भीमा-कोरेगांव लड़ाई की सालगिरह पर भड़की चिंगारी पूरे महाराष्ट्र में फैल रही है. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई थी, जिसके बाद पूरे राज्य में धीरे-धीरे हिंसा पुणे के बाद मुंबई तक फैली. राज्य सरकार ने मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं. हिंसा के खिलाफ बुधवार को कई संगठनों ने बंद बुलाया है. मुंबई के मशहूर डब्बावालों ने भी अपनी सर्विस को ठप रखेंगे. उन्होंने अपने ग्राहकों से खुद अपना टिफिन लाने को कहा है. इनके अलावा महाराष्ट्र बंद के कारण स्कूल बसों की सर्विस बंद रहेगी. मुंबई में करीब 40,000 स्कूल बस बंद रहेंगी, स्कूलों ने अभिभावकों से अपने वाहन से ही बच्चों को स्कूल छोड़ने को कहा है. मुंबई में अभी तक 15 बेस्ट की बसों को नुकसान पहुंचाया गया है,वही प्रदर्शनकारी जबरदस्ती दुकानों को बंद करवा रहे हैं प्रदर्शनकारियों के कारन मेट्रो सर्विस भी प्रभावित है,मुबई की 40 हजार स्कूले भी बंद करा दी गयी है| हिंसा को रोकने के लिए राज्य रिजर्व पुलिस फोर्स की 30 कंपनियां तैनात की गयी है| पुणे में कई स्कूल बंद हैं. क्लास नहीं चलेंगी हालांकि स्टाफ और टीचर्स को स्कूल आने को कहा गया है. मुंबई पुलिस ने हिंसा मामले में 9 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया, 100 को हिरासत में लिया. पालघर में बस सेवा पूरी तरह से ठप हुई, पालघर रेलवे स्टेशन की कैंटीन भी बंद. रेलवे का बयान, ट्रेन को रोकने की कोशिश नाकाम की गई. वहीं पुलिस की शुरुआती जांच में हिंसक झड़पों में भगवा झंडा लिए लोगों के शामिल होने की बात कही गई है. वहीं पुलिस के अनुसार विवाद 29 दिसंबर की रात से शुरू हुआ था. हालांकि, आरएसएस समेत अन्य कई संगठनों ने इस हिंसा की कड़ी निंदा की है. क्या है भीमा कोरेगांव की लड़ाई बता दें कि भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 को पुणे स्थित कोरेगांव में भीमा नदी के पास उत्तर-पू्र्व में हुई थी. यह लड़ाई महार और पेशवा सैनिकों के बीच लड़ी गई थी. अंग्रेजों की तरफ 500 लड़ाके, जिनमें 450 महार सैनिक थे और पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28,000 पेशवा सैनिक थे, मात्र 500 महार सैनिकों ने पेशवा की शक्तिशाली 28 हजार मराठा फौज को हरा दिया था. हर साल नए साल के मौके पर महाराष्ट्र और अन्य जगहों से हजारों की संख्या में पुणे के परने गांव में दलित पहुंचते हैं, यहीं वो जयस्तंभ स्थित है जिसे अंग्रेजों ने उन सैनिकों की याद में बनवाया था, जिन्होंने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी. कहा जाता है कि साल 1927 में डॉ. भीमराव अंबेडकर इस मेमोरियल पर पहुंचे थे, जिसके बाद से अंबेडकर में विश्वास रखने वाले इसे प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर देखते हैं.