जबलपुर(ईन्यूज एमपी)- प्रदेश में कोटवारों की संख्या 37 हजार हैं। इन कोटवारों के पास सेवाभूमि है, जिस पर खेती करके ये अपने परिवार का भरण-पोषण करते आ रहे हैं। इनकी अपनी विशेष वर्दी होती है। यह वर्दी पहले ठेके के आधार पर बनती थी। इसमें समस्या सामने आती थी। जिसे दूर करने की मंशा से नई नीति बनाई गई है। इसके तहत वर्दी की राशि सीधे बैंक खाते में भेजी जाएगी। इसे लेकर पुराने ठेकेदार परेशान हो गए हैं। वे हाई कोर्ट चले आए। लेकिन उनको झटका लगा। हाई कोर्ट ने राज्य शासन के जवाब पर गौर करने के बाद उनकी याचिका निरस्त कर दी। हाई कोर्ट ने साफ किया कि सरकार की नीति उचित है। उसे चुनौती देना गलत है। हाई कोर्ट ने वह याचिका निरस्त कर दी, जिसके जरिये राज्य के 37 हजार कोटवारों को वर्दी खरीदने के लिए सीधे बैंक खातों में राशि ट्रांसफर किए जाने के निर्णय को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता यश सोनी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि कबीर हथकरघा बुनकर समिति, जबलपुर के संचालक मोहम्मद रफीक अंसारी द्वारा दायर याचिका अनुचित है। ऐसा इसलिए क्योंकि याचिकाकर्ता महज अपना फायदा देख रहा है। जबकि मुख्य राजस्व आयुक्त, मध्य प्रदेश शासन ने व्यापक हित को मद्देनजर रखकर निर्णय लिया है।यह निर्णय मध्य प्रदेश भंडार कराया तथा सेवा उपार्जन नियम 2015 के विपरीत हाेने की दलील भी बेमानी है। वास्तविकता यह है कि मध्य प्रदेश शासन द्वारा पारित आदेश समस्त कोटवारों के लिए अत्यंत लाभकारी होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्व में उन सभी की वर्दी बनाना, सही नाप की बनाना, सही समय पर देना, कपड़े की क्वालिटी सही होना आदि बिंदुओं पर ध्यान देना मशक्कत भरा कार्य था। अब खाते में सीधा पैसा जमा करने से प्रदेश के समस्त कोटवार अपनी सुविधा अनुसार वर्दी ख़रीद लेंगे।इसे लेकर निजी हित बाधित होने का तर्क बेमानी है।