इंदौर(ईन्यूज एमपी)- राज्य राजमार्ग पर बने पथ कर प्लाजा से फिलहाल पथ कर वसूली जारी रहेगी। न्यायालय ने पथ कर वसूली पर रोक लगाने की मांग करने वाली जनहित याचिका निरस्त कर दी है। सात पृष्ठ के निर्णय में न्यायालय ने कहा है कि सरकार और सड़क बनाने वाली कंपनी के बीच अनुबंध 25 साल के लिए होता है। समय से पहले इसे निरस्त नहीं किया जा सकता। ऐसा करने पर शासन को भारी आर्थिक जुर्माना भरना पड़ सकता है। कंपनी ने लागत से कई गुना वसूली कर ली है, लेकिन उसे वर्षों तक सड़क का रखरखाव भी करना होता है। उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में यह जनहित याचिका पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने दायर की थी। इसमें राज्य राजमार्ग-31 के दो बड़े हिस्से लेबड़ से जावरा (124.15 किमी) और जावरा से नयागांव (127.81) पर हो रही पथ कर वसूली का मुद्दा उठाया गया था। याचिका में मांग की गई थी कि जिन राज्य राजमार्गों पर कंपनियां लागत से अधिक पथ कर वसूल कर चुकी हैं, वहां वसूली पर रोक लगाई जाए। शासन की ओर से तर्क रखा गया कि शासन और कंपनी के बीच हुए अनुबंध के तहत कंपनी 25 साल तक पथ कर वसूल सकती हैं। समय सीमा से पहले अनुबंध निरस्त करने पर शासन पर भारी आर्थिक हर्जाना लग सकता है। न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था जो हाल ही में जारी हुआ है। न्यायालय ने समय सीमा समाप्त होने से पहले ठेकेदार कंपनी के पथ कर वसूलने पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया। 217 प्रतिशत ज्यादा रकम वसूल ली याचिकाकर्ता का कहना था कि लेबड़ से जावरा मार्ग मे. वेस्टर्न एमपी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने बनाया है। इसकी लागत 605.45 करोड़ रुपये थी। 30 अगस्त 2007 को शासन और कंपनी के बीच हुए अनुबंध के अनुसार कंपनी को पथ कर वसूलने का अधिकार दिया गया है। कंपनी लागत से 217 प्रतिशत ज्यादा रकम वसूल कर चुकी है। 450.57 करोड़ लागत, 1461 करोड़ रुपये वसूल लिए इसी तरह जावरा से नयागांव मार्ग मे. सेरी इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी, मे. पीएनसी कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड ने बताया है। इसकी लागत 450.57 करोड़ रुपये थी। 30 नवंबर 2020 तक कंपनी इस मार्ग पर 1461 करोड़ रुपये पथ कर के रूप में वसूल कर चुकी थी। कंपनियों को नहीं बनाया था पक्षकार याचिकाकर्ता ने याचिका में शासन को तो पक्षकार बनाया, लेकिन ठेकेदार कंपनियों को पक्षकार बनाना भूल गए। न्यायालय ने निर्णय में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि याचिकाकर्ता ने कंपनियों के खिलाफ राहत चाही थी, लेकिन उन्हें ही पक्षकार नहीं बनाया।