इंदौर(ईन्यूज एमपी)- हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने भारतीय स्टेट बैंक पर एक महिला को अनुकंपा नियुक्ति नहीं दिए जाने पर दो लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है। यह भी फैसला दिया है कि महिला या उसके द्वारा बताए जाने पर बेटे को नियुक्ति दी जाए। हाई कोर्ट ने कहा बच्चों को पालने के लिए महिला को झाड़ू, पोछा करना पड़ा, अस्थायी नौकरी के लिए मिन्नतें की, लेकिन बैंक का व्यवहार अमानवीय, अड़ियल बना रहा, इसलिए दो लाख रुपए की कॉस्ट बैंक पर लगाई जाती है। यह पैसा भी महिला को दिया जाए। महिला का पति लापता हो गया। सात साल तक नहीं लौटा तो उसे मृत मान लेना बहुत ही पीड़ादायक है। बैंक प्रबंधन की जिम्मेदारी थी कि महिला के घर आधा वेतन पहुंचाते, लेकिन छह हजार रुपए दो महीने तक दिए, फिर उसे भी घटाकर तीन हजार रुपए कर दिया। 22 साल लगातार नौकरी, एक दिन अचानक पति लापता अधिवक्ता आनंद अग्रवाल के मुताबिक अशोक धाईगुड़े की नौकरी स्टेट बैंक ऑफ इंदौर में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में लगी थी। बाद में इंदौर बैंक एसबीआई में मर्ज हो गई। 22 साल की नौकरी के बाद 19 दिसंबर 1998 को अशोक घर से एसबीआई की वायएन रोड शाखा में जाने के लिए निकले, लेकिन घर नहीं पहुंचे। पत्नी मीना ने गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई। महीनों तक अशोक का पता नहीं चला तो पुलिस ने भी मृत मान लिया और मीना को सूचित कर दिया। मीना ने सात साल पूरे होने पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए बैंक में आवेदन किया। बैंक ने उसकी अर्जी खारिज कर दी। यह कारण बताया कि बैंक ने अशोक को पहले ही वीआरएस दे दिया था। मीना के आवेदन करने के वक्त अनुकंपा नियुक्ति और पेेंशन के नियम भी बदल गए हैं। इसलिए अनुकंपा नियुक्त नहीं दी जा सकती। इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई।