा से पृथक कर्मचारी सभी के मन में चुनावी समर में कूदने की मनसा फलफूल रही है, आगामी चुनाव में अपने को सबसे उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में प्रदर्शित करने में कोइ भी कोर कसार नही छोड़ना चाह रहे है पर बात करे आम आदमी की पसंद न पसंद की तो कुछ और ही बात सामने आती है|

आगामी चुनाव के लिए जिले की समस्त विधान सभा सीटो से हर एक दल से उम्मीदवारों की लम्बी फेहरिस्त है जिनमे से कुछ तो पेशेवर नेता है पर कुछ अनुभवहीन भी है जिन्हें चुनाव का प्रसाद तो नजर आता है पर उसके लिए चुनावी हवन के लिए दी जाने वाली आहूति नजर नही आती है क्यों की ये सर्वविदित है की जनता देखती तो सब को है पर अपना बहुमत किसी एक को ही देती है| पांच साल के लिए अपनी पसंद न पसंद चुनते वक्त जनता बहुत कुछ उम्मीदे उमीदवार में देखती है पर उमीदवार अपनी क्षमता आके बिना की खुद को जब जनता के समक्ष सर्वश्रेष्ठ साबित करने पर तुले रहते है तो वे खुद ही अपने उपहास का कारण बनते है |


बात करे चुनाव की तो हर विधान सभा क्षेत्र से उम्मीदवारों की तो कुछ ऐसे भी चेहरे है जिनसे जनता पूर्णता अनभिग्ज है पर वे खुद को साबित करने में तुले है, ऐसे ही एक उमीदवार सिहावल से डी.एन चतुर्वेदी उदित हुए है जो पहले तो सरकारी मुलाजिम थे लेकिन अब चुनावी गंगा में डुबकी लगाकर राजनीतिक चोला पहनने की फिराक में है पर उनकी इस मंशा को जनता किस हद तक पूर्ण करेगी शायद वो इससे अंजान है तभी तो सिहावल जैसे क्षेत्र में जहां पहले से दिग्गजों की कमी नहीं है वहां अपना सिक्का ज़माने में लगे हुए है, जबकी सिहावल में दोनों ही प्रमुख दलों के पुरोधा आसीन है और तो और जनता की पसंद भी यही है पर कहते है की जब बुखार तेज होता है तब इंसान को होश नहीं रहता ठीक उसी प्रकार चुनावी बुखार ने नवागत उमीदवार डीएन चतुर्वेदी की सोच को पंगु बना दिया है ।


मनुष्य के अन्दर जब पद की ललक जागृत होती है तब अपना भूत, भविष्य व वर्तमान सोचने की क्षमता क्षीण होने लगती है अपने पूर्व पद से अर्जित सम्मान व संपत्ति के मद में जब राजनीती में किसी का प्रवेश होता है तब शायद उसे इस बात का एहसास नही रहता की की अब वह पद से पृथक है अब न तो पद है और न वे मातहत है जो उनके हर आदेश को सरमाथे पर रख करपूरा करते थे, हा पद से अर्जित माया के वसीभूत होकर आपको बढ़ा चढ़ा कर चने के झाड़ में चढाने वाले जरूर है, पर जिस प्रकार चने के काल्पनिक झाड़ पर वास्विकता में नहीं चढ़ा जा सकता वैसे ही चमचो के दम पर चुनावी समर नहीं जीता जा सकता उसके लिए जनता का विश्वास व नेतृत्व क्षमता चाहिए जिसका विकाश निरंतर कार्य से अआता है न की धन से........

वहरहाल डीएन चतुर्वेदी ने इन तमाम तथ्यों से अपने आपको पृथक बताते हुये कहा है आबकारी अपनी जगह और राजनीति अपनी जगह ....

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