भुईमाड़(ईन्यूज एमपी)- अनंत चतुर्दशी पर शुक्रवार को निकाली गई गणेश विसर्जन शोभायात्राओं के दौरान सड़कों पर रंग और गुलाल के बादल छाए रहे। यूं कि आसमान सतरंगी हो गया। आस्था का रंग ऐसा चढ़ा कि भक्त झूम उठे। गणपति बप्पा मोरया...अगले बरस तू जल्दी आ, जयकारे से रास्ते गुंजायमान रहे। श्रद्धा का सैलाब गोपद नदी के किनारे जाकर कुछ थमा, यहां प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया, गणपति रखना मेरी लाज, पूरन करना सबरे काज...। दस दिवसीय गणेश उत्सव के बाद भुईमाड़ मेन चौराहे एवं गणेश साहू जी के घर के पास रखें एवं बच्चों के द्वारा रखें गणेश जी की मूर्ति विसर्जन की धूम रही। श्रद्धालु प्रतिमा के वाहन को ही रथ का रूप दे दिये और उसी प्रतिमा को रथ पर सवार कर भक्ति भजनों पर थिरकते भक्त निकले। पुष्प वर्षा और आरती उतारकर स्वागत किया गया। गणेश प्रतिमा का विसर्जन भुईमाड़ के निकट सोनगढ़ गोपद नदी में करने के साथ ही उत्सव संपन्न हो गया इस दौरान भुईमाड़ थाना प्रभारी आकाश सिंह राजपूत अपने स्टाफ के साथ विसर्जन स्थल पर उपस्थित रहे एवं लगातार विसर्जन के लिए निकले भ्रमण पर भक्तों के साथ भी पुलिस व्यवस्था चुस्त दुरुस्त दिखाई दी,और वही सिंगरौली जिले के सरई क्षेत्र में रखें गणेश प्रतिमाओं का भी सोनगढ़ गोपद नदी मे ही विसर्जन किया गया, जिसमें भुईमाड़ पुलिस के साथ सिंगरौली जिले के सरई पुलिस सुरक्षा व्यवस्था मे तैनात थी,भुईमाड़ क्षेत्र एक सार्वजनिक स्थल पर मूर्ति रखी गई थी,और पर्सनल घर पर एवं एक बच्चों के द्वारा,जबकि सिंगारौली जिले के सरई क्षेत्र से कई मूर्तियां विसर्जित होने भुईमाड़ थाना अंतर्गत सोनगढ़ गोपद नदी मे विसर्जित किये गए। क्रम देर रात तक चलता रहा, वही 9 सिंतबर 2022 शुक्रवार को अनंत चतुर्दशी होने से इस दिन भगवान अनंत की पूजा के साथ ही इसी दिन गणेश प्रतिमा का विसर्जन भी होता है,गणेश चतुर्थी पर जहा बप्पा को लोगों ने अपने घरों एवं मोहल्लों में सजाया वही उन्हें विदा करने का वक्त भी आता है, जिसे कि 'गणेश विसर्जन' कहा जाता है। गणपति कहीं एक दिन तो कहीं 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन या पूरे 10 दिन तक विराजते हैं लेकिन कहते हैं ना, जो आता है, वो जाता भी है इसलिए अब उनके जाने का वक्त भी आ गया है। 'विसर्जन' शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है कि 'पानी में विलीन होना', ये सम्मान सूचक प्रक्रिया है इसलिए घर में पूजा के लिए प्रयोग की गई मूर्तियों को विसर्जित करके उन्हें सम्मान दिया जाता है। गणेश 'विसर्जन ये सिखाता है कि मिट्टी से जन्में शरीर को मिट्टी में ही मिलना है। गणेश जी की प्रतिमा मिट्टी से बनती है और पूजा के बाद वो मिट्टी में मिल जाती है।,*प्रकृति को लौटाना पड़ेगा* गणेश जी को मूर्त रूप में आने के लिए मिटटी का सहारा लेना पड़ता है, मिट्टी प्रकृति की देन है लेकिन जब गणेश जी पानी में विलीन होते हैं तो मिटटी फिर प्रकृति में ही मिल जाती है। मतलब ये कि जो लिया है उसे लौटाना ही पड़ेगा, खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना पडेगा। *ईश्वर को आकार देते हैं* ये धर्म और विश्वास की बात है कि हम गणेश जी को आकार देते हैं लेकिन ऊपर वाला तो निराकार है और सब जगह व्याप्त है लेकिन आकार को समाप्त होना पड़ता है इसलिए‘विसर्जन' होता है 'विसर्जन ये सिखाता है कि इंसान को अगला जन्म पाने के लिए इस जन्म का त्याग करना पड़ेगा गणेश जी की मूर्ति बनती है, उसकी पूजा होती है लेकिन फिर उन्हें अगले साल आने के लिए इस साल विसर्जित होना पडता है। जीवन भी यही है, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कीजिये और समय समाप्त होने पर अगले जन्म के लिए इस जन्म को छोड़ दीजिए। *मोह-माया को त्यागो* 'विसर्जन' ये सिखाता है कि सांसरिक वस्तुओं से इंसान को मोह नहीं होना चाहिए क्योंकि इसे एक दिन छोड़ना पड़ेगा गणेश जी घर में आते हैं, उनकी पूजा होती है और उसके बाद मोह-माया बिखेरकर वो हमसे विदा हो जाते हैं ठीक उसी तरह जीवन भी है, इसे एक दिन छोड़कर जाना होगा इसलिए इसके मोह-पाश में इंसान को नहीं फंसना चाहिए,बिहारी लाल गुप्ता की रिपोर्ट,