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चेहरे चर्चित चार, शिक्षा , स्वास्थ्य , कलाकार और साहित्यकार ....

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उन लोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
शिक्षा , स्वास्थ्य , कलाकार और साहित्यकार ....



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✍️ अर्जुन प्रसाद मिश्र📱
सेवानिवृत्त प्राचार्य


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आज हम चर्चित चेहरे में अर्जुन की बात करेगे अर्जुन महाभारत वाले नहीं जिनके हाथ में धनुष होता था अर्जुन सीधी वाले जिनके सर पर बॉस की टोपी और और हाथ में हर वक्त किताब या अखबार होता है, जी हां हम बात कर रहे है सीधी जिले के शिक्षा जगत से जुडी़ ऐसी विभूति की जिसने खुद सादा जीवन व्यतीत किया लेकिन इनके पढाये छात्र आज देश में कई बड़े बड़े पदों पर आसीन है या रह चुके हैं और तो और कई छात्र विदेशो में भी अपनी सेवाए दे रहे हैं, कोई डाक्टर है तो कोई आई. ए. एस. कोई वकील तो कोई पत्रकार ....जिन्हें राज्यपाल के हांथो सम्मान भी मिल चुका है, जी हा हम बात कर रहे है रिटायर्ड प्राचार्य अर्जुन प्रसाद मिश्र की ।

अर्जुन प्रसाद मिश्र से शायद वर्तमान युवा पीढी अनजान हो लेकिन सीधी जिले के बुद्धिजीवी , समाजसेवी प्रशासनिक अधिकारी और शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोग इनके बारे में बड़े अदब और लिहाज से चर्चा करते हैं, इनका व्यक्तित्व बेहद सरल सहज और सादगीपूर्ण रहा है सर पर बॉस की टोपी और सायकल इनकी पहचान हुआ करती थी ।

अर्जुन प्रसाद मिश्र जी का जन्म सीधी जिले के चुरहट क्षेत्र अंतर्गत भितरी ग्राम में 2 जुलाई 1940 को हुआ था आपकी प्राथमिक शिक्षा कुआं,माध्यमिक शिक्षा ममदर व हाई स्कूल की शिक्षा मार्तण्ड हाई स्कूल रीवा से संपन्न हुई । आपने उच्च शिक्षा में टीआरएस कालेज रीवा से बी ए करने के बाद प्राइवेट से एम ए इंग्लिश विषय के साथ किया एवं प्राइवेट छात्र के रूप में ही सीधी से एल एल बी की शिक्षा ग्रहण की ।

शासकीय सेवा में बतौर (UDT) शिक्षक आपका चयन सन 1960 में हुआ और पहली पदस्थापना बालिका हाईस्कूल सीधी में हुई साथ ही वंही से आपका चयन BED के लिये चयनित हो गया था किंतु चन्द्रप्रताप तिवारी के संहयोग से गैर BED दक्षता के अनुसार लेक्चर पद पर पदोन्नति करके मझौली में पदस्थ कर दिया गया । शिक्षा और अध्ययन के प्रति आपका समर्पण इतना ज्यादा रहा है की दिनरात पढाई करना इनकी फितरत बन गई अंग्रेजी के अखबार के प्रति आपकी रूचि कुछ ज्यादा ही रही है साथ ही पूरे सम्मान और समर्पण से छात्रो को पढ़ाना आपकी खासियत रही है, ये अनुशासन प्रिय शिक्षक रहे है और यंही कारण है कि पंडित जी आज भी पूज्यनीय हैं और समाज की कतार में प्रथम पंक्ति में है सुमार हैं ।


बतौर शिक्षक ये कितने सफल रहे हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनके पढ़ाये छात्र कई महत्वपूर्ण जगहों पर रह चुके है या वर्तमान में भी है बात करें इनके छात्रों की तो जिले के पूर्व मंत्री रहे कमलेश्वर द्विवेदी के जीजा श्रीनिवास शर्मा IAS वने , विंध्य क्षेत्र से शिवानंद दुबे भी IASवनकर कमिश्नर चम्बल सम्भाग से रिटायर्ड हुये हैं , Dr. विजयशंकर मिश्रा MD मंदसौर , Dr. बृजभूषण मिश्रा संचालक स्वास्थ्य सेवाएं , पद्मनाभ तिवारी असिस्टेंट कमिश्नर इंकमटैक्स इंदौर , डॉक्टर गणपति प्रसाद मिश्र न्यूरो सर्जन अरब देश ओमान कुवैत, राजेन्द्र सिंह गोड़ Bhel. भोपाल में पदस्थ रहे हैं , इसके अतिरिक्त जिले के वरिष्ठ पत्रकार विजय सिंह , पद्ममधर पति त्रिपाठी पप्पू और आर.वी. सिंह सहित अन्य लोग भी इनके छात्र रहे हैं।


जिले में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है उत्कृष्ट विद्यालय सीधी में वतौर प्राचार्य रहते हुये ये स्कूल भवन के इर्दगिर्द निर्मित भवनों को स्कूल हित में चाहते थे चूंकि वह सभी भवन स्कूल की भूमि पर निर्माण कराये गये थे , तत्कालीन कलेक्टर पंकज अग्रवाल से हस्ताक्षेप करके अर्जुन पंडित जी ने अपनी ओर से भरसक प्रयास किया किंतु उस जमाने में सांडां ने वह भूमि हंथिया ली और आनन फानन में भवनों का निर्माण करा दिया गया । फिर भी वह रुके नही न्यायालय का दरवाजा खटखटाया किंतु एक शासकीय अभिभाषक के अपने दायित्वों से मुकर जाने के कारण अंततः वह वेशकीमती भूमि स्कूल के हक सें अलग हो गई और पंडित जी को निराशा हांथ लगी ।

आपको 2001 का राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान 5 सितम्बर 2002 को भोपाल में राज्यपाल डॉक्टर महावीर भाई के हांथों सम्मानित किया गया । साथ ही पंडित जवाहर लाल नेहरू जन्मशताब्दी समारोह सीधी में वुद्धि जीवी वर्ग की प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हांसिल हुआ था। शिक्षाविद अर्जुन पंडित जी अंग्रेजी के एक अच्छे जानकार हैं , एक जमाना था जब भारत डिजिटल नही था और पिछड़े जिलों में सुमार सीधी का " गूगल " पंडित जी हुआ करते थे ... अंग्रेजी से सम्बंधित मामलों को हिंदी में ट्रांसलेट करना पंडित जी के लिये वड़ा आसान था । आज भारत डिजिटल क्रांति की ओर अग्रसर है अधिकांश जानकारी फौरन गूगल से हांसिल हो जाती है किंतु दो दशक पूर्व सीधी के लिये अर्जुन पंडित जी गूगल की भूमिका अदा करते रहे हैं ।

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✍️ डॉक्टर डी.के.द्विवेदी📱
रिटायर्ड सिविल सर्जन

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आज चर्चा स्वास्थ्य मुहकमे की ..हम एक ऐसे शख्स की बात करने जा रहे है, जिसने जिले को लम्बे समय तक अपनी सेवा दी और लोगों के बीच एक बेहद सरल सहज और मृदु भाषी व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने गांव से एक सामान्य विद्यार्थी के रूप में अपनी शुरुआत कर एक चर्चित और योग्य चिकित्सक के रूप में अपनी पहचान बनाई है, हमारे आज के कालम में चिकित्सक के रूप में ऐसी ही महान विभूति डाक्टर दिनेश द्विवेदी मौजूद हैं जिन्हें सब डाक्टर डी.के. द्विवेदी के रूप में जानते है और इसी नाम से वे प्रसिद्द भी है ।
डाक्टर डी के द्विवेदी का जन्म सीधी के पड़ोसी रीवा जिले के गोविन्दगढ़ के बांसा गांव में 5 अक्टूबर 1956 को परौहा परिवार में हुआ हुआ था । ये बेहद सामान्य घर से ही थे इनके पिता स्वर्गीय रामाशीष द्विवेदी व माता श्रीमती मानवती द्विवेदी हैं इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही पूर्ण हुई, हायर सेकेन्ड्री की पढाई इन्होने गोविन्दगढ़ हायर सेकेन्ड्री स्कूल से प्राप्त की, श्री द्विवेदी के पढाई के प्रति ललक और समर्पण इन्हें उच्च शिक्षा हेतु रीवा ले आई और शासकीय विज्ञान महाविद्यालय से इन्होने बी. एस .सी .करने के बाद डाक्टर बनने के लिए रीवा के ही श्यमाशाह चिकित्सा महाविद्यालय से सन 1980 में एम. बी. बीएस .एवं 1984 में यही से एम डी (मेडिसीन) की पढ़ाई पूर्ण कर मानव सेवा में लग गए ।


बतौर डाक्टर इनकी पहली नियुक्ति लोकसेवा अयोग के मार्फत 1984 में सहायक शल्य चिकित्सक के रूप में हुई इसके बाद पदोन्नति पर ये बतौर मेडिकल स्पेस्लिस्ट 2008 में सीधी आ गए और यही के हो गए । जिला चिकित्सालय सीधी में इनकी पदस्थापना 2004 में हुई और अपनी कार्यशैली और कार्यकुशलता के कारण ये सर्वप्रिय चिकित्सक बन कर लोगो की सेवा में लीन रहे,इन्होने डाक्टर के साथ साथ एक अच्छे प्रशासक के भी दायित्वों का निर्वहन किया और जिला चिकित्सालय की साफ सफाई और बेपटरी व्यवस्था को पटरी पर लाकर दुरुस्त किया शायद यही कारण है कि श्री द्विवेदी तीन तीन बार जिला चिकित्सालय में बतौर सिविल सर्जन अपनी सेवाए दे चुके हैं और जिला चिकित्सालय की स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त रखे रहे । डाक्टर डी.के. द्विवेदी ने पहली बार नवम्बर 2011 में जिला चिकित्सालय की कमान सम्हाली थी और दिसम्बर 2014 तक सिविल सर्जन रहे इसके बाद पुन: दिसम्बर 2016 से जून 2018 तक ये बतौर सिविल सर्जन जिला चिकित्सालय में सेवाए देते रहे, जबकी इनकी तीसरी पारी कोविड के समय जून 2020 से मई 2021 तक चली जो सबसे कठिन और यादगार रहेगी ।

डांक्टर डी .के .द्विवेदी जिले में एक बहूत ही चर्चित और सर्व प्रिय डांक्टर हैं और लम्बे समय से जिले के लोगो के साथ इनका लगाव कुछ इस तरह से है की इनके आवास के बाहर मरीजो की लम्बी कतार देखी जा सकती है और करीब तेरह वर्षों तक सीधी जिले में जन सेवा कर 31 अक्टूबर 2021को यंही से सेवानिवृत्त हो गये । डॉक्टर डी.के.वतौर शासकीय चिकित्सक सीधी के सैकड़ों लोगों को जीवनदान दिया है , कोरोना काल हमेशा याद रहेगा जब डाक्टर डी के द्विवेदी ने खुद तत्कालीन कलेक्टर रवीन्द्र चौधरी के कंधे से कन्धा मिलाकर लोगो की सेवा की और उनकी इसी सेवा भावना का फल है कि जब 31 अक्टूबर को डाक्टर डी के द्विवेदी सेवा निवृत्त होते हैं तो गाजे बजे के साथ थिरकते हुए उनके सहयोगी चिकित्सको ने उन्हें विदाई दी , विदाई का पल भी बडा़ रोचक व उल्लेखनीय रहा ... न भूतो न भविष्यत ।

💐 मेरी ओर से मंगलकामना 💐


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✍️फड़ीन्द्र शेखर पाण्डेय📱
कलाकार

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चेहरे चर्चित चार के कालम में आज हम बात करेंगे कला की ... जिले के एक ऐसे कलाकार के बारे में चर्चा करेगे जो जिले का प्रतिनिधित्व देश के कई बड़े शहरो में कर चुके है ये बेहद उम्दा गायक है,शिक्षक है और एक अच्छे बागवान भी हैं यही नहीं ये सीधी जिले के जगजीत सिंह भी है मेरे ख्याल से अब इनके बारे में आप समझ ही गए होगे ये है जिले के प्रसिद्ध गायक फणींद्र शेखर पांण्डेय ....

फणींद्र शेखर पांण्डेय का जन्म 22.अक्टूबर 1967 को सीधी जिले में ही हुआ इनकी शिक्षा दीक्षा भी सीधी जिले में ही संपन्न हुई । इनकी रुची संगीत के प्रति इतनी प्रगाढ़ थी की शिक्षक बनने के बाद भी इनकी संगीत साधना चलती रही और ये ग़ज़ल ,भजन ,गीत, गायन में लोकप्रिय हो गाये इनके संगीत गुरु स्वर्गीय श्री बसंत तिमोथी ( आई, के , एस, वि, वि खैरागढ़) रहे और इनके सानिध्य में ही इन्होने संगीत की दीक्षा अर्जित की । जगजीत सिंह की गजलो को लेकर इनके साथ बड़ा आत्मीय नाता रहा है इसी कारण से इन्हें सीधी जिले का जगजीत सिंह भी कहा जाता है जिले में होने बाले कार्यक्रमों में इनकी आवाज का जादू तो दिखता ही है साथ ही साथ देश के कई बड़े शहरो में भी इन्होने अपनी गायकी की जंहा छाप छोडी है वंही कई सम्मान अपने नाम किये हैं ।

बात करे इनकी उपलब्धियों की तो लता मंगेशकर सुगम संगीत स्पर्धा में इन्हें रीवा संभाग में प्रथम पुरुष्कार अर्जित है , राज्यस्तरीय लता मंगेशकर सुगम संगीत स्पर्धा इंदौर में इन्होने सीधी जिले का प्रतिनिधित्व किया है जिसके लिए स्थानीय प्रशासन ने इन्हें 1996 में गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया था, इसके अतिरिक्त राज्यस्तरीय पर्यावरण गीत स्पर्धा में ये लगातार तीन बार प्रथम स्थान पर रहे है । साथ ही देश के बड़े शहरों मे मंचीय कार्यक्रम में इन्होने अपनी गायकी का जादू बिखेरा है व जिले की सांस्कृतिक गतिविधियों में 30 वर्षों से सक्रिय भागीदारी निभाते आ रहे है ।फणींद्र शेखर पांण्डेय जिले में एक ऐसा नाम है जिससे शायद ही कोई अनजान हो कलाकारों की जमात में तो इनका नाम है ही एक पर्यावरण प्रेमी कहे या बागवान के रूप में भी ये काफी प्रसिद्द हैं गौर करे तो इन्होने अपने घर में करीब 300 गमलो में सुन्दर-सुन्दर फूलों को जगह दे रखी है और संगीत के बाद इनका अधिकतर समय इन्ही की देखभाल में कटता है ।


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✍️ हरिनरायण सिंह हरीश📱

साहित्यकार





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चर्चित चेहरे के आज के अंक में एक और साहित्यकार से हम रूबरू होंगे जिन्होने हिंदी और बघेली के माध्यम से जिले का नाम प्रदेश के साथ साथ देश में भी रोशन किया है, आपकी रचनायें किताबो के पन्नो से चलकर टीवी रेडियो तक के माध्यम से लोगो तक पंहुच चुकी है ऐसी प्रतिभा के धनी साहित्यकार हरिनारायण सिंह हरीश जी है जो जिले की एक अनोखी प्रतिभा है ।

हरीश जी का जन्म रीवा जिले के देवतालब क्षेत्र अंतर्गत गनिगमा में आजादी के पहले 1 जनवरी 1945 को हुआ था ,लेकिन वर्तमान में ये सीधी जिले के निवासी बन गए है । इनके पिता बलदेव सिंह सिकरवार और माता का नाम सुमित्रा देवी सिंह है , इन्होने सीधी जिले मे साहित्य के साथ साथ अपनी सेवाए भी दी है ये बतौर लेखापाल जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित सीधी में पदस्थ रहते हुए सेवा निवृत्त हुए है ।


हरीश जी को सन 1991 में श्रमजीवी पत्रकार संघ सीधी द्वारा प्रभाकर सम्मान दिया गया, साथ ही 1991 में ही मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन इकाई द्वारा लाल पद्मनाथ सिंह सम्मान से भी इन्हें नवाजा गया । हरीश जी की रचनाएं देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं, एवं आकाशवाणी रीवा, भोपाल, और अंबिकापुर से भी इनकी कविताओं का प्रसारण होता रहता है, हरीश जी का जादू पत्र-पत्रिकाओ से चलकर किताबो,रेडिओ तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि दूरदर्शन भोपाल से भी इनके हिंदी गीतों का सजीव प्रसारण कई बार हुआ है ।

हरिनारायण सिंह मूलतः बघेली एवं हिंदी में रचनाओं के लिए जाने जाते हैं, बघेली एवं हिंदी में इनके परिपक्व हस्ताक्षर हैं, साथ ही गीत एवं गजलो के लिए भी यह जाने-माने कवि हैं आप एक सहज सरल व्यक्तित्व के धनी हिंदी के रचनाकार हैं ।

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