भोपाल (ईन्यूज एमपी)- मध्य प्रदेश में छह साल से अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के कारण सरकार ने पदोन्नति के पात्र अधिकारियों-कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देने का विकल्प अपनाया है। गृह और जेल विभाग में अधिकारियों-कर्मचारियों को उच्च पदों का प्रभार दिया जा चुका है। अब राजस्व विभाग ने भी इसके आदेश जारी कर दिए हैं। सामान्य प्रशासन विभाग ने अन्य विभागों को भी निर्देश दिए हैं कि वे भी इस तरह उच्च पदों का प्रभार दे सकते हैं। इससे सरकार के ऊपर कोई अतिरिक्त वित्तीय भार भी नहीं आएगा। पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 निरस्त होने के बाद से प्रदेश में पदोन्नतियां बंद हैं। मई 2016 के बाद उन्हीं अधिकारियों-कर्मचारियों को पदोन्नति दी गई है, जिन पदों के लिए विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की बैठक हाई कोर्ट के नियम को निरस्त करने के पहले हो गई थी। कुछ मामलों में न्यायालय के आदेश पर पदोन्नतियां दी गई हैं। पात्र होने के बाद भी पदोन्न्त हुए बिना लगातार होती जा रही सेवानिवृत्ति से नाराज कर्मचारियों को साधने के लिए सरकार ने उच्च पदों का प्रभार देने की व्यवस्था लागू की है। गृह विभाग ने इसकी शुरुआत की और फिर जेल विभाग ने भी इसे अपनाया। तहसीलदार और राजस्व निरीक्षक की सूची मांगी सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों को पदोन्नति के मामले का निराकरण होने तक उच्च पदों का प्रभार देने के निर्देश दिए थे। तहसीलदार को डिप्टी कलेक्टर और राजस्व निरीक्षक को नायब तहसीलदार पद का प्रभार मिलेगा। प्रमुख राजस्व आयुक्त और आयुक्त भू-अभिलेख से ऐसे तहसीलदार व राजस्व निरीक्षक की सूची मांगी है, जो इन पदों पर पांच वर्ष कार्य कर चुके हैं और 2017 से 2021 की गोपनीय चरित्रावली में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज नहीं है। ऐसे अधिकारियों को उच्च पद का प्रभार नहीं दिया जाएगा, जिनके विरुद्ध विभागीय जांच चल रही है या आपराधिक, न्यायालयीन या लोकायुक्त प्रकरण दर्ज है।