जबलपुर(ईन्यूज एमपी)- हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि लोक सेवकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने जनसेवक को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत दी गई सुरक्षा पर विचार किए बिना ही उन पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का आरोप तय कर दिया जो अपना कर्तव्य का निर्वहन कर रहे थे। न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी ने कहा कि अधीनस्थ अदालत का निर्णय विधि की दृष्टि में सही नहीं है। इस मत के साथ हाई कोर्ट ने 15 पुलिस कर्मियों के खिलाफ शहडोल की अदालत में चल रहीं ट्रायल व अन्य कार्रवाई निरस्त कर दी। शहडोल की एक कोर्ट ने 2012 में मृतक की मां की शिकायत पर फर्जी एनकाउंटर का मामला मानते हुए उक्त 15 पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या की धारा के तहत आरोप तय किया था। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ एसएचओ जेबीएस चंदेल, स्वतंत्र सिंह, अरविंद दुबे, महेश यादव समेत 15 पुलिस कर्मियों ने हाई कोर्ट में अपील पेश की थी। अपीलार्थियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने दलील दी के इस मामले में मजिस्ट्रेट जांच व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में भी पुलिस कर्मियों को निर्दोष बताया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए दलील दी कि ऐसे मामलों में जनसेवक पुलिस कर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले अभियोजन स्वीकृति आवश्यक है। ये है मामला : 29 नवंबर 2006 को राजकुमार उर्फ छोटा गुड्डा अपने मित्र भूपेन्द्र शर्मा के साथ शहडोल की मुडना नदी पार कर रहे थे, तभी पुलिस अधिकारी चंदेल के इशारे पर पुलिस कर्मियों ने उप पर फायर किया। राजकुमार घायल हो गया और बाद में उसकी मौत हो गई। मृतक की मां ने इसे फर्जी एनकाउंटर बताते हुए कोर्ट में प्रकरण प्रस्तुत किया। मजिस्ट्रेट जांच में यह बात सामने आई कि राजकुमार को हत्या के एक प्रकरण में सजा मिली थी। वह पैरोल पर था। घटना के समय वह फरार घोषित था। मुखबिर से पुलिस को उसके ठिकाने की सूचना मिली और वे घटनास्थल पर पहुंचे। पुलिस ने उससे सरेंडर करने कहा तो उसने जवाब में फायर किया। क्रास फायर में उसे गोली लगी। पुलिस को घटनास्थल से रिवाल्वर सहित बहुत सा असला भी मिला था। शहडोल की कोर्ट ने इस मामले में अभियोजन स्वीकृति के बिना ही सभी पुलिस कर्मियों पर हत्या के आरोप तय कर दिए थे, जिसे हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया।