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बफर जोन में कैटल के शिकार से उठे सवाल

भोपाल ई न्यूज़ एमपी:- कान्हा नेशनल पार्क के कोर एरिया से निकल कर बाघ और तेंदुए द्वारा किए जा रहे शिकार को लेकर आंतरिक वन्य प्राणी प्रबंधन पर सवाल उठने लगे है। एक्सपर्ट सवाल उठा रहे है कि आखिर कोर एरिया छोड़कर बाघ और तेंदुए बफरजोन में पहुंचकर पालतू जानवरों का शिकार क्यों कर रहे है? इसके साथ यह प्रश्न भी लाजिम हो गया है कि क्या बाघों और तेंदुए को जहरखुरानी का खतरा तो नहीं है? मवेशियों को बना रहे शिकार कोर एरिया में मौजूद हजारों हिरण और चीतलों को छोड़कर वे बफर जोन में घास चरने वाले पालतू मवेशियों को अपना शिकार बना रहे हैं। हतेभर के अंदर ही बाघ और तेंदुओं ने बफर जोन में 14 मवेशियों का शिकार किया है।
इनमें से अधिकतर शिकार रात में गांव में घुसकर किए गए। वन्य प्राणी एक्सपर्ट एवं रिटायर्ड अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक आरजी सोनी कहते है कि इससे तो यह आशंका बलवती हो गई है कि कान्हा के कोर एरिया में हिरन और चीतलों की संख्या तेजी से घट रही है। पर्याप्त भोजन के अभाव में ही बाघ और तेंदुए कोर एरिया से निकल कर भोजन की तलाश में बफर जोन में पहुंच रहे है। पेंच नेशनल पार्क के संचालक रह चुके सोनी बताते है कि तीन महीने कान्हा के संचालक संजय शुक्ला ने अपने फेसबुक पर बोमा पद्धति से 900 से अधिक चीतलों को बफर जोन में शिट करने की उपलब्धि को पोस्ट किया था, तभी हमने इस पर एतराज जताते हुए कमेंट्स किया था कि अब कोर एरिया से कम से कम दो बाघ निकलकर बफर जोन में आ जाएंगे।
उनका कहना है कि बाघ और तेंदुए का सबसे प्रिय शिकार चीतल और हिरन है।

कान्हा का ग्रास मैनेजमेंट भी गड़बड़
वन्य प्राणी प्रबंधन में एक्सपर्ट सोनी का कहना है कि कान्हा नेशनल पार्क के ग्रास लैंड मैनेजमेंट भी ठीक नहीं है। चीतलों और हिरन की पसंदीदा घास धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है। इसकी मुख्य वजह है कि पार्क प्रबंधन से लेकर मुख्यालय तक के आला ंअफसरों का मानना है कि घास जलाने से नई घास आती है।
उनकी इस सोच से उलट परिणाम आने लगे। जलाने से नई घास की कोपल जल जाती है और कड़े घास आने लगे। उन्होंने बताया कि ग्रास लैंड के मिस मैनेजमेंट का खेल कान्हा के पूर्व संचालक राजेश गोपाल से लेकर खगेश्वर नायक तक चलता रहा। जबकि 1989-88 और 2004 में एसएफआरआई के वैज्ञानिक एवं रिसर्च स्कॉलर डा.
आरसी पांडेय ने ग्रास लैंड पर दो रिपोर्ट वन विभाग को सौंपी है। इसमें इसी बात का उल्लेख किया गया है। एसएफआरआई की रिपोर्ट को वन्य प्राणी के अफसर झुठलाते आ रहे है। इस संबंध मैं पीसीसीएफ वन्य प्राणी जितेन्द्र अग्रवाल से मुलाकात कर उन्हें बता चुका हूं।

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