भोपाल (ईन्यूज़ एमपी): मध्य प्रदेश कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठक एक भावनात्मक नाटक बन गई, जब पीसीसी चीफ जीतू पटवारी भावुक हो उठे। पार्टी के पुराने दिग्गजों की गैरमौजूदगी और नई कार्यकारिणी को लेकर उठे सवालों ने माहौल को और गर्मा दिया। बैठक में पार्टी की दशा और दिशा तय करने के बजाय, यह तय नहीं हो पाया कि 'नेता रोए क्यों?' और बाकी नेता आए क्यों नहीं। 'आंसुओं से नहीं बनेगी सरकार': विजयलक्ष्मी साधौ की दो-टूक बैठक के दौरान पूर्व मंत्री विजयलक्ष्मी साधौ ने जीतू पटवारी को यह कहते हुए झटका दिया कि मायूसी और आंसुओं से कुछ हासिल नहीं होगा। उन्होंने सलाह दी कि "सरकार बनाने की बात करो, भावुकता छोड़ो"। लेकिन साधौ की इस खरी-खरी के बीच पटवारी का भावनात्मक क्षण, नेताओं की बेरुखी पर पर्दा डालने में नाकाम रहा। बैठक में न सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेता गायब थे, बल्कि कई अन्य बड़े नाम भी बैठक से दूरी बनाए बैठे। नदारद नेताओं की लिस्ट इतनी लंबी थी कि बैठक की कुर्सियां खाली और सवाल भारी नजर आए। कांग्रेस की नई कार्यकारिणी पर अजय सिंह ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि इसमें "विंध्य क्षेत्र की उपेक्षा हुई है।" राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने बैठक को "सफल" बताते हुए दावा किया कि नई कांग्रेस का उदय होगा, लेकिन उनके इस बयान को गुमशुदा नेताओं की अनुपस्थिति ने फीका कर दिया। नई कार्यकारिणी को लेकर उठते सवाल और पद ठुकराने वाले नेताओं की बयानबाजी ने पार्टी की अंदरूनी कलह को और उजागर कर दिया। 'आंसुओं का आलम और कुर्सियों का गणित' जीतू पटवारी: भावुक हुए, लेकिन नदारद नेताओं पर कोई सीधा सवाल नहीं उठाया। अमन बजाज और मोनू सक्सेना: पद लेने से इनकार कर दिया। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह: बैठक से गायब, लेकिन चर्चाओं के केंद्र में। विजयलक्ष्मी साधौ: आंसुओं के बजाय रणनीति की मांग। कांग्रेस ने किसानों की समस्याएं, कानून व्यवस्था, और महिलाओं की सुरक्षा जैसे बड़े मुद्दों पर चर्चा का दावा किया, लेकिन सवाल उठता है कि जो नेता खुद पार्टी में "सुरक्षा" महसूस नहीं कर रहे, वे जनता की समस्याएं कैसे सुलझाएंगे? "नई कांग्रेस का उदय होगा," कहने वाले शायद यह भूल गए कि पुरानी कांग्रेस के नेता ही मंच छोड़कर जा रहे हैं।