सीधी/पथरौला (ईन्यूज एमपी)- वैसे तो चालू शैक्षणिक सत्र के तकरीबन दो माह पूरे होने जा रहे हैं। किन्तु विद्यालयों की शैक्षणिक व्यावस्था अभी भी बेपटरी ही चल रही है। लिहाजा विद्यालय मे अध्ययन करनें आने वाले नौनिहालों की पढाई भगवान भरोसे चल रही है। लेकिन जिम्मेदार शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की बजाय मूक दर्शक बने हुए हैं। यही कारण है विद्यालयों मे पदस्थ शिक्षकों के आने जाने की कोई समय सारणी नहीं है। जब मर्जी हुई आये। जब मर्जी हुई चले गये। ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है आदिवासी जनपद पंचायत कुशमी के प्राथमिक शाला बडकाडोल का। ग्रामीणों के द्वारा शिकायत कर बताया गया था कि उक्त विद्यालय में दो शिक्षक पदस्थ हैं। लेकिन नियमित रूप से विद्यालय में एक ही शिक्षक देखे जाते हैं। जबकि प्रधानाध्यापक के विद्यालय आने जाने का कोई समय नहीं है। जिस पर टीम द्वारा विगत दिवस शनिवार को दोपहर 1.20 बजे प्राथमिक शाला बडकाडोल का निरिक्षण किया गया तो यहाँ मर्जी की पाठशाला चल चल रही थी ।विद्यालय में महज 9 छात्र भोजन करते हुए पाये गये। किन्तु शिक्षक नदारद थे। जिस पर विद्यालय मे पदस्थ रसोईया ललिता पनिका से शिक्षकों के संबध मे जानकारी ली गई तो बताया गया कि शिक्षक की तबियत खराब है, अतः उनके द्वारा दो दिन का अवकाश लिया गया है। जबकि शिक्षक अभी आये ही नहीं हैं। रसोइया ने बताया कि मैने बच्चों को भोजन करवा दिया है और अब इनको घर भेज दूंगी। इसी बीच शिक्षक भी पहुंच गए। उनसे जब देर से आने व नन्हे मुन्हें छात्रो की सुरक्षा व संरक्षा आदि के बारे मे बात की गई तो बोले की मेरे द्वारा रसोइया को फोन कर कहा गया था कि तुम पूरा दिन स्कूल में ही रहना। तत्पश्चात शिक्षक कमरे मे पहुंच कर मध्यान्ह भोजन कर रहे बच्चों की उपस्थिति लेने मे व्यस्त हो गये। अब सवाल ये पैदा होता है कि नौनिहालों के प्रति शिक्षकों की क्या यही जिम्मेदारी होती है। जिन बच्चों को अविभावक शिक्षकों के भरोसे आठ घंटे के लिए स्कूल पढाई करनें भेजते हैं। लेकिन लापरवाह व गैरजिम्मेदार शिक्षकों की बजह से विद्यालय मे छात्रों के साथ यदि कोई अप्रिय घटना घटती है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा। ग्रामीणो द्वारा बताया गया कि शिक्षक कभी भी समय से स्कूल नहीं आते हैं।और जब आते भी है तो समय से पहले ही वापस घर चले जाते हैं। एक ही कमरे मे कैद रहते हैं बच्चे:-देखा गया कि पुराना भवन छतिग्रस्त होने के कारण अतिरिक्त कक्ष के एक ही कमरे में कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को भेडियों की तरह बैठाया जाता है। साथ ही छात्रों का शैक्षणिक स्तर भी काफी कमजोर है। ग्रामीणों द्वारा जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराते हुए विद्यालय की दशा मे सुधार की गुहार लगाई है।