दिल्ली(ईन्यूज एमपी)-देश का दिल दहलाने वाले निर्भया रेप कांड के बाद केंद्र सरकार की ओर से निर्भया फंड शुरू किया गया था. इसका मकसद देश भर में बलात्कार पीड़िताओं का पुनर्वास और उन्हें आर्थिक मदद मुहैया कराना था. 2014 से शुरू हुए इस फंड की राशि कई साल से या तो इस्तेमाल नहीं हुई या फिर बेहद मामूली राशि बांटी गई. ऐसा नहीं है कि फंड बनने के बाद से देशभर में बलात्कार होने ही बंद हो गए. ऐसे घिनौने अपराध अब भी हो रहे हैं लेकिन सरकारों की संवेदनहीनता की वजह से इस फंड का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. अब इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार की बेरुखी भी सामने आई है. निर्भया फंड का सबसे ज्यादा हिस्सा मध्यप्रदेश को मिला है लेकिन रेप पीड़िताओं को सरकार महज साढ़े छह हजार रुपये देती है. सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे के जरिये शिवराज सरकार ने बताया कि पिछले साल राज्य भर में रेप के 1951 मामले दर्ज हुए. सभी पीड़िताओं के छह हजार से साढ़े छह हजार रुपये मुआवजा दे दिया गया. इस पर जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने नाराज होते हुए पूछा कि ये आप क्या कर रहे हैं? और आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? ये क्या दान की राशि है? दरअसल सुप्रीम कोर्ट में बलात्कार पीड़िताओं की डॉक्टरी जांच के तौर तरीकों पर उठाई गई आपत्तियों की याचिका पर सुनवाई चल रही थी. कोर्ट ने पूछा कि पिछली बार सभी राज्य सरकारों से जवाब मांगा गया था कि उन्होंने रेप पीड़िताओं के पुनर्वास और मदद के लिए क्या किया है? इस पर मध्यप्रदेश सरकार ने अपना हलफनामा दाखिल किया. इसे पढ़ते ही कोर्ट ने फौरन फटकार लगाई और मध्य प्रदेश सरकार को खरी-खरी सुनाई. नाराज कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को कहा कि क्या आप ये दान कर रहे हैं? रेप का मोल 6000 रुपये? आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? मध्य प्रदेश सरकार ने कोर्ट में कहा था कि उसने पिछले साल दर्ज रेप के 1951 मामलों में हर एक पीड़िता को 6000 से 6500 रुपये तक मुआवजा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्भया फंड में मध्य प्रदेश को सबसे ज्यादा फंड दिया जाता है उसके बावजूद राज्य सरकार 1951 रेप पीड़ित महिलाओं में केवल एक करोड़ रुपये मुआवज़ा ही दे सकी है.