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स्वयं को विकारों से मुक्त कर उपासना के मार्ग से जुड़ना ही वास्तविक मोक्ष प्राप्ति का मार्ग- पंडित श्री बाला व्यंकटेश

धर्म(ईन्यूज़ एमपी)- वृंदावन धाम में आचार्य श्री बाला व्यंकटेश शास्त्रीजी के द्वारा श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिवस में कृष्ण लीला का वर्णन एवं श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह की बहुत ही सारगर्भित व्याख्या प्रस्तुत की। कथा में श्री बांके बिहारी वृंदावन मंदिर के मुख्य सेवक आचार्य बालकृष्ण गोसाई की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। आचार्य श्री बाला व्यंकटेश ने कहा कि आध्यात्मिक भाव से जुड़कर ही समाज का वास्तविक उत्थान संभव है। आध्यात्मिकता व्यक्ति को आत्म-चेतना, समर्पण, करुणा, और अहिंसा जैसे गुणों की ओर अग्रसर करती है। जब समाज के लोग इन मूल्यों को अपने जीवन में अपनाते है, तो उस समाज में सामूहिक रूप से सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलता है।

आचार्य श्री ने बताया कि वृंदावन को 'विनम्रता की भूमि' कहा जाता है, और यह विशेषण कई मायनों में सार्थक और उपयुक्त है। वृंदावन केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं है, बल्कि यह भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं और उनके दिव्य प्रेम का प्रतीक है। यहां के वातावरण, संस्कृति और परंपराओं में एक विशिष्टता है जो इसे 'विनम्रता की भूमि' बनाती है। इसके कई कारण भगवान श्रीकृष्ण का निवास, गोपियों की भक्ति और समर्पण, प्रकृति और साधु-संतों की उपस्थिति, भक्ति और सेवा का आदर्श, हरिनाम संकीर्तन की परंपरा, अहंकार का त्याग और सच्चा प्रेम, अनुभव और आध्यात्मिक परिवर्तन, समर्पण और आत्मसमर्पण की शिक्षा है। इस प्रकार, वृंदावन न केवल भक्ति और प्रेम की भूमि है, बल्कि यह विनम्रता, सादगी, और भगवान के प्रति समर्पण का आदर्श स्थान भी है। यहाँ की संस्कृति, परंपराएँ, और बाताबरण सभी मिलकर इसे 'विनम्रता की भूमि' बनाते हैं, जहाँ हरभक्त अपने अहंकार को त्यागकर भगवान की भक्ति में लीन हो जाता है। आचार्य श्री ने कहा कि स्वयं को विकारों से दूर कर उपासना के मार्ग से जुड़ने से मोक्ष प्राप्त हो सकता है। मोक्ष का अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाना और आत्मा का परमात्मा में लीन हो जाना। यह लक्ष्य तभी संभव है जब व्यक्ति अपने जीवन में भौतिक और मानसिक विकारों को त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलता है। भक्त को विकारों का त्याग, आत्म-साक्षात्कार, शुद्धि और साधना, भगवान के प्रति समर्पण, सत्संग और सद्‌गुरु का मार्गदर्शन, निर्मलता और आत्म-शांति, भगवान के नाम और गुणों का स्मरण, कर्मों का शुद्धिकरण करना चाहिए। इस प्रकार, स्वयं को विकारों से मुक्त कर उपासना के मार्ग से जुड़ना ही वास्तविक मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। यह मार्ग व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है और उसे भगवान के निकट पहुंचाता है। जब व्यक्ति अपने जीवन में भक्ति, साधना, और समर्पण को अपनाता है, तो वह मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।

श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह एक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण तथ्य है जो श्रीमद भागवत में वर्णित है। श्रीमद्भागवत कथा में श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का वर्णन एक अत्यंत मनोरम और रोमांचक कथा है, जो भक्ति, प्रेम, और साहस का प्रतीक है। इस कथा में भगवान श्रीकृष्ण और विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी के पवित्र प्रेम और उनके विवाह का सुंदर चित्रण है। कथा के दौरान विवाह की सुंदर झांकी प्रस्तुत की गई।

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