भोपाल (ईन्यूज एमपी)- बीते पांच साल साढ़े चार महीने से पदोन्नति की राह तक रहे मध्य प्रदेश के अधिकारियों-कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पदोन्नति का रास्ता खुलने की उम्मीद बंधी है। कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को तय किया है कि पांच अक्टूबर से नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाया जाएगा। इसे लेकर कर्मचारियों में खुशी है और भरोसा है कि इसी साल पदोन्नति के रास्ते खुल जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबी चलने से पदोन्नति को लेकर परेशान कर्मचारी मायूस थे। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को पदोन्नति में आरक्षण मामले का फैसला सुनाते हुए 'मध्य प्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002’ खारिज कर दिया था। इसके बाद से प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी है। इस अवधि में 40 हजार से ज्यादा कर्मचारी बगैर पदोन्नति सेवानिवृत्त हो गए। शुरू के दो साल तो कर्मचारियों पर भारी नहीं पड़े, क्योंकि सरकार ने सेवानिवृत्ति आयुसीमा दो साल बढ़ाकर 62 साल कर दी थी। इस कारण दो साल कोई भी कर्मचारी सेवानिवृत्त नहीं हुआ, पर मई 2018 से सेवानिवृत्ति का सिलसिला शुरू हुआ है और हर साल राजधानी से लेकर प्रदेशभर में छह से सात हजार कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसे देखते हुए दोनों पक्षों (सामान्य और आरक्षित वर्ग) के अधिकारी-कर्मचारी सरकार से पदोन्नति शुरू करने की गुहार लगा चुके हैं। यहां तक कि कर्मचारी सशर्त पदोन्नति लेने को भी तैयार हैं, क्योंकि सेवा के अंतिम पड़ाव पर आकर भी पदोन्नति न मिलने से वे दुखी हैं। कई विभागों में तो ऐसे हालात हैं कि सामान्य वर्ग का कर्मचारी जिस पद पर नियुक्त हुआ था, उसी पद पर रहते हुए सेवानिवृत्त हो गया या होने वाला है। कामकाज हो रहा प्रभावित : पदोन्नति न मिलने से सरकारी कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। दरअसल, वरिष्ठ पदों पर कार्यरत कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए हैं और उनसे कनिष्ठ कर्मचारियों को जिम्मेदारी तो सौंप दी है, पर पदनाम नहीं मिला है, इसलिए वे काम में मन नहीं लगा रहे हैं। जिसका असर कामकाज पर पड़ रहा है।