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सीधी-चेहरे चर्चित चार, चिकित्सक , शिक्षक , साहित्यकार और कलाकार.........

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उन लोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
चिकित्सक , शिक्षक , साहित्यकार और कलाकार ।

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✍️ डॉक्टर आलोक दुबे📱
वरिष्ठ चिकित्सक

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आज हम जिले के एक ऐसे चर्चित चेहरे से रूबरू कराने जा रहे है जिसने बेहद कम समय में जिले में अपनी अमिट पहचान बना ली है और अपनी उपयोगिता साबित कर जिले के एक अतिचर्चित अतीत के चेहरे डाक्टर स्वर्गीय हीरालाल मिश्रा कि याद को ताजा कर दी है|

जी हां आज हम बात कर रहे है उस खास शख्स की जिसने जिले के आम लोगो के लिए मसीहा बनकर जिला चिकित्सालय की बंद पड़ी ओटी को पुनः जीवित कर दिया और जिले के गरीब असहाय से लेकर हर तबके के लिए एक आशा भरी उम्मीद जगा दी कि अब उन्हें आपरेशन के लिए दुसरे शहरो का रुख नहीं करना पड़ेगा, जी हां हम बात कर रहे है जिला चिकित्सालय के सर्जरी विशेषज्ञ डाक्टर अलोक दुबे कि जिन्होंने जिले की बदहाल सवास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने में महती भूमिका अदा कि है|

डॉ आलोक दुबे का जन्म 1984 में रीवा में हुआ था, इनके पिता सुरेंद्र दुबे ग्रामीण बैंक में कार्यरत रहे जिन्होंने रीवा एवं सीधी में 30 वर्षो तक सेवा दी, आलोक दुबे की प्राथमिक शिक्षा गृह ग्राम से ही संपन्न हुई एवं आठवीं की परीक्षा में संभागीय बोर्ड में ये प्रथम स्थान पर रहे इसके अतिरिक्त दसवीं की परीक्षा में ये प्रदेश में दसवें स्थान पर रहे, 12वीं के पश्चात IIT एवं मेडिकल दोनों में चयन होने पर इन्होने मेडिकल का चयन किया| संयुक्त परिवार में रहते हुए इन्होने पारिवारिक मूल्यों को समझा| इनकी अभिरुचि चिकित्सा के क्षेत्र में रही इन्हें पूर्व में NTSC स्कॉलरशिप भी प्राप्त हो चुकी है|

डाक्टर अलोक दुबे ने MBBS की पढ़ाई मेडिकल कॉलेज इंदौर से पूर्ण की एवं वर्ष 2009 से अपने गृह क्षेत्र हनुमना के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हटा से सेवा की शुरुआत कि, 1 वर्ष सेवा देने के उपरांत 2011 से 2013 तक इन्होंने जिला अस्पताल रीवा में अपनी सेवा दी एवं वर्ष 2013 से 2015 तक सीधी जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रामपुर नैकिन में ये पदस्थ रहे| 2015 में पीएससी में चयन होने के उपरांत इन्होंने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गोविंदगढ़ में अपनी सेवाएं दी एवं इसी दौरान वर्ष 2016 में उच्च अध्ययन हेतु ये पुनः शासकीय मेडिकल कॉलेज इंदौर चले गए जहां से इन्होने एमएस सर्जरी की डिग्री प्राप्त की और पुनः 2020 में ये सीधी आ गए ।

सीधी में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था और बंद पड़ी ओटी इन दोनों को दृष्टीगत रखते हुए जिले के तत्कालीन कलेक्टर रवीन्द्र चौधरी के कहने पर आपने सीधी जिला अस्पताल में सर्जरी विभाग ज्वाइन किया एवं जिला चिकित्सालय में सर्जरी विभाग को पुनर्जीवित करने में लग गए| जिला प्रशासन के सहयोग और साथी डाक्टारो की मदद से इन्होने अब तक जिला चिकित्सालय में छोटे से लेकर बड़े कई आपरेशन को पूर्ण किया है, आपके आने के बाद से अब तक जिला चिकित्सालय में लगभग 250 मेजर ऑपरेशन एवं 560 माइनर ऑपरेशन किये जा चुके है| लम्बे समय से परेशान कई लोगों को डाक्टर आलोक दुबे कि बदौलत निरोगी काया का उपहार मिला है।किसी को हाथ तो किसी को गैंग्रीन से छुटकारा मिला है।



जिले वाशियो का जिला चिकित्सालय के प्रति विश्वास बाढा है और छोटे से बड़े आप्रेशनो के लिए रीवा, जबलपुर नागपुर और कई अन्य जगहों की ओर कूच करने वालो को अब जिला चिकित्सालय में ही स्वास्थ्य लाभ देने का प्रयास किया जा रहा है| सीधी की जनता की सेवा में इन्होने खुद को तत्पर रखा सुविधाओं की कमी को पूर्ण करने के लिए ये हमेशा प्रयासरत और अग्रसर रहे एवं विभिन्न स्तर पर शासकीय अस्पतालों में संसाधन जुटाने में के लिए लगे रहे| जिला अस्पताल के कायाकल्प में इनका महत्वपूर्ण योगदान है एवं उनकी इच्छा है कि जनता का विश्वास ऐसे ही जिला अस्पताल पर कायम रहे, साथ ही प्रशासनिक सहयोग बना रहे तो सभी बडे आपरेशन की सुविधा आधुनिक उपकरणों से जिले वासियों को यही निशुल्क उपलब्ध रहे । डॉक्टर आलोक कम समय सीमा में जिस तरह से अपने नाम का झण्डा बुलंद किया है वाकई काविले तारीफ है निश्चित ही आने वाले समय में वह एक दिन डी .के . की भूमिका अदा करेंगें ।



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✍️ जानकी प्रसाद तिवारी📱
सेवानिवृत्त शिक्षक

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आज हम बात करेंगे, उस ज्ञान -विटप की ; जो कैमोर पर्वत की तलहटी में अंकुरित होकर अयोध्या-काशी में पुष्पित-पल्लवित हुए और सिद्धभूमि -सीधी के उत्कृष्ट विद्या मंदिर में फलित हुआ।
वशिष्ठ कुल के तेज , देववाणी संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् , पूज्य-प्रवर श्री जानकी दास तिवारी ; जिन्हें हम सब 'शास्त्री जी' के नाम से जानते हैं , का जन्म 29 अप्रैल 1956 ई. में हुआ था। आपकी मातृभूमि मझिगवाॅं (बघवार) ही रही है , जो कि जिला मुख्यालय सीधी से 52 कि.मी. पश्चिम में विद्यमान है।
शास्त्री जी ने अपनी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा गुरुकुल पद्धति से सरयू-तीर अयोध्या में पूरी की। तत्पश्चात् आगे की पढ़ाई सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय काशी में पूरी की। आप अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण तब के 'गिरिधर मिश्र' (रामप्रसाद त्रिपाठी के शिष्य) के साथ , जूनियर होते हुए भी शास्रार्थ प्रतिस्पर्धा में प्रतिद्वंद्वी के रूप में शास्त्रार्थ किये थे। वही गिरिधर मिश्र जो आज पद्मविभूषण जगद्गुरु स्वामि रामभद्राचार्य के नाम से सुख्यात है। इन विद्वान-द्वय के बीच यह शास्त्रार्थ प्रयाग-सम्मेलन में हुआ था। और जब संयोग से रामभद्राचार्य जी सीधी में आये , तब माधव सदन के शाखा मैदान में प्रभाती - कोमल धूप में टहलते हुए अपने इतने पुराने शास्त्रार्थ प्रतिस्पर्धी मित्र को पहचान कर अतीव गदगद हो बाहों में भरकर गले से लगा लिया। भूले नहीं। और तुरन्त सवेग अपनी मुॅंहबोली बहन डाॅ. गीता शर्मा (बुआ जी) से बोले -"भो भगिनि! इयं मम विद्यार्थिजीवनस्य प्रतिद्वन्द्वी ,मम मित्र: ।"
शास्त्री जी छिन्दवाड़ा आदि जिलों में अध्यापकीय दायित्व निभाते हुए अंततः अपने गृह जिला सीधी आये। और इसके बाद जिले की गौरव , सीधी की BHU - शा. उत्कृष्ट विद्यालय क्र. 1 , में सेवानिवृत्ति हो जाने तक सम्पूर्ण प्राण-पण से गुरु-धर्म का निर्वहन किया और शिष्यों को आशीष-दीप से ज्योतित किया ।
अतीव सुन्दर , गौरवर्ण के , मध्यम कद के , पूर्णतः स्वस्थ-सौष्ठव -सुगठित तन । मन -जितेन्द्रिय । आंखों में दिव्य चमक , दमकता मुखमण्डल , रोम रोम में स्फूर्ति भरी । ललाट पर सुन्दर ऊर्ध्व त्रिपुण्ड वैष्णव तिलक , कर्मयोगी शास्त्री जी, उत्कृष्ट विद्यालय के आचार्य -कक्ष में ठीक वैसे ही सुशोभित थे , जैसे हमारे देश में लालबहादुर शास्त्री ...।
बड़े सिद्धान्तवादी , कर्मकाण्ड के ज्ञानी , त्रिकाल संध्या कर्ता , नित्य प्रति योग -प्राणायाम , ऊर्जस्वित वपु, खान-पान में संयमी , विशुद्ध वैष्णव। पारम्परिक परिधान धवल - धोती- कुर्ता धारण किए शास्त्री जी किसी प्राचीन गुरुकुल के ऋषि या आचार्य वत् लगते हैं। एक बार वे एक शिष्य की अप्रत्यक्ष धृष्टता के प्रत्युत्तर में कहा कि यदि मुझे सरकार / विद्यालय का नियम धोती-कुर्ता की बजाय पाश्चात्य पोशाक टाई इत्यादि अनिवार्य कर दे , तो मैं त्याग-पत्र दे दूंगा। ऐसे सिद्धांतवादी हैं और इतना बड़ा लगाव है अपनी पुरानी शास्वत सनातन भारतीय संस्कृति से।
अपने अध्यापकीय दौर में शास्त्री जी प्राचार्य से ज्यादा आदर पाते थे । सीनियर लेक्चरर शिक्षिकाएं उन्हें पितृवत् -गुरुवत् मानतीं थीं। और वे उन्हें अपनी बिटिया ही मानते थे। उद्यण्ड छात्र भी आपका बहुत सम्मान करते थे। शास्त्री जी का स्वभाव नारियल की तरह , भीतर से एकदम सरस ।आपका पढ़ाया , संस्कृत में आपके हाथों 65 अंक पाने वाला विद्यार्थी , बोर्ड परीक्षा में 95+ आराम से प्राप्त करता था।
शास्त्री जी को अपने विषय की भरपूर विशेषज्ञता है ‌। उनमें विद्यार्थी को अपने ओजस्वी वाणी से उसकी जिज्ञासानुरूप उसे संतुष्ट और पूर्णतः बोध करा देने की अद्भुत दैवीय शक्ति है। यहां तक कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के व्याकरण विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो. भगवत शरण शुक्ल आज भी शास्त्री जी को अपना बड़ा भाई मानते हैं और कहते हैं कि व्याकरण में आपकी सुलझाई गुत्थियां आज भी मेरे काम आती हैं।
शास्त्री जी की सेवा- निवृत्ति 31 दिसंबर 2017 ई. में हुई थी , उस विदाई समारोह में विवेकानंद सभागार में मुख्य-आतिथ्य की आसंदी में आसीन पं. केदार शुक्ल ने अश्रुपूरित नयनों से कहा था -" हमनें आज तक किसी व्यक्ति का ऐसा विदाई समारोह नहीं देखा।" यद्यपि शास्त्री जी उन्हें अपना बड़ा भाई मानते हैं, फिर भी शुक्ल जी ने उन्हें उस दिन अपने उद्बोधन में एक ज्ञान -ऋषि , एक अध्यात्म-संत के रूप में प्रतिष्ठित किया था।
ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व हैं , हमारे जानकी दास तिवारी जी । अंत में वशिष्ठ कुल के तेज एवं सरस्वती के वरद-पुत्र के चरण -रेणुओं में बारम्बार प्रणाम करते हुए हम आपके दीर्घजीवी एवं सतत् आरोग्य रहने की कामना करते हैं।


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✍️ शिवशंकर मिश्र " सरस "📱
शिक्षक / साहित्यकार

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चर्चित चेहरे चार में आज हम सीधी जिले के एक ऐसे साहित्यकार की चर्चा करेंगे जो सरल है और सरस भी जो साहित्यकार भी है और एक अच्छे शिक्षक भी हैं सीधी जिले में होने वाले किसी भी साहित्यिक परिचर्चा व सम्मेलन इनके बिना पूर्ण नहीं माना जा सकता जी हां ऐसे प्रतिभा के धनी हैं आज के हमारे साहित्यकार डॉक्टर शिव शंकर मिश्र सरस जी सरस जी का जन्म 10 दिसंबर 1961 को सीधी जिले के ग्राम मडरिया में हुआ इनकी शिक्षा दीक्षा सीधी से ही संपन्न हुई इन्होंने एमए व हिंदी से पीएचडी की है। आप एक अच्छे शिक्षक भी है,आपने 11नवम्बर 1986 को सहायक शिक्षक के रूप मे शासकीय सेवा शुरु की और वर्तमान में शासकीय माध्यमिक विद्यालय सीधी खुर्द नवीन मे सहायक शिक्षक है ।

विद्यार्थी जीवन से साहित्य की ओर आपका रुझान रहा है और कक्षा 6 में अध्ययन के दौरान ही इन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था दसवीं में अध्ययन के दौरान ही इन्होंने आकाशवाणी रीवा में काव्य पाठ किया था। सरस जी का जीवन साहित्य से ही जुड़ा रहा यद्यपि उन्होंने आरंभ के कुछ दिन बतौर पत्रकार बिताए और सीधी से निकलने वाले पहले दैनिक अखबार दैनिक विंध्य वाणी का 1 वर्ष तक संपादन किया, इसके अतिरिक्त साप्ताहिक विंध्य जासूस जो सीधी से निकलता था उसमें आप साहित्य संपादक रहे।

बघेली को लेकर सरस जी पूरे देश भर के अहिंदी भाषी क्षेत्रों में गए। जार्ज ग्रियर्सन के बाद जो दूसरा सबसे बड़ा भारतीय भाषाओं का लोक सर्वेक्षण हुआ और किताबें आईं उसमें बघेली लोक भाषा पर आपके काम और शोध प्रकाशित हुए |आपने लोक सम्पदा पर काम किया जिसमें लोकगीत, लोकगाथा एवं अधिकाधिक लोक सम्पदा को सहेजने का काम आपके द्वारा किया गया। आपने अनेक लोक नर्तक दल बनाए जैस अहिराई,कोलदहका,शैला,बरिहाई,बसदेवा, आदि इन सबको प्रदेश और देश मे लेकर गए ।जिससे बघेलखण्ड की लोक संस्कृति पूरे देश में पहुंची।बघेली साहित्य एवं संस्कृति पर काम करनेवाली लगभग पैतीस साल पुरानी संस्था " बघेली लोक कला समिति "के आप अध्यक्ष है।
संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित बघेली कवियों की पहली बृहद और महत्वपूर्ण किताब " सोन और रेवा के स्वर " मे आप सम्पादक सदस्य है।रंगकर्म की ख्याति प्राप्त संस्था इन्द्रवती नाट्य समिति का संरक्षक सदस्य एवं निकलने वाली पत्रिका " महाउर " के आप सम्पादक सदस्य भी है।

आकाशवाणी रीवा, भोपाल, शहडोल, सरगुजा एवं छतरपुर आदि से आपकी कविताओं का प्रसारण किया जाता है साथ ही दूरदर्शन भोपाल के माध्यम से भी आपकी कविताओ व रचनाओ का प्रसारण हो चुका है| आपने विश्वरंग, विश्व लोकभाषा सम्मेलन एवं भारतीय लोकभाषाओं के काव्यपाठ आदि में भारतभवन सहित अनेक महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित संस्थानों मे सहभागिता की है और काव्यपाठ किये है| महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं मे आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है|

सरस जी को प्राप्त होने वाले सम्मानों में लोक भाषा का सम्मान- बैजू सम्मान, बांधव सम्मान, पालिका सम्मान जिला सीधी, दुष्यंत कुमार अलंकरण भोपाल, विंध्य शिखर सम्मान शामिल है ।| इसके अतिरिक्त इनकी उपलब्धियों पर गौर करे तो विगत 15 वर्षों से रीवा विश्वविद्यालय में b.a. भाग-3 में पाठ्यक्रम में इनकी रचनाए है,कक्षा 6 की सहायक वाचन में ये लोक कवि के रूप में स्थापित है, और भोज के पाठ्यक्रम में बी ए भाग 3 में भी इन्होने अपनी जगह बना रखी है ।उक्त सभी बातो और उपलब्धियों ने सरस जी को सीधी जिले के चर्चित चेहरों में लाकर आज खड़ा कर दिया है । आप एक अच्छे साहित्यकार सरल सहज व मिलनसार व्यक्तित्व के धनी हैं ।


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✍️ प्रकाश तिवारी " मधुर "📱
कलाकार

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आज हम जिले के ऐसे चर्चित चेहरे का जिक्र करने जा रहे हैं जिसने अपने मधुर प्रकाश से जिले को प्रकाशित कर दिया है उनके कंठ मैं बैठी सरस्वती की बदौलत जिले से लेकर माया नगरी तक का सफर उन्होंने तय किया और आज जिले का गौरव बंद कर माया नगरी में सीधी जिले का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। शायद अब इनके बारे में आप सब समझ गए होंगे जी हां हम बात कर रहे हैं सीधी जिले की शान और मधुर आवाज के मालिक प्रकाश तिवारी मधुर की.....


प्रकाश तिवारी का जन्म सीधी जिले के खजुरी ग्राम में 15 दिसंबर 1983 को हुआ इन्होंने अपनी शिक्षा दीक्षा सीधी में ही पूर्ण की एवं बीए एलएलबी की डिग्री हासिल की। प्रकाश एक कलाकार घराने से ताल्लुक रखते थे और बचपन से ही विभिन्न वाद्य यंत्रों को बजाने और गाने का हुनर इनमें पैदा हो गया जिसे बाद में उन्होंने अपना कैरियर ही बना डाला जिले के एक छोटे से ग्राम से निकलकर प्रकाश ने कामयाबी की बुलंदियों को छुआ और जिले का नाम रोशन किया।

आप ने संगीत की शिक्षा प्रयाग संगीत महाविद्यालय एवं सुगम संगीत मुंबई से की जिले से लेकर देश के कई बड़े शहरों में आपने स्टेज चौकी दो हजार से ज्यादा प्रस्तुतियां दी आप की उपलब्धियों में बात करें तो 200 से ज्यादा गाने रिकॉर्ड किए जा चुके हैं जो देश की जानी मानी सबसे बड़ी कंपनी टी सीरीज व अन्य के साथ शामिल है।

प्रकाश तिवारी द्वारा मधुर म्यूजिकल ग्रुप की स्थापना कर उसी के बैनर तले अपने कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं जिले में भी समय-समय पर इनकी प्रस्तुतियां देखने को मिलती रहती है। प्रकाश तिवारी एक ऐसा नाम है जिसने कई कलाकारों को जोड़कर उन्हें उचित मंच दिया और उनकी प्रतिभा को भी दिखा रहा है आज के समय में जिले से लेकर प्रदेश और देश तक उनका नाम प्रसिद्ध है और किसी परिचय का मोहताज नहीं है।

प्रकाश तिवारी को इनकी प्रतिभा के लिए कई सारे पुरस्कार भी मिल चुके हैं जिनमें इंपीरियल अवार्ड बेस्ट सिंगर का, दार्शनिक मुंबई प्रेस मीडिया अवॉर्ड में इन्हें बेस्ट सिंगर और एक्टर का अवार्ड साथ ही दादासाहेब फालके आईकॉन अवार्ड में इन्हें सिंगर और परफॉर्मर का अवार्ड मिला है। साथ ही डीपीआई एएफ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी प्रकाश तिवारी ने अपनी उपस्थिति दर्ज की है।

संक्षिप्त मैं अगर कहे तो सीधी के प्रकाश ने माया नगरी को भी प्रकाशित किया है और निरंतर अपनी कला के साथ इसी पथ पर अग्रसर है। प्रकाश जब सीधी की धरा में कला के क्षेत्र में श्री गणेश किया तब एक दशक पहले " हम तो सीधी वाले हैं सुनो भाई हम तो सीधी वाले हैं " यह गाना उस समय वहुत हिट हुआ था जो सबका पसंदीदा है । और तो और प्रकाश ने आज सीधी की कुछ नामी गिरामी हस्तियों को भी अपना मुरीद वना लिया है ।

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