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कायम रहा कर्नाटक का 3 दशक पुराना इतिहास, नहीं हुई सिद्धारमैया की वापसी

बेंगलुरु (ईन्यूज एमपी)-कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राज्‍य का इतिहास नहीं बदला. सिद्धारमैया सत्‍ता में दोबारा वापसी कर 33 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ सकते थे, लेकिन शुरुआती रुझानों में कांग्रेस काफी पीछे चल रही है और सरकार बनाने में विफल साबित हो सकती है. ऐसे में सिद्धारमैया का सीएम पद से हटना तय माना जा रहा है.

आपको बता दें कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया के नेतृत्व में कांग्रेस जादुई आंकड़ा छूने में कामयाब रहती, तो राज्‍य का चुनावी इतिहास भी नए सिरे से लिखा जाता. राज्य की राजनीति में पिछले 33 सालों में सत्ताधारी पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर सकी है. इतना ही नहीं, 2013 को छोड़कर केंद्र में सत्तारूढ़ दल कभी भी राज्य में बहुमत हासिल नहीं कर सकी. ऐसे में सिद्धारमैया जीत के साथ सत्ता में वापसी करने में सफल होते हैं तो फिर पिछले तीन दशक पुराना रिकॉर्ड टूटेगा और वे एक नया इतिहास लिखेंगे.हालांकि शुरुआती रुझानों में ऐसा होता मुश्‍क‍िल ही द‍िखाई दे रहा है.

बता दें कि 1972 से पहले इसे मैसूर राज्य के नाम से जाना जाता था, लेकिन पुर्ननामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया. कर्नाटक के चार दशक के सियासी इतिहास पर नजर डाली जाए तो 1983 और 1985 में लगातार दो बार जनता पार्टी की सरकार बनी थी. इसके बाद से जब भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, सत्ताधारी पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी नहीं कर सकी.

मैसूर से कर्नाटक नाम पड़ने के बाद 1972 में पांचवां विधानसभा चुनाव और 1978 में हुए छठे चुनाव में कांग्रेस जीत दर्ज कर सत्ता पर अासीन हुई. आपातकाल के बाद1983 में हुए राज्य के सातवें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता से विदाई हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी. जनता पार्टी ने 95 सीटें जीतीं और रामकृष्ण हेगड़े ने अन्य छोटे दलों के साथ मिल कर राज्य में पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनाई.

हालांकि, ये सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी. इसके बाद 1985 के चुनाव में जनता पार्टी ने 139 सीटों के साथ शानदार सफलता हासिल की. ये वही दौर था, जब केंद्र की सत्ता पर इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. इसके बावजूद कर्नाटक में उनका जादू नहीं चल सका और राज्य की सत्ता में नहीं आ सकी.

1989 में कर्नाटक के सातवें विधानसभा चुनाव हुए, जनता पार्टी की विदाई हुई और कांग्रेस ने जबर्दस्त जीत के साथ सत्ता में वापसी की. और राज्य के इतिहास में अब तक की सबसे ज्यादा 178 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया, जिसे कोई दल अभी तक तोड़ नहीं सका. इसके बाद 1994 में विधानसभा चुनाव हुए में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल ने 115 सीटें जीतकर सरकार बनाई. जबकि केंद्र की सत्ता में पीवी नरसिम्हाराव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी.

पांच साल के बाद 1999 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों जनता दल को करारी हार का समाना करना पड़ा. कांग्रेस ने 132 सीटें जीतकर राज्य की सत्ता में वापसी की. ये वही समय था, जब केंद्र की सत्ता में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन एनडीए की सरकार थी.

2006 में हुए विधानसभा में कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा. बीजेपी 79 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस को 65 सीटें मिलीं. कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाई जो राज्य की पहली गठबंधन की सरकार बनी. वहीं केंद्र की सत्ता में कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी. इसके बाद जेडीएस ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई और कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने.

2008 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव हुए जेडीएस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा. बीजेपी 110 सीटों के साथ सत्ता पर विराजमान हुई और सीएम की कमान बीएस येदियुरप्पा को मिली. दक्षिण भारत में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी थी. 2008 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी. इसके बावजूद कांग्रेस महज 80 सीटों पर सिमट गई.

पांच साल के बाद 2013 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा, जबकि कांग्रेस 122 सीटों के साथ बहुमत दर्ज करके सत्ता पर विराजमान हुई. 1999 के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक की सत्ता में वापसी की थी. पिछले तीन दशकों में पहली बार रहा कि केंद्र की सत्ता में रहने वाली पार्टी की राज्य में सरकार बनी. वहीं अब शुरुआती रुझानों में इतिहास खुद को दोहराता द‍िखाई दे रहा है.

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