भोपाल (ईन्यूज एमपी)- सौ करोड़ की लागत से हबीबगंज स्टेशन को विश्वस्तरीय बना दिया गया लेकिन दशकों बाद आज भी स्टेशन के नाम को लेकर इतिहास से जुड़ा कुछ भी नहीं है। यहां तक कि स्टेशन का नाम हबीबगंज क्यों रखा गया, इस पर कोई स्पष्ट राय नहीं है। लिहाजा लंबे समय से स्टेशन का नाम बदलने की मांग शहरवासियों द्वारा उठाई जाती रही है। संभव है नए स्वरूप में इसे पुरानी पहचान मिल जाए। मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक हबीबगंज का नाम भोपाल रियासत की रानी कमलपति के नाम हो सकता है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को शुक्रवार को प्रस्ताव भेज भी दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 नवंबर को जम्बूरी मैदान पर आयोजित जनजातीय महासम्मेलन या रेलवे स्टेशन लोकार्पण के दौरान नए नाम की घोषणा कर सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक लोकार्पण के साथ ही स्टेशन को नया नाम देने की कवायद लंबे समय से चल रही है। सबसे पहले भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नाम पर स्टेशन का नाम रखने का प्रस्ताव आया था। जिस पर सभी की सहमति थी। इसके बाद चूंकि 15 नवंबर देशभर में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है इसलिए भोपाल रियासत की रानी कमलापति के नाम पर भी विचार किया गया। जिस पर बाद में लगभग सभी की सहमति बन चुकी है। इसके बाद ही राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा है। प्रस्ताव में उल्लेख किया गया है कि 16वीं सदी में भोपाल गौंड शासकों के अधीन था। गौंड राजा सूरज सिंह शाह के पुत्र निजाम शाह का विवाह रानी कमलापति से हुआ था। रानी ने अपने पूरे शसन काल में बहादुरी के साथ आक्रमणकारियों का सामना किया था। गौंड रानी की स्मृतियों को अक्षुण्ण बनाए रखने और उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति स्वरूप 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के उपलक्ष्य में राज्य शासन ने हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन रखने का निर्णय लिया है। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद चकला गिन्नौर के गौंड_राजा निजाम शाह की रानी कमलापति थीं। निजाम की हत्या के बाद वह अपने बेटे नवलशाह के साथ भोपाल आ गईं। बताया जाता है कि दोस्त मोहम्मद खान रानी को हासिल करना चाहता था। लालघाटी पर रानी कमलापति के बेटे नवल शाह और खान का युद्ध हुआ। इसमें 16 वर्षीय नवल शाह शहीद हो गया। नवल शाह की मृत्यु की सूचना देने के लिए मनुआभान टेकरी से काला धुआं किया गया। इसके बाद कमलापति ने अपने महल से छोटे तालाब में #जलसमाधि ले ली, ताकि उन्हें कोई छू न पाए। 300 साल पहले बने सात मंजिला कमलापति महल का कुछ हिस्सा पानी में डूबा हुआ है। 1989 से यह महल भारतीय पुरातत्व संरक्षण के अधीन है।