रायपुर(ईन्यूज एमपी)- 34 साल का प्रवीण (बदला हुआ नाम) सीने में दर्द, भारीपन, सांस लेने में परेशानियों से जूझ रहा था। गुजरात, कच्छ में मजदूरी करते-करते उसकी परेशानी बढ़ने लगी। स्थानीय डॉक्टर ने सीटी स्कैन में ट्यूमर तो पाया, लेकिन सर्जरी करने से हाथ खड़े कर दिए। बड़े अस्पतालों का खर्च 3 लाख रुपए से ऊपर था। यही वजह थी कि प्रवीण ने निर्णय लिया कि अब उसके साथ जो भी हो, अपने प्रदेश छत्तीसगढ़ में हो, परिवारजन के बीच हो। उसने 3 दिन पहले एडवांस कॉर्डियक इंस्टिट्यूट (एसीआई) में कॉर्डियोथोरोसिक एंड वेस्क्यूलर विभागाध्यक्ष डॉ. केके साहू को ओपीडी में दिखाया। डॉ. साहू सीटी स्कैन देखते ही समझ गए कि दिल और फेफड़ों तक ट्यूमर फेल चुका है। सर्जरी करनी ही होगी, लेकिन चुनौती थी कि हार्ट लंग्स मशीन नहीं है, अन्य जरूरी उपकरण भी नहीं, लेकिन आर्थिक रूप से असक्षम मरीज की जान बचाने के लिए तय किया की सर्जरी करेंगे, सीमित संसाधनों में और दूसरी पद्धति स,े ताकि हार्ट लंग्स मशीन की आवश्यकता न पड़े। बुधवार को प्रवीण को एसीआई की ओपीडी में ही ले जाया गया, 3 घंटे तक मैराथन सर्जरी चली। दिल और फेफड़े पूरी तरह से सुरक्षित हैं, प्रवीण के दिल की धड़कन सामान्य है और उसे सांस लेने में तकलीफ भी नहीं हो रही है। डॉक्टर्स के मुताबिक भविष्य में उसे फेफड़ों से संबंधित कोई समस्या नहीं होगी। बताना जरूरी है कि गुजरात के डॉक्टर्स ने खर्च 3 लाख रुपए बताया था, एसीआई में 20 हजार में सर्जरी कर दी गई। क्या है थोरोकोटॉमी थोरोकोटॉमी, सर्जरी की एक पद्धति है, जिसके जरिए दिल और फेफड़े के पास के ट्यूमर को इन दोनों अति महत्वपूर्ण अंगों को क्षति पहुंचाए बगैर निकाला जाता है। कॉर्डियक थोरोसिक सर्जन छाती के बीच में चीरा लगाकर सर्जरी कर ट्यूमर हटा सकते हैं, लेकिन डॉ. साहू ने छाती में राइट साइट चीरा लगाकर सर्जरी की। नहीं है हार्ट लंग मशीन 1 नवंबर को एसीआई की स्थापना हुई, दिसंबर 2017 में 10 करोड़ रुपए मशीनों और उपकरणों के लिए राज्य सरकार ने मंजूर किए, जिससे हार्ट लंग जैसी अति-महत्वपूर्ण मशीन खरीदी जा रही है जिसकी लागत 1.50 करोड़ रुपए हैं। खरीदी प्रक्रिया में कम से कम 8 महीने लगेंगे। इन्होंने की जटिल सर्जरी-कॉर्डियोथोरोसिक एंड वेस्क्यूलर विभागाध्यक्ष डॉ. केके साहू, एनेस्थिसिया विभागाध्यक्ष डॉ. प्रतिमा जैन शाह, डॉ. ओपी सुंदरानी, पीजी डॉ. बादल और स्टाफ नर्स, तकनीशियन शामिल थे। हम कामयाब रहे - इस सर्जरी में सबसे बड़ी चुनौती थी की प्रवीण के फेफड़े को पूरी तरह से सुरक्षित रखना, जिसमें कामयाब हुए। वह तेजी से रिवकर कर रहा है। हमारी कोशिश है की फिलहाल सीमित संसाधनों में बेहतर रिजल्ट देना। - डॉ. केके साहू, विभागाध्यक्ष, कॉर्डियोथोरोसिक एंड वेस्क्यूलर सर्जरी विभाग, एसीआई