नई दिल्ली : देश में असहिष्णुता पर चल रही भारी बहस के बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि विचारकों पर हमला या उनकी हत्या को किसी आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता और न ही असहमति के अधिकार के दमन की अनुमति दी जा सकती है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की 125 जयंती पर आयोजित एक सम्मेलन में मनमोहन सिंह ने कहा कि देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन करने वाली हालिया घटनाएं बहुत दुखद हैं और इससे पूरा देश चिंतित है। असहमति या बोलने की आज़ादी को दबाने से देश के आर्थिक विकास पर बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। आजादी के बगैर मुक्त बाजार का कोई मतलब नहीं है। डॉ. सिंह ने कहा कि कोई भी धर्म किसी भी सार्वजनिक नीति का आधार नहीं बन सकता। धर्म एक निजी मामला है जिसमें राज्य के साथ साथ किसी का भी दखल सही नहीं है। धर्मनिरपेक्षता तो आस्था का ही हिस्सा है, ये नागरिकों की मूलभूत आज़ादी की रक्षा करता है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि एकता और विविधता के लिए सम्मान, धर्मनिरपेक्षता और बहुलतावाद किसी भी लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण होता है। पूर्व प्रधानमंत्री के ये तीखे बयान उस वक्त आए हैं जब देश में 'बढ़ती असहिष्णुता' को लेकर बड़े पैमाने पर अलग अलग क्षेत्रों की हस्तियों द्वारा विरोध दर्ज किया जा रहा है। तर्कवादी कलबुर्गी की हत्या और गोमांस की अफवाह पर दादरी में हुई हत्या के बाद देश में धर्मनिरपेक्षता बनाए रखने में सरकार की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। इस मामले पर अपने विचार रखते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि कुछ हिंसक कट्टरपंथी समुदायों द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाम कसने की कोशिश ने हाल ही में कुछ दुखद घटनाओं को अंजाम दिया है। कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का उदाहरण देते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि नवीनीकरण, उद्यमिता और प्रतिस्पर्धा के लिए किसी भी समाज का उनमुक्त और उदार होना जरूरी है।