enewsmp.com
Home देश-दुनिया जमीन का बंटवारा करने के लिए रिश्‍वत मागने वाले तहसीलदार को चार साल की सजा

जमीन का बंटवारा करने के लिए रिश्‍वत मागने वाले तहसीलदार को चार साल की सजा

रायपुर(ईन्यूज एमपी)- जमीन का आपसी बंटवारा एवं कब्जे के अनुसार विभाजन कर अलग-अलग ऋ ण पुस्तिका बनाने के लिए 10 हजार रुपए रिश्वत मांगने वाले कुरुद तहसीलदार को भ्रष्टाचार निवारण अनियम के विशेष न्यायाधीश जितेन्द्र कुमार जैन ने चार साल कारावास और दो लाख रुपए जुर्माना की सजा सुनाई है।

विशेष लोक अभियोजक योगेन्द्र ताम्रकार एवं मिथलेश वर्मा के अनुसार प्रार्थी बसंत साहू की पैतृक भूमि ग्राम चटौद तहसील कुरुद में है। उक्त भूमि स्वयं बसंत साहू, बड़े भाई पोषणलाल साहू, बंशीलाल, मां लैनी बाई के नाम पर दर्ज है। चारों भागीदारों के बीच जमीन का बंटवारा आपसी सहमति से हो चुका है। सभी अपने-अपने हिस्से में काबिज हैं।

अलग-अलग ऋ ण पुस्तिका बनवाने एवं राजस्व अभिलेख में नाम दर्ज करवाने के लिए तहसीलदार कुरुद के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया। तहसीलदार डॉ. रामविजय शर्मा (51) ने 10 हजार रुपए रिश्वत मांगी। प्रार्थी रिश्वत नहीं देना चाहता था इसलिए उसने 19 सितंबर 2011 को एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत की। इसके बाद रिश्वत की बातचीत रिकॉर्ड की गई, जिसमें 8 हजार रुपए में सौदा तय हुआ। एंटी करप्शन ब्यूरो ने योजना बनाकर 23 सितंबर 2011 को रसायन लगा नोट देकर प्रार्थी बसंत साहू को तहसीलदार डॉ. रामविजय शर्मा के पास भेजा। रिश्वत की रकम देने के बाद प्रार्थी का इशारा पाते ही एंटी करप्शन ब्यूरो टीम ने तहसीलदार को नोट के साथ गिरफ्तार कर लिया।

तहसीलदार का पद जिम्मेदारी का, इसलिए नरमी बरतना उचित नहीं

न्यायाधीश जितेन्द्र कुमार जैन ने अपने आदेश में कहा कि तहसीलदार का पद एक महत्वपूर्ण एवं जिम्मेदारी का पद है। न्यायालयीन कार्य में रिश्वत प्राप्त करना राजस्व न्यायालय की गरिमा को गिराना है, आरोपी का ऐसा कृत्य समाज के विरुद्ध होने वाला अपरा है। आरोपी के साथ नरमी बरतना उचित नहीं है। अदालत ने भ्रष्टाचार निवारण अनियम की धारा 7 के तहत चार साल सश्रम कारावास एवं दो लाख रुपए जुर्माना तथा धारा 13 (1) (डी) सहपठित धारा 13 (2) में चार साल कारावास व दो लाख रुपए जुर्माना से दंडित किया। जुर्माना न देने पर एक-एक साल अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।

प्रार्थी के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश

प्रार्थी बसंत कुमार साहू, जो स्वयं अधिवक्ता है, ने गवाही के दौरान आरोपी को बचाने के लिए झूठा साक्ष्य दिया। अदालत ने प्रार्थी के खिलाफ धारा 344 के तहत झूठा साक्ष्य देने के लिए मामला पंजीबद्ध करने का आदेश दिया।

Share:

Leave a Comment