क्या मध्य प्रदेश में अब कमलनाथ कांग्रेस बनेगी ? - सोमेश्वर सीधी, 3 जून। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का विंध्य प्रदेश में प्रदर्शन कमजोर रहा, वक्तव्य पर वरिष्ठ अधिवक्ता सोमेश्वर सिंह ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा है कि - इतने दिनों बाद कमलनाथ जी को अचानक मैहर प्रवास पर यह बात याद आई। मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी पहले से ही विंध्य प्रदेश के उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पृथक विंध्य की मांग कर रहे हैं। नारायण त्रिपाठी से कमलनाथ के संबंध जगजाहिर हैं। कमलनाथ जी मुख्यमंत्री थे, तब भी नारायण त्रिपाठी उनके प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त कर चुके हैं। गाहे-बगाहे कमलनाथ जी भी नारायण त्रिपाठी को उपकृत करते रहे हैं। यह वही नारायण त्रिपाठी हैं, जिन्होंने कांग्रेस विधायक रहते हुए सतना के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह राहुल के खिलाफ साजिश की थी। बावजूद इसके भी प्रदेश कांग्रेस ने नारायण त्रिपाठी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। जिसके विरोध स्वरूप अजय सिंह राहुल ने नेता प्रतिपक्ष रहते हुये विधानसभा का बहिष्कार कर दिया था। मैहर में कमलनाथ यथार्थ बात नहीं करते। बेतुकी बात करते हैं और कहते हैं कि हम विन्ध्य में कमजोर हैं। अगर विंध्य में ऐसा रिजल्ट नहीं होता तो हमारी सरकार नहीं गिरती। विधायकों की सौदेबाजी से हमारी सरकार नहीं गिरी। हमने पोस्टमार्टम किया है। विंध्य में नई रणनीति बना रहे हैं। हमें नई टीम बनानी है। हर जिले में प्रभारी बनायेंगे और संगठन को एक नया मोड़ देंगे। कहते हैं हारी हुई फौज आपस में लड़ती है। कमलनाथ जी ने यह नहीं बताया कि जिस संभाग में कांग्रेस मजबूत थी वहां क्या हुआ और क्यों हुआ। जिन राजे महाराजाओं का विशेषाधिकार कांग्रेस समाप्त कर चुकी थी। ऐसे लोगों को कमलनाथ महिमामंडित क्यों करते थे। फिर भी यदि ऐसा करते थे, तो उनके साथ महाराज की तरह व्यवहार भी करना चाहिये था। जनता तो लोकसभा चुनाव में ही महाराज को निपटा चुकी थी। मध्य प्रदेश की राजनीति में कमलनाथ जी सिर्फ छिंदवाड़ा तक सीमित थे। फिर भी कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश की बागडोर सौंपी। परिणाम यह रहा की कमलनाथ दोहरी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर पाए। कमलनाथ सरकार अपने अंतर्विरोध के कारण चरमरा कर गिर गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्रियों और विधायकों के विद्रोह के पहले ही कमलनाथ ने स्वत: सिंधिया को दो-दो हाथ करने के लिए उकसाया था। सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्तीफे के बाद उपचुनाव परिणाम में क्या हुआ। कमलनाथ का बिकाऊ और टिकाऊ चुनावी नारा फ्लॉप हो गया। जिसके मुकाबले किसानों के साथ विश्वासघात का नारा भारी पड़ गया। किसानों से उनके कृषि ऋण माफी का वायदा प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी का एक बहुत बड़ा फैक्टर था। जिसे कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी डेढ़ साल तक पूरा नहीं किया। कागजी कार्रवाई करते रहे। चरणबद्ध ऋण माफी की योजना बनाते रहे। खजाना भले खाली था फिर भी कमलनाथ को कर्ज लेकर किसानों से किए गए वायदे को पूरा करना था। व्यापम घोटाले की भी उन्होंने नए सिरे से जांच नहीं कराई। टेंडर घोटाले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हनी ट्रैप मामला हवा हवाई हो गया। कमलनाथ के मंत्री छुट्टा सांड की तरह चरते- खाते रहे। लौंडे- लपाड़ी टाइप के विधायकों को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया। विंध्य प्रदेश के कद्दावर आदिवासी नेता, पूर्व मंत्री, सीनियर विधायक बिसाहूलाल को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। आखिर इसकी जवाबदेही कौन लेगा। विंध्य प्रदेश में कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन की जिम्मेदारी कमलनाथ जी को भी लेनी चाहिये। पिछले विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व ने जब मुख्यमंत्री का कोई चेहरा प्रोजेक्ट नहीं किया था। तब प्रदेश के तत्कालीन कांग्रेस संगठन प्रभारी दीपक बाबरिया ने रीवा में दो संभावित मुख्यमंत्रियों में कमलनाथ व ज्योतिरादित्य सिंधिया का का नाम लिया था। जिससे विंध्य प्रदेश के लोगों में हताशा का संचार हुआ। कमलनाथ तब भी पीसीसी चीफ थे। उन्हें इसका प्रतिवाद करना चाहिये था, परंतु नहीं किया। परोक्ष रूप से विंध्य में कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के लिए वह अधिक जिम्मेदार है। कमलनाथ जी यह क्यों भूल जाते हैं कि उन्हें 1980 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी की सहमति से भोजन के थाली की तरह परोस कर दी गई थी। तब छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से स्वर्गीय गार्गी शंकर मिश्रा 1977 की जनता लहर में भी अपराजेय थे। जिन्हें अन्यत्र भेज दिया गया और छिंदवाड़ा की सुरक्षित सीट से कमलनाथ को टिकट दिया गया था। बाद में स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के स्वनाम धन्य तीसरे मानस पुत्र कमल नाथ जी छिंदवाड़ा लोकसभा के उपचुनाव में स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा से खुद ही चुनाव हार गये थे। निकट भविष्य में लोकसभा व विधान सभा के उप चुनाव सहित पंचायत एवं नगरीय निकाय के स्थानीय चुनाव होने वाले हैं। इनसे कांग्रेस का भविष्य तय होगा। प्रदेश में कमलनाथ जी दोहरी भूमिका में हैं। प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। दिल्ली में उनकी गहरी पकड़ भी है। किन्तु उनके दोहरे आचरण से प्रदेश में संगठन को ताकत नहीं मिल पा रही है। कमलनाथ जी के बयान से जाहिर होने लगा है कि वह प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नहीं, कमलनाथ कांग्रेस बनाने पर आमादा हैं। विंध्य में उनके लिये नया चेहरा भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी होंगे ? जो बिकाऊ- टिकाऊ की नजीर हैं। उनकी एकाधिकारवादी सोच से ग्वालियर - चंबल में विद्रोह हुआ, यह वह माने या न माने; वही प्रयोग वह विंध्य में भी करना चाह रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है। दमोह उपचुनाव में अजय टंडन की जीत का श्रेय अकेले अपनी झोली में डालकर वह दिग्भ्रमित हो गये हैं। इसका खामियाजा उन्हें आगामी उपचुनाव में देखने को मिल सकता है। क्योंकि यह चुनाव सांसद व विधायकों के निधन से रिक्त सीटों पर होना है। बिकाऊ-टिकाऊ का स्लोगन नहीं चलने वाला है; संगठन व कार्यकर्ता जीत तय करेंगे। जो कमोवेश हताश या निष्क्रिय कर दिये गये हैं। विंध्य के आम कांग्रेस जन केंद्रीय नेतृत्व से आग्रह करते हैं कि संक्रमण काल में कमलनाथ जी के बड़बोलेपन पर लगाम लगायें। सोमेश्वर सिंह वरिष्ठ पत्रकार, सीधी मोनं 7000 231997 वास्तु प्रकाशनार्थ