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आक्रोशित हुए प्रदेश के वनकर्मी, नहीं चलाएंगे बंदूक, माल खाने में हथियार जमा कर रहे रेंजर एवं वन रक्षक.....

भोपाल(ईन्यूज एमपी)- प्रदेश के रेंजर और वन रक्षक अब हथियार नहीं चलाएंगे। शासन ने इन्हें जो बंदूकें व रिवाल्वर दी हैं, उन्‍हें ये मंगलवार सुबह से शासकीय मालखानों में जमा करवा रहे हैं। अब तक हजारों की संख्या में रेंजर व वनरक्षक हथियार जमा कर चुके हैं। दरअसल, इन्हें वन विभाग ने हथियार तो दिए हैं, लेकिन चलाने की अनुमति नहीं दी है। जब ये जंगल में वन माफिया से लड़ते हैं और आत्मरक्षा में हथियार चलाते हैं तो इनके खिलाफ कार्रवाई हो जाती है।
हाल ही में विदिशा के लटेरी में वनकर्मियों ने लकड़ी चोरों को पकड़ने की कोशिश की थी। जवाब में लकड़ी माफिया संगठित हो गए और इन्होंने वनकर्मियों पर हमला कर दिया था। आत्मरक्षा में वनकर्मियों ने हवाई फायर किए थे, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। मामला तूल पकड़ने पर शासन ने वनकर्मियों पर हत्या का केस दर्ज कर लिया। वनकर्मियों के खिलाफ दंडात्‍मक कार्रवाई भी की गई। इस घटना के बाद से प्रदेशभर में वनकर्मी और अधिकारी नाराज हैं। इन्होंने विभिन्न संगठनों के बैनर तले शासन द्वारा दिए गए हथियार मालखाने में जमा कराने का निर्णय लिया था।

हथियार जमा करने से पहले वनकर्मी और अधिकारियों ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख को जानकारी दे दी थी। स्टेट फारेस्ट रेंज आफिसर्स एसोसिएशन मप्र के अध्यक्ष शिशुपाल अहिरवार व कार्यकारिणी की ओर से इस संदर्भ में 12 अगस्त को पत्र लिखा गया था। जिसमें वन बल प्रमुख को बताया था कि वन बल को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 45 के तहत आज तक सशस्त्र बल घोषित नहीं किया है और न ही बंदूक व अन्य हथियार चलाने के संबंध में दंड प्रक्रिया सहिता 1973 की धारा 197 के तहत कोई नियम तय किए हैं। इन सभी कारणों के चलते दी गई बंदूकें शोपीस बनी हुई हैं। जब कभी इनका उपयोग करते हैं तो उपयोग करने वालों को अपराधी बना दिया जाता है। एसोसिएशन ने वन बल प्रमुख से मांग की थी कि बंदूकों को जमा कराने संबंधी दिषा-निर्देश जारी किए जाएं। हालांकि वन बल प्रमुख ने कोई निर्देश जारी नहीं किए थे। तब भी सामूहिक निर्णय के तहत वन रक्षकों व रेंजरों ने हथियार जमा कराने शुरू कर दिया है।

मप्र वन एवं वन्यप्राणी संरक्षण कर्मचारी संघ के भोपाल जिला अध्यक्ष रामयश मौर्य का कहना है कि शासन हमसे अपेक्षा करता है कि जंगल व वन्यप्राणी सुरक्षित रहे। इसी काम में वनकर्मी और अधिकारी लगे हुए हैं लेकिन माफिया हथियारों से लैस होते हैं और वनकर्मी खाली होते हैं। जिनके पास हथियार होते हैं, वे इनका इस्‍तेमाल नहीं कर सकते। यदि आत्मरक्षा व जंगल की सुरक्षा के लिए हथियार का उपयोग कर लिया तो नौकरी से हाथ धोने के साथ-साथ अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जा रहा है। इससे अच्छा है कि हथियारों को मालखाने में जमा कर दें।

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