भोपाल (ईन्यूज एमपी)- लोकतंत्र सेनानियों (मीसाबंदियों) को दी जा रही 25 हजार रुपये की सम्मान निधि को बढ़ाकर 30 हजार रुपये प्रतिमाह किया जाएगा। जो लोकतंत्र सेनानी एक माह से कम अवधि के लिए बंदी रहे हैं, उनकी सम्मान निधि आठ हजार रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये की जाएगी। दिवंगतों के परिवारों को दी जाने वाली निधि भी पांच हजार से बढ़ाकर आठ हजार रुपये की जाएगी। लोकतंत्र सेनानियों को दिल्ली प्रवास के दौरान मध्य प्रदेश भवन में ठहरने की सुविधा होगी। जिलों के विश्राम गृह और रेस्ट हाऊस में वे दो दिन तक 50 प्रतिशत शुल्क देकर रह सकेंगे। साथ ही सभी तरह की बीमारियों का संपूर्ण इलाज राज्य शासन द्वारा कराया जाएगा। यह घोषणाएं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री निवास पर लोकतंत्र सेनानियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए की। उन्होंने कहा कि शासकीय कार्यालयों में मीसाबंदियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार हो, इसके लिए विशेष निर्देश जारी किए जा रहे हैं। लोकतंत्र सेनानियों को राज्य शासन की ओर से ताम्रपत्र प्रदान किए गए थे, जिन्हें ताम्रपत्र मिलना शेष हैं उन्हें भी तत्काल ताम्रपत्र उपलब्ध कराए जाएंगे। लोकतंत्र सेनानी किसी भी तरह के कष्ट और परेशानी में अपने आप को अकेला न समझें, राज्य सरकार उनके साथ है। सम्मेलन में मुख्यमंत्री ने लोकतंत्र सेनानियों का अंगवस्त्र पहना कर स्वागत किया तथा उन्हें प्रतीक चिन्ह भेंट किए। मुख्यमंत्री ने आपातकाल की कटु स्मृतियों पर रमेश गुप्ता की पुस्तक "मैं मीसाबंदी-आपातकाल व्यथा-कथा- 19 महीने" का विमोचन किया। मुख्यमंत्री ने कहा है कि सत्ताधीशों ने अपने आप को सत्ता में बनाए रखने के लिए लोकतंत्र का गला घोंटा गया, लेकिन लोकतंत्र सेनानियों ने बिना परिणामों की परवाह किए यातनाएं और कष्ट सहे। उन्होंने देश की आजादी की तीसरी लड़ाई लड़ी। इस संघर्ष का सम्मान हमारा कर्तव्य और धर्म है। इस दौरान सम्मेलन में सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री इंदर सिंह परमार, पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया, राज्य सभा सदस्य कैलाश सोनी, मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष तपन भौमिक सहित लोकतंत्र सेनानी उपस्थित थे। जिनकी लोकतंत्र में आस्था नहीं, उनसे सतर्क रहना जरूरी है मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि आपातकाल में कई परिवार तबाह हुए। यह वह दौर था जब कोई अपील- कोई वकील- कोई दलील नहीं सुनी जाती थी। लोकतंत्र सेनानियों ने एक सिद्धांत, विचारधारा और संगठन के लिए यातनाएं सहीं, यह उस विचार का सम्मान था, जिसने लोकतंत्र को बचाया। वर्तमान में भी लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेदारी हम सबकी है। जिनकी लोकतंत्र में आस्था नहीं है, जिनका भारतीय संस्कृति- मूल्यों और परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है, उनसे सतर्क रहना जरूरी है।