आदरणीय पाठक बंधु सादर अभिवादन स्वीकार हो। हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे। मेरी पूरी कोशिश होगी कि उन लोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें। आपका सचीन्द्र मिश्र सीधी ................................................... 📱 चेहरे चर्चित चार📱 संविदकार - अफसर - साहित्यकार और पत्रकार.... जिनकी कहानी कलम लिखेगी " समाजसेवी " व्यापारी और वैद्य रचनाकार । ........... ....................................... ✍️ शंकर सिंह परिहार📱 वरिष्ठ संविदाकार ................................................... मंहगी कार, लम्बे बाल,हर उम्र के लोगो के यार यही तो हैं शंकर सिंह परिहार, जी हां आज सीधी जिले में यह नाम किसी की पहचान का मोहताज नहीं है एक समाज सेवी, गायक और सविदाकर के रूप में जिले में शंकर सिंह परिहार का नाम सब की जुबा पे सुमार है , राजनीतिक पार्टियों से दूर रहते हुए भी शंकर सिंह परिहार एक ऐसा नाम है जिनकी चर्चा सदैव लोगो के बीच बनी ही रहती है| उम्र चाहे जो हो लेकिन इनकी उमंग और उत्साह को देखकर ऐसा लगता है कि शायद इन्ही जैसे लोगो को देखकर किसी ने कहा होगा की जिन्दगी जिन्दा दिली का नाम है उम्र तो महज एक नंबर है और जीना अपना काम है| शंकर सिंह परिहार नवयुवाओं के लिए प्रेरणा तो है ही साथ में एक अच्छे साथी भी है, हर उम्र के लोग उनके मित्रो में शामिल है अपनी मुस्कान के साथ दबंग बोली का अंदाज लोगो के मन को छू जाता है जिले में कोई त्यौहार हो या खेल इनकी सहभागिता जरूर होती है युवा जहां इनका अनुसरण करते है वंही इनके हमउम्र इनके साथ की इच्छा..... शंकर सिंह परिहार का जन्म सीधी जिले के पड़रा में 1966 में हुआ इनके पिता स्व. दामोदर सिंह परिहार थे । इनकी प्रारम्भिक शिक्षा जिले में ही हुई उत्कृष्ट विद्यालय सीधी क्रमाक 1 में पढने के बाद यह झांसी गए जहां से बुंदेलखंड इंजीनियरिंग कालेज से इन्होने सिविल में B.E.की डिग्री हासिल की । शंकर सिंह परिहार भी अपनी उम्र के लोगो की तरह ही सामान्य परिवार से थे, और आज की तरह प्रसिद्ध नहीं थे लेकिन माता पिता से लेकर बड़े बुजुर्गो का आशिर्वाद और उनकी कड़ी मेहनत और इच्छा शक्ती ने उन्हें ये मुकाम दिया है । सीमित संसाधनों के साथ इंजीनियरिंग तक की पढाई करने के बाद संघर्षरत रहते हुए इन्होने जिले में A ग्रेड के सड़क व भवन निर्माण संविदाकार के रूप में अपनी पहचान बनाई, धीरे धीरे वो दौर भी आया जब इनकी चर्चाएँ गलियों और आम लोगो के बीच बढ़ने लगी फिर चाहे उनके अंदाज को लेकर हो या उनकी कार को लेकर शंकर जिले के चर्चित चेहरों में शुमार हो गये । कभी सीधी की इन्हीं गलियों में खुद का भविष्य तलाश रहे थे लेकिन आज सफल व्यक्तियों की चर्चा हो तो सबसे पहले उनका नाम आता है। इतना ही नही न जाने कैसे इनके मन में संगीत के प्रति इतनी लगन बढ़ी की जिले में इनके सहयोग से एक म्यूजिकल ग्रुप ही खड़ा हो गया जो जिले का नाम अन्य प्रदेशो में लेकर आगे बढ़ रहा है, और तो और इन्होने अपनी इच्छा शक्ती के चलते खुद को गायक भी साबित कर दिया और जिले के होने वाले सगीत कार्यक्रमों में इनकी आवाज भी गूंजती रहती है । शंकर सिंह परिहार न केवल सविदाकर और कलाकार है बल्कि एक अच्छे समाज सेवी भी है जो जिले के गरीबो की आए दिन मदद करते रहते है युवाओं को खेल के प्रति प्रोत्साहित करते है, कई बार तो लोग उन गरीब परिवार के लोगों की व्यवस्था को देख चकाचौंध रह गए कि इतनी सुसज्जित व्यवस्था कैसे ...? बाद में पता चला कि यह व्यवस्था शंकर जी के सहयोग से संभव हुई हैं । किसी भी कार्य को लग्न और जुनून के साथ करना अंतिम मूर्त रूप देने वाले श्री परिहार शासन प्रशासन के साथ अक्सर कंधें से कंधा मिलाकर चलना उनकी आदत में है। और तो और दलगत राजनीति से परे शंकर सिंह का आज हर दल में सम्मान हैं ... और इसके पीछे का कारण क्या है हमें भी नही पता । ................................................... ✍️ डॉक्टर एम.पी.गौतम📱 उप संचालक ................................................... आज हम चर्चित चेहरे में एक ऐसे शख्स की चर्चा कर रहे है जो गरीबी से उठकर लगन, मेहनत और इश्वर के सहारे न केवल अधिकारी बना बल्कि अपने पुत्र को भी मानव सेवा के लिए चिकित्सक बनाकर तैयार किया जबकी वह खुद एक वाहन चालक के पुत्र हैं और इस बात से उन्हें कभी भी कोई शर्मिंदगी या दिक्कत नही हुई बल्कि समय समय पर इस बात को हमेशा सार्वजानिक भी करते रहे ऐसे आज के हमारे सरल सीधे और धार्मिक अधिकारी हैं वर्तमान उपसंचालक पशु चिकित्सा सेवाएं सीधी डाक्टर एम पी गौतम.... जी हां भगवन पर इनकी आस्था और भक्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की यह अपने कार्यालय में स्थित भगवान को बिना जलाभिषेक किये अपने कार्यालय के काम काज की शुरुआत ही नहीं करते सामान्य कार्यदिवस के अतिरिक्त भी अवकाश के दिनों में यदि यह जिले में है तो महज भगवान के अभिषेक हेतु यह छुट्टी के दिनों में भी कार्यालय आते हैं । डाक्टर एम पी गौतम का जन्म रीवा जिले के देवतालब में 1 जुलाई 1962 को एक सामान्य परिवार में हुआ इनके पिता शासकीय वाहन चालक हुआ करते थे । इनकी आठवी तक की पढाई नई गढ़ी में हुई,यह छ: किलो मीटर का पैदल सफ़र तंय कर पढने जाते थे, ये पढने में बेहद प्रतिभावान छात्र रहे जिसके कारण इन्हें ग्रामीण प्रतिभावान छात्र के रूप में आदर्श छात्रवृत्ति मिली जो इनके विकाश में सहायक साबित हुई और इन्हें गाँव से निकलकर रीवा जिले में अध्ययन करने का मौका मिला | इन्हों ने सांइस कालेज रीवा से Bsc एवं पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय महू इंदौर से BVSc AH की पढाई की इन्हें यहां भी स्कालर शिप मिलती ही रही । 1983 में ये डॉक्टर बनकर निकले और एक साल तक गुजरात में अमूल डेयरी में काम किया, सन 1984 में यह शासकीय सेवा में आऐ और बतौर विटनरी डाक्टर इन्होने बैतूल से अपना कार्यकाल शुरू किया । इसके बाद यह ग्रामीण विकास में पदस्थापना के दौरान बतौर CEO जनपद पंचायत खजुराहो, डीपीआईपी में पन्ना और सीधी के भुइमाढ में बतौर प्रोजेक्ट आफिसर रहे । आप सीधी जिले में 2005 से सेवाए दे रहे है जिसमे पहले आप चिकित्सक रहे और पदोन्नति के बाद अब आप बतौर उप संचालक पशु चिकित्सा एवं सेवाए सीधी में पदस्थ है| डाक्टर एमपी गौतम चिकित्सक के साथ साथ योग प्रेमी है ये वर्तमान में सीधी जिले में पतंजली योग समिति के अध्यक्ष है और इनके द्वारा सैकड़ो लोगो को योग के मार्फ़त निरोग किया गया है| इसके अतिरिक्त ये म.प्र.खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा संचालित म.प्र.योगासना स्पोर्ट्स एसोसिएशन जिसके प्रदेश अध्यक्ष वेदप्रकाश शर्मा है उसमे ये सीधी जिले के जिला अध्यक्ष हैं और इनके मार्गदर्शन में जिले से 14 किशोर व युवओं को प्रशिक्षण देकर ओलंपिक खेलो के लिए प्रदेश स्तर पर भेजा गया है । जिले में पदस्थ डाक्टर एमपी गौतम उन लोगो के लिए मिशाल है जो परिस्थितियों का रोना रोकर अपनी प्रगति को रोक देते है इन्होने नित प्रयासरत रहते हुए अपनी पीढ़ी में प्रगति लायी और गरीब परिवार से आगे बढ़कर अधिकारी बने और अपने पुत्र को भी मानव सेवा के लिए तैयार किया और आज इनके पुत्र डॉक्टर अविनाश गौतम एम एस सर्जरी मेडिकल कालेज इंदौर में सेवारत हैं। ............................. ............. ....... ✍️ श्रीनिवास शुक्ल📱 साहित्यकार ................................................... आज हम बात कर रहे हैं विधि से इतर एक अच्छे साहित्यकार की ..हमारे बीच है बघेली साहित्य और संस्कृति के सुप्रतिष्ठित एवं सुपरचित साहित्यकार डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस ... आपका जन्म 3अपैल सन 1950 को मध्यप्रदेश के सतना जिलान्तर्गत गाॅव भमरहा तहसील रामनगर में एक सामान्य वर्गीय किसान के घर में हुआ है। आपके पिता का नाम पं सवर्गीय जगदीश प्रसाद शुक्ल एवं माता का नाम स्वर्गीय श्री मती रमकी देवी शुक्ला है। वर्तमान में डाॅ शुक्ल विजय फिलिंग उत्तरी करौदिया बार्ड नम्बर सात ,जिला सीधी मध्यप्रदेश के स्थायी निवासी बन चुके हैं।आपको देश एवं प्रदेश में अब सीधी जिले के एक प्रतिनिधि बघेली कवि के रूप में जाना जाता है। आपने एम .ए .हिन्दी साहित्य की परीक्षा उत्तीर्ण कर अवधेश प्रताप सिंह विश्व विद्यालय रीवा से पीएच डी की उपाधि ली। डाॅ सरस शिक्षा विभाग पन्ना में एक शिक्षक के रूप में सन 1976से 1980तक रहे। आप स्थान्तरित होकर 1980में आये और कलेक्टर बॅगला सिविल लाइन सीधी में स्थित शासकीय हाई स्कूल कोतरकला से 2012 में सेवा निवृत्त होकर अब स्वतन्त्र रूप से साहित्य लेखन कर रहे हैं। सरस जी बघेली साहित्य और संस्कृति के उन्नयन के लिए प्रारम्भ से ही समर्पित रहे हैं।आज 71वर्ष की उम्र में भी वे साहित्य की दिशा में नितान्त सक्रिय दिखते हैं।अखबारों की सुर्खियों में बने रहने बाले यह एक ऐसे रचनाकार हैं कि इनके चेहरे में आज भी साहित्य की थकान नही दिखती। ये कभी अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन में,कभी युगधारा साहित्य प्रकाशन लखनऊ के सेमीनार में,और कभी साहित्य अकादमी भोपाल की साहित्यिक विचार संगोष्ठी में एक बघेली के प्रतिनिधि विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता करते देखे जाते हैं। अभिप्राय कहने क यह कि "लगन के पाॅव थकते नही हैं" कथन को डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस आज भी चरितार्थ करते हैं। डाॅ श्रीनिवास सच मायने में बघेली के प्रथम पंक्ति के कवि हैं।आपकी अब तक 15पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी सबसे महत्वपूर्ण एवं कालजयी कृति" बघेली - शब्दकोश" मध्यप्रदेश शासन संस्कृति संचालनालय का उपक्रम मध्यप्रदेश बोली विकास अकादमी भोपाल ने सन 2009में रोयल्टी देकर प्रकाशित किया है जिसे बघेली भाषा के लिए एक सुखद उपलब्धि मानी जाती है।इतना ही नही भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय की संस्था "दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र नागपुर द्वारा आपकी विरचित कृति "बघेली लोक कथाएं " 2012 में प्रकाशित एवं संरक्षित किया है।कैसे साहित्य जगत और बघेली जनमानस नही स्वीकार नही करेगा कि आपने बघेली को प्रवेश से ऊपर देश तक प्रतिष्ठित किया है।आपकी अन्य कृतियाॅ जैसे रसखीर (बघेली कविता संग्रह)1985,सरस सौरभ (खड़ी बोली हिन्दी की कविताएं)संस्करण 1986,अमरउती (बघेली कविताएँ)संस्करण 1991,आयाम के पंख (हिन्दी कविताएँ)संस्करण 2002,अंजुरी भर अॅजोर (बघेली कविताएं)सन, 2003,रुद्रशाह खण्ड काव्य (खड़ी बोली हिन्दी कविता)सन 2004,सीधी जिले का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विकास सन 1994में,चुप रह दादू भउसा है (बघेली गजलें)सन 2014, आमा केरि टिकोरी झरिगै (बघेली मुक्तक)सन 2014,मॅहतारी बिटिया (बघेली गजल)2012, बघेली गजल अउर मुक्तक सन 2017,सोधी माटी लोनी बघेली (बघेली सं कृति)सन 2019,और रहब उजियार के साथे (बघेली गजल)2021में प्रकाशित हैं।अभी भी डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस की कई पाण्डुलिपिया शासन स्तर पर प्रकाशनाधीन हैं। बघेली साहित्य के दीर्घकालिक साधना के लिए मध्यप्रदेश शासन भोपाल की साहित्य अकादमी द्वारा आपको " बघेली का प्रादेशिक विश्वनाथ सिंह जू देव सम्मान "2017 से 51 हजार रुपए का प्रशस्ति पत्र के साथ अलंकृत किया गया है।आपकी रचनाधर्मिता पर डाॅ आशा पाण्डेय द्वारा प्रो रामलला शर्मा विभागाध्यक्ष हिन्दी के दिशा निर्देशन पर अवधेश प्रताप सिंह विश्व विद्यालय रीवा से लघु शोध प्रबन्ध लिखा गया है।इसी प्रकार देश की संस्था साहित्य संगम संस्थान इलाहाबाद द्वारा "मंचमणि डाॅ श्रीनिवास सरस का व्यक्तित्व एवं कृतित्व " नामक ग्रन्थ का लेखन प्रकाशन हुआ है।इन तमाम उपलब्धियों के साथ ही साथ डाॅ सरस की रचनाएँ बी ए फाइनल हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रम में स्वीकृत हैं।वर्तमान में डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस मध्यप्रदेश शासन की साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा संचालित पाठकमंच सीधी के जिला प्रतिनिधि तथा विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन की साहित्यिक संस्थान के सामान्य सदस्य तथा सोमालोब साहित्यिक मंच प्रान्तीय इकाई महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार झारखंड पंजाब छत्तीसगढ ,दिल्ली, राजस्थान के राष्ट्रीय संस्थापक अध्यक्ष हैं।कई बार आपने दूरदर्शन भोपाल से बघेली के प्रतिनिधि कवि के रूप में कविताएँ प्रसारित की हैं।अनगिनत बार आकाशवाणी रीवा से बघेली कविताओं को पढा है।इस तरह डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस बघेली के एक शीर्षस्थ कवि के रूप में चर्चित हैं। डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस को जाने माने पत्रकार साहित्यकार स्वर्गीय मायाराम सुरजन द्वारा संस्थापित मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन 1990में बघेली कृति हेतु "सैफू सम्मान "दिया गया था।श्रम जीवी पत्रकार संघ द्वारा "बीरबल सम्मान "1991,वाॅणवीर सम्मान 2011, महाकवि वाण सम्मान 2012 और शरद स्मृति सम्मान 2002 आदि से सरस की साहित्यिक साधना हेतु मिला है।सम्मान की एक लम्बी सूची है जो साहित्य लेखन का बयान -मुक्त कण्ठ से करती है। डाॅ श्रीनिवास ने अनेक रचनाकारों की पुसतकों को अपनी भूमिका समालोचना लिखकर महनीय बनाया है।अनेक पत्रिकाओं और साझा संकलन का सम्पादन कर साहित्य में अपना कद ऊॅचा किया है।प्रमुख रूप से आपने डाॅ मसूद अख्तर आई ए एस की पुस्तक "जमीन के कागज पर"की भूमिका लिखी है।इसी प्रकार राजेश यादव न्यायाधीश की पुस्तक "पानी की एक बूॅद",प्राचार्य हीरामणि तिवारी की काव्य कृति "शिवायण" शम्भू नाथ त्रिपाठी भ्रमर प्राचार्य की पुस्तक "कौन्तेय कर्ण",अंजनी सिंह सौरभ की बघेली रचना "ठठरा मा साॅसि",रामसखा नामदेव की कृति "सूख नदी के पानी काहे"जयसिह॔ गगन की कृति "नइकी दुलहिया" सहित और भी कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की सरस द्वारा भूमिका लिखी हुई है। डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस ने बघेली साहित्य पर दस्तावेजी सर्वाधिक कार्य किया है और सीधी की साहित्य धरा को सुप्रतिष्ठित किया है। इस समय आपकी साहित्यिक संस्था "सोंधी माटी लोनी बघेली " में बघेलखण्ड के समूचे बगेली के प्रतिनिधि रचनाकार जुड़े हुए हैं।आज इनकी संस्थापित यह बघेली समिति विन्ध्य से ऊपर उठकर 8 प्रदेशों में बघेली का परचम फैलाए हुए हैं।इस भाॅति 71 बर्षीय डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस बघेली के एक स्वनामधन्य साहित्यकार हैं।आपकी रचनाधर्मिता पर बघेलखण्ड के जनमानस को ही नही अपितु पूरे प्रदेश को गर्व है। ....... . ........................................ ✍️ उत्तम पाण्डेय 📱 आंचलिक पत्रकार .................................................. आज हमारे साथ है एक बेहद सरल सहज व जमीनी पत्रकार जिन्होंने अवसर आने पर भी अपने स्थान को छोड़ जिला मुक्यालय आना स्वीकार नहीं किया और आंचलिक पत्रकार के रूप में ही अपनी पहचान को मजबूत किया, आज हम बात कर रहे है जिले की राजनीति का गढ़ मानी जाने वाली चुरहट के आंचलिक पत्रकार उत्तम पाण्डेय की | जी हां चुरहट के प्रसिद्ध देवी मंदिर झदवा देवी के पास एक गुमठी में पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले उत्तम पाण्डेय का जन्म 1 जनवरी 1959 को हुआ इन्होने पत्रकारिता के क्षेत्र में सन 1984 में नवभारत से शुरुआत की, इन्होने अपने पत्रकारिता के दौर में कभी किसी दल के नहीं हुए हां लेकिन इनकी विचारधारा कम्युनिस्ट है । पत्रकारिता के शुरूआती दिनों में जिस गुमठी से इन्होने पत्रकारिता की शुरुआत की वंही ए लोगो की समस्याए सुनते थे और समाचारपत्र के माध्यम से शासन प्रशासन को अवगत करते थे,और कहते है की इसी गुमठी के आस पास पूर्व सांसद गोविंद मिश्रा सहित अन्य जनी पहचानी हस्तियां कभी बैठा करती थी और राजनीतिक चर्चाएं हुआ करती थी| इन्होने पत्रकारिता और अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया| अपनी पारिवारिक परिस्थितियों के कारण ये कई बार अवसर मिलने के बावजूद सीधी जिला मुख्यालय नहीं पहुंच पाये और चुरहट में ही अपने पत्रकारिता की पृष्ठभूमि तैयार कर आंचलिक पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाई । आज भी पत्रकारिता से उनका मोह भंग नही हुआ है ... किंतु आधुनिक पत्रकारिता से दूर है तभी तो पुत्र बलराम पदचिन्हों पर उतर चुके है किंतु आज के दौर में वे फिट नही हो सकते । . आज हमारे साथ है एक बेहद सरल जीवन व जमीनी पत्रकार जिन्होंने अवसर आने पर भी अपने स्थान को छोड़ जिला मुक्यालय आना स्वीकार नहीं किया और आंचलिक पत्रकार के रूप में ही अपनी पहचान को मजबूत किया| आज हम बात कर रहे है जिले की राजनीति का गढ़ मानी जाने वाली चुरहट के आंचलिक पत्रकार उत्तम पाण्डेय की | जी हां चुरहट के प्रसिद्ध देवी मंदिर झदवा देवी के पास एक गुमठी में पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले उत्तम पाण्डेय का जन्म 1 जनवरी 1959 को हुआ इन्होने पत्रकारिता के क्षेत्र में सन 1984 में नवभारत से शुरुआत की, इन्होने अपने पत्रकारिता के दौर में कभी किसी दल के नहीं हुए हां लेकिन इनकी विचारधारा कम्युनिस्ट है । पत्रकारिता के शुरूआती दिनों में जिस गुमठी से इन्होने पत्रकारिता की शुरुआत की वंही ए लोगो की समस्याए सुनते थे और समाचारपत्र के माध्यम से शासन प्रशासन को अवगत करते थे,और कहते है की इसी गुमठी के आस पास पूर्व सांसद गोविंद मिश्रा सहित अन्य जनी पहचानी हस्तियां कभी बैठा करती थी और राजनीतिक चर्चाएं हुआ करती थी| इन्होने पत्रकारिता और अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया| अपनी पारिवारिक परिस्थितियों के कारण ये कई बार अवसर मिलने के बावजूद सीधी जिला मुख्यालय नहीं पहुंच पाये और चुरहट में ही अपने पत्रकारिता की पृष्ठभूमि तैयार कर आंचलिक पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाई । आज भी पत्रकारिता से उनका मोह भंग नही हुआ है ... किंतु आधुनिक पत्रकारिता से दूर है तभी तो पुत्र बलराम पदचिन्हों पर उतर चुके है किंतु आज के दौर में वे फिट नही हो सकते ।